स्वदेशी का अर्थ सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार नहीं होता : मोहन भागवत

विकास के नए मूल्य आधारित मॉडल को अपनाने की आवश्यकता पर दिया जोर

आजादी के बाद नहीं बनी सही आर्थिक नीति, मूल्य आधारित हो विकास का मॉडल  

आजादी के बाद ऐसा माना ही नहीं गया कि हम लोग कुछ कर सकते हैं : भागवत

 

 

न्यूज़ डेस्क : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि स्वतंत्रता के बाद देश की जरूरतों के अनुरूप आर्थिक नीति नहीं बनी। दुनिया और कोविड-19 के अनुभवों से स्पष्ट है कि विकास का एक नया मूल्य आधारित मॉडल आना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी पर बात करते हुए इसका मतलब समझाया। उन्होंने कहा कि स्वदेशी का अर्थ जरूरी नहीं यही हो कि सभी विदेशी उत्पादों का बहिष्कार किया जाए।

 

भागवत ने डिजिटल माध्यम से प्रो. राजेंद्र गुप्ता की दो पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद जैसी आर्थिक नीति बननी चाहिए थी, वैसी नहीं बनी। आजादी के बाद ऐसा माना ही नहीं गया कि हम लोग कुछ कर सकते हैं। अच्छा हुआ कि अब शुरू हो गया है।’ भागवत ने कहा कि आजादी के बाद रूस से पंचवर्षीय योजना ली गई, पश्चिमी देशों का अनुकरण किया गया। लेकिन अपने लोगों के ज्ञान और क्षमता की ओर नहीं देखा गया।

 

उन्होंने कहा कि अपने देश में उपलब्ध अनुभव आधारित ज्ञान को बढ़ावा देने की जरूरत है। भागवत ने कहा , ‘हमें इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि हमारे पास विदेश से क्या आता है, और यदि हम ऐसा करते हैं तो हमें अपनी शर्तों पर करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि विदेशों में जो कुछ है, उसका बहिष्कार नहीं करना है लेकिन अपनी शर्तों पर लेना है। भागवत ने कहा कि ज्ञान के बारे में दुनिया से अच्छे विचार आने चाहिए।

 

उन्होंने कहा कि अपने लोगों, अपने ज्ञान, अपनी क्षमता पर विश्वास रखने वाला समाज, व्यवस्था और शासन चाहिए। भौतिकतावाद, जड़वाद और उसकी तार्किक परिणति के कारण व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद जैसी बातें आई। ऐसा विचार आया कि दुनिया को एक वैश्विक बाजार बनना चाहिए और इसके आधार पर विकास की व्यख्या की गई। इसके फलस्वरूप विकास के दो तरह के मॉडल आए। इसमें एक कहता है कि मनुष्य की सत्ता है और दूसरा कहता है कि समाज की सत्ता है।

 

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