पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – मनुष्य स्वयं के संकल्प एवं सोच का परिणाम है। शुभ संकल्प लोक-परलोक की विजय का आरम्भिक साधन है…! संकल्प को जीवन की उत्कृष्टता का महामन्त्र समझना चाहिए। संकल्प का सम्बन्ध सत्य और धर्म से होता है। उसका प्रयोग अधर्म और अत्याचार के लिये नहीं हो सकता। अधर्म पतन की ओर ले जाता है, परन्तु यह संकल्प का स्वभाव नहीं है। अधर्म से धर्म की ओर, अन्याय से न्याय की ओर, कामुकता से संयम की ओर, मृत्यु से जीवन की ओर अग्रसर होने में संकल्प की सार्थकता है। संकल्प तप का, क्रिया शक्ति का विधेयक है, इसी से उसमें अनेकों सिद्धियाँ और वरदान समाहित हैं। यदि किसी का जन्म अच्छे कुल में हुआ है, लेकिन आचरण बुरे हैं तो उसका जीवन अभिशाप है और यदि आपका जन्म निकृष्ट कुल में हुआ है और आचरण आपके धर्ममय हैं तो आपका जीवन वरदान है। अतः मनुष्य का जन्म नहीं, कर्म महत्वपूर्ण है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – शारीरिक अंग-प्रत्यंग और इन्द्रियाँ संसार में सबको समान रूप से मिली है। फिर भी मनुष्य के जीवन क्रम और गतिविधियों में भारी अन्तर पाया जाता है। जय-पराजय, सफलता-असफलता, जीवन और मृत्यु के द्वन्द्व निरन्तर चलते रहते हैं। जो व्यक्ति अपने आन्तरिक क्षेत्र में फैली हुई संकल्प शक्ति का प्रयोग नहीं करते; उन्हें पराजय, असफलता और मृत्यु प्राप्त होती है, परन्तु जिनके संस्कारों में दृढ़ता, तीव्र मनोबल और सुदृढ़ संकल्प शक्ति विद्यमान है; जय, जीवन और सफलता सदैव उनकी दासी बनकर काम करती है। संकल्पवान पुरुष ही जीवन-संग्राम में विजय प्राप्त करते हैं, कमजोर इच्छा शक्ति वालों का साथ प्रकृति भी नहीं देती है। जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी है अथवा संकल्प-शक्ति का अभाव हैं, वह वास्तव में नास्तिक है। जो नास्तिक है, वह निर्बल है और जो निर्बल है उसका जीवन निरर्थक है, वो धरती पर भार स्वरूप है। संकल्प-शक्ति वास्तव में एक दैवीय शक्ति है। उसकी उपासना न करने वाला संसार में सबसे निकृष्ट व्यक्ति है। मनुष्य का जन्म ही संसार में कुछ ऊँचा कार्य सम्पादित करने के लिये हुआ है। जो अपने इस कर्तव्य को पूरा नहीं करता, संसार को सुन्दर एवं समुन्नत बनाने में अपना अंश दान नहीं करता, उसे कर्तव्यघाती के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता हैं? अतः जिसकी इच्छाओं में दृढ़ता नहीं, संकल्प में शक्ति नहीं, वह संसार में कोई भी श्रेयस्कर कार्य सम्पादित नहीं कर सकता…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने संकल्पशक्ति को अविष्कार की जननी कहा है। जब व्यक्ति किसी कार्य में प्राण, मन और समग्र शक्ति के साथ संलग्न होता है तो वह सफलता के अत्यधिक समीप पहुंच जाता है। विज्ञान जगत में जो नए-नए आविष्कार हुए और आज जो हम प्रगति के पथ पर बढ़ रहे हैं, यह सब संभव हो पाया है – दृढ़ संकल्प की मानसिकता वाले व्यक्तियों की वजह से। किसी चीज को पाने की तीव्र इच्छा यानी किसी ध्येय को हासिल करने का इरादा व्यक्ति को आंतरिक प्रेरणा देता है कि वह उस दिशा में वह ठोस कदम बढ़ाए। संकल्प ही सृष्टि का मूल है।
प्रत्येक देश के आर्थिक विकास में दृढ़ संकल्प और श्रम की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यूं तो जीवन को महान बनाने के लिए मनुष्य निरंतर प्रयत्नशील रहता है, परंतु वे लोग ही सफल हो पाते हैं, जिनके पास श्रम को पूर्ण व्यवस्थित व संचालित करने की संकल्पशक्ति होती है। संकल्प जीवन की सजीवता का बोध कराता है। यह वह शक्ति है, जो मनुष्य की जीवनशैली को तय करती है। कर्म क्षेत्र पर मनुष्य अपने बुद्धि-विवेक से कर्तव्यनिष्ठ होकर कार्य व्यवहार करता है, लेकिन सफलता या असफलता का पहलू उसके द्वारा किये गये कर्म के प्रति संकल्प पर निर्भर करता है। दृढ़ संकल्प से स्वल्प साधनों में भी मनुष्य अधिकतम विकास कर सकता है और आनन्दपूर्ण जीवन जी सकता है।
नन्हा सा दीपक कब कहता है कि वह दस किलो मिट्टी का बना होता और उसमें दस किलो तेल होता तो ही वह प्रकाश देता। वह तो अपने सीमित साधनों से ही प्रकाश देने लगता है। उन्नति की आकांक्षा रखना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। अतः शुभ-संकल्प के द्वारा प्रत्येक मनुष्य सफलता प्राप्त कर सकता है…।
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