डॉक्टरों की खराब हैंड राइटिंग के कारण दवाओं की गड़बड़ी से हर साल सात हजार अमेरिकी गंवा देते हैं जान
भारत में कैपिटल लेटर में और टाइप करके दवा लिखने के दिए जा चुके हैं सुझाव, अभी तक बहुत प्रभावी नहीं
मेडिकल स्टोर्स पर अनट्रेंड लोगों का काम करना भी दवाओं में गड़बड़ी की बड़ी वजह
न्यूज़ डेस्क : डॉक्टरों की लिखावट सामान्य लोगों के लिए हमेशा से ही अबूझ पहेली रही है। इस पर तमाम चुटकुले भी बनते रहते हैं। लेकिन कई मामलों में यह मरीज के लिए भारी नुकसान की वजह भी बन जाती है। यहां तक कि कई बार यह मरीज की मौत का कारण भी बन जाती है। फार्मासिस्ट के द्वारा दवाओं के नाम सही से न समझ पाने की स्थिति में मरीज को गलत दवा मिलने की आशंका बन जाती है, जो उसके लिए मुसीबत का कारण बन सकती है। भारत में तो इस प्रकार के आंकड़े नहीं हैं, लेकिन टाइम पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों की गलत हैंड राइटिंग के कारण प्रति वर्ष सात हजार अमेरिकियों की जान चली जाती है, और लगभग 15 लाख लोगों को शारीरिक/आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
भारत में भी हुए हैं दंडित
समझ में न आने वाली हैंड राइटिंग की एक शिकायत पर मेडिकल काउंसिल ने गत वर्ष दिसंबर महीने में मयूर विहार के एक डॉक्टर का प्रैक्टिस का लाइसेंस निरस्त कर दिया था। इसी प्रकार अक्टूबर 2018 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुने जा रहे एक मामले के दौरान न्यायाधीश डॉक्टर की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट नहीं पढ़ पाए। इससे नाराज होकर जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय ने तीन डॉक्टरों पर पांच-पांच हजार का जुर्माना लगाया था। ऐसे और भी मामले हैं जहां डॉक्टरों पर खराब हैंड राइटिंग के लिए कार्रवाई की गई है, लेकिन इस समस्या का भी तक कोई उचित समाधान नहीं निकल पाया है।
कैपिटल में दवाएं लिखने की सलाह
दिल्ली मेडिकल काउंसिल के सेक्रेटरी डॉक्टर गिरीश त्यागी ने अमर उजाला को बताया कि डॉक्टरों की खराब हैंड राइटिंग कई बार विवाद का कारण बनती रही है। इससे मरीजों और दवा विक्रेताओं को परेशानी होती है। इसे देखते हुए सभी डॉक्टरों को दवाएं, उनकी डोज और उपचार लिखने के दौरान बड़े अक्षरों (CAPITAL LETTERS) का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया है। आज भारी संख्या में डॉक्टर दवाओं के नाम कैपिटल लेटर में ही लिखते हैं। हालांकि, जागरूकता के अभाव में अभी भी कई डॉक्टर अपने हिसाब से दवाएं लिख देते हैं।
टाइप करने का सुझाव
मरीजों और दवा विक्रेताओं की परेशानी को देखते हुए दवाओं के नाम टाइप करके देने के सुझाव भी दिए गए हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह तरीका अभी भी नहीं अपनाया जा रहा है। सभी बड़े अस्पतालों में मरीज की रिपोर्ट बनाते समय टाइप किया हुआ तरीका अपनाया जाता है, लेकिन रोजाना की देखभाल के दौरान अभी भी हाथ से लिखने का ही सिस्टम प्रचलित है।
एक ही अस्पताल में दवाओं की सुविधा होने पर इनमें गड़बड़ी की आशंका कम रहती है, लेकिन इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। साथ ही यह तरीका देश के ग्रामीण इलाकों के लिए सही नहीं बताया जा रहा है जहां इंटरनेट और प्रिंटर की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाती है।
अनुभवहीन लोगों को काम पर रखना भी बड़ी वजह
दवा की दुकानों पर फार्मासिस्ट की मान्यता प्राप्त डिग्री वाले कर्मी काफी कम संख्या में होते हैं। आरोप यह भी है कि एक ही डिग्री पर कई-कई दुकानों पर दवाओं की बिक्री होती है। अनट्रेंड लोगों द्वारा गलत दवा दिए जाने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। इससे भी मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
द आल इंडिया आर्गेनाईजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स के राष्ट्रीय सचिव संदीप नांगिया ने अमर उजाला को बताया कि डॉक्टरों की खराब लिखावट के कारण कई बार असुविधा होती है, इससे गलत दवाओं की बिक्री होने की आशंका बन सकती है। हालांकि इस तरह की स्थिति में डॉक्टरों से फोन पर दवा का नाम स्पष्ट कर लिया जाता है। वहीं ज्यादातर मामलों में दवा देने के बाद डॉक्टरों को दिखाने के लिए भी कह दिया जाता है।
फिर भी यह सही है कि कभी-कभी डॉक्टरों की खराब लिखावट फार्मासिस्ट के लिए एक समस्या अवश्य बन जाती है। वह बताते हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को पत्र लिखकर डॉक्टरों से साफ और स्पष्ट लिखावट में दवाएं लिखने का सुझाव दिया है।
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