न्यूज़ डेस्क : पिछले कुछ सालों से सर्जिकल स्ट्राइक यानी की दुश्मन के इलाके में अचानक से घुसकर उसे मारने की चर्चा काफी बढ़ गई है। भारत द्वारा पीओके में जाकर आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के बाद से इसे लेकर लोगों में दिलचस्पी भी बढ़ी है। ऐसे में हम इतिहास के पन्नों से जानते हैं इजराइल द्वारा किए गए एक ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जिसने दुनिया को चौंका दिया था और जिसे सुनकर कोई विश्वास भी नहीं कर पा रहा था। हम बात कर रहे हैं 80 के दशक में इजराइली वायुसेना द्वारा इराक के खिलाफ अंजाम दिए गए ऑपरेशन ओपेरा/बेबीलोन के बारे में।
इराक का ओसिराक परमाणु रिएक्टर
दरअसल उस वक्त सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक फ्रांस की मदद से अपने यहां एक परमाणु रिएक्टर का निर्माण कर रहा था, जिसके लिए दोनों देशों के बीच एक परमाणु संधि भी हुई थी, इसके बाद इसे बनाने का काम तेजी से चल रहा था।
इजराइल की चिंता
लेकिन इस रिएक्टर के निर्माण की खबर इजराइल को पता चल गई और इजराइल काफी चिंतित हो गया। इजराइल के चिंतित होने के पीछे का मुख्य कारण था सद्दाम हुसैन की कुछ सालों पहले दी गई वो धमकी जिसमें उसने कहा था कि अगर इराक में परमाणु बम बना तो उसका इस्तेमाल सिर्फ यहूदियों (इजराइल) पर होगा।
यही वजह थी कि इजराइल इस परमाणु रिएक्टर को रोकने के लिए पूरी कोशिश में लग गया और इसके लिए उसने कूटनीतिक और राजनयिक तरीके भी अपनाए लेकिन इसमें कोई खास सफलता ना मिलता देख, इजराइल के उस वक्त के प्रधानमंत्री मेनचिम बेगिन ने इराक के उस निर्माणाधीन परमाणु रिएक्टर पर हमला करने की योजना बनाई।
इजराइल का नामुमकिन मिशन
हालांकि ये एक ऐसी योजना थी जो सुनने और बात करने में भी नामुमकिन लग रही थी और जिसके लिए इजराइल के ही कई अधिकारी और विशेषज्ञ भी तैयार नहीं थे। योजना यह थी कि इजराइल के लड़ाकू विमान दुश्मन देश सऊदी अरब और जॉर्डन के हवाई मार्ग के रास्ते करीब 1600 किलोमीटर की उड़ान भरकर इराक में जाएंगे और रिएक्टर को तबाह करेंगे।
लेकिन चारों तरफ से दुश्मन से घिरा हुआ एक छोटा देश इजराइल हमेशा से ही नामुमकिन को मुमकिन बनाने के लिए जाना जाता है और इस बार भी वो कुछ ऐसा ही करने के लिए तैयार था। इसके लिए वहां की संसद में इस पर चर्चा हुई और बहुमत के साथ इस योजना पर सहमति बन गई।
इजराइली मोसाद की अहम भूमिका और ट्रेनिंग
ऑपरेशन ओपेरा को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए 1978-79 में इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद को इराक स्थित ओसिराक परमाणु रिएक्टर के नक्शे समेत सभी महत्वपूर्ण जानकारियां इकठ्ठा करने का काम दिया गया। मोसाद ने भी फ्रांस से लेकर इराक तक में सक्रिय रहते हुए अहम दस्तावेज जमा किए। इस दौरान इराकी परमाणु प्रोजेक्ट से जुड़े कई वैज्ञानिकों और अधिकारियों की हत्याएं भी हुईं जिसके पीछे मोसाद का हाथ बताया गया।
वहीं इजराइल में भी ओपेरा से जुड़ी टीमें अपने काम पर लगी रहीं। उसके बाद 1980 में इजराइली वायुसेना ने विशेष पायलटों की एक टीम तैयार की जिसमें एक अंतरिक्ष यात्री को भी शामिल किया गया। वहीं इस ऑपरेशन के लिए एफ-16 और एफ-15 लड़ाकू विमान को चुना गया। इसके बाद इजराइल के एक रेगिस्तानी इलाके दी नेगेव में ट्रेनिंग शुरू हुई।
ट्रेनिंग के करीब एक साल बाद ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए चार तारीखें तय की गईं लेकिन इनमें तीन बार किसी कारणवश इसे रोकना पड़ा। हालांकि सात जून 1981 को हमला करने की तारीख तय हुई।
ऑपरेशन ओपेरा का दिन
इस ऑपरेशन के लिए आठ एफ-16 लड़ाकू विमानों को तैयार किया गया जिन्हें बैकअप सपोर्ट देने के लिए छह एफ-15 विमानों को लगाया गया। हर एफ-16 विमान में 2000-2000 पॉउंड के दो एमके-84 बम और कई अन्य अहम मिसाइलें लगाई गईं, साथ ही सभी विमानों पर ईंधन की अतिरिक्त टंकियां भी लगाई गईं।
इसके बाद सात जून 1981 को इजराइली समयानुसार दोपहर तीन बजे सभी विमानों ने एतजिओन हवाई बेस से उड़ान भरी, लेकिन सऊदी अरब और जॉर्डन के रडार की नजर से बचने के लिए सारे विमानों ने 150-300 फ़ीट की ऊंचाई पर उड़ान भरना शुरू किया। देखते-देखते इजराइल के कुल 14 लड़ाकू विमान इराक की सीमा में घुस गए, यहां पर सुरक्षा की दृष्टि और दुश्मन का ध्यान भटकाने के इरादे से कई विमानों ने अलग-अलग दिशाओं की तरफ उड़ान भरनी शुरू की।
इसके बाद स्थानीय समयानुसार शाम के करीब छह बजे रिएक्टर से कुछ किलोमीटर पहले पायलटों ने एफ-16 लड़ाकू विमानों को ऊंचाई पर ले जाना शुरू किया और तेजी से रिएक्टर के ऊपर 8000 फीट की ऊंचाई पर पहुंच गए। यहां से विमानों ने 1100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 35 डिग्री का एंगल बनाते हुए नीचे की तरफ बढ़ना शुरू किया और फिर 3500 फ़ीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद सभी विमानों ने कुछ सेकेंड के अंतराल पर बमों को गिराना शुरू कर दिया।
देखते-देखते कुछ ही मिनटों में इराक का ओसिराक परमाणु रिएक्टर जमींदोज हो चुका था, वहीं इजराइल के लड़ाकू विमानों ने एंटी-एयरक्रॉफ्ट गनों से बचते हुए एक बार फिर से तेजी से ऊपर की तरफ उड़ान भरनी शुरू की और आकाश में ओझल हो गए। ऑपरेशन को अंजाम देने के बाद इजराइल के सभी लड़ाकू विमान 40000 फीट की ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए जॉर्डन और सऊदी अरब को पार करते हुए तीन घंटे के अंदर अपने हवाई बेस पर वापस लौट गए।
इस पूरे ऑपरेशन में इजराइल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ, वहीं इराक के 10 लोग मारे गए और उनका महत्वपूर्ण परमाणु रिएक्टर बनने से पहले ही बर्बाद हो गया।
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