इंसाफ दिलाने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे और उत्तर प्रदेश का हाल सबसे बदतर

न्यूज़ डेस्क : लोगों को इंसाफ दिलाने के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है। वहीं, उत्तर प्रदेश का हाल इंसाफ दिलाने के मामले में बदतर है। सबसे बड़ी आबादी वाला यह राज्य सबसे निचले पायदान पर है। दोनों ही राज्यों का आकलन देश के 18 बडे़ राज्यों के आधार पर किया गया है। वहीं, छोटे राज्यों की बात करें तो न्याय मुहैया कराने के मामले में गोवा शीर्ष पर है। भारतीय न्याय रिपोर्ट, 2019 के आंकड़ों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। 

 

इस रिपोर्ट में एक न्याय सूचकांक बनाया गया है, जिसमें न्याय दिलाने के मामले में महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर केरल, तीसरे पर तमिलनाडु, चौथे पर पंजाब और पांचवें पायदान पर हरियाणा है। जबकि, सबसे निचले पायदान यानी 18वें स्थान पर यूपी है, जबकि 17वें पर बिहार, 16वें पर झारखंड, 15वें पर उत्तराखंड और 14वें पर राजस्थान है। वहीं, सूचकांक में छोटे राज्यों में गोवा सबसे शीर्ष पर है, जबकि इसके बाद सिक्किम और हिमाचल प्रदेश का स्थान है।

 

इस रिपोर्ट के लॉन्च होने के अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस (रिटायर्ड) मदन बी लोकुर ने कहा, यह अध्ययन हमारी न्याय देने की व्यवस्था में खामी को उजागर करता है। उम्मीद करता हूं कि न्यायपालिका और सरकार इस रिपोर्ट के नतीजों को संज्ञान में लेंगी और राज्यों को भी इसके लिए तत्काल कदम उठाने होंगे। इसे अपनी तरह का पहला सूचकांक माना जा रहा है। टाटा ट्रस्ट ने सामाजिक न्याय केंद्र, कॉमन कॉज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन इनीशिएटिव, दक्ष, टीआईएसस-प्रयास विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के साथ मिलकर यह रिपोर्ट प्रकाशित की है।

 

इन चार मानकों के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट

18 महीनों की कड़ी मेहनत और व्यापक अनुसंधान के आधार पर यह न्याय रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में इंसाफ मुहैया कराने का आधार न्यायपालिका, पुलिस, जेल और कानूनी सहायता जैसे चार मानकों को बनाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, ये चार मानक चार स्तंभ जैसे हैं, जो नागरिकों को सद्भावनापूर्ण तरीके से इंसाफ दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

 

ये हैं सूचकांक

हर स्तंभ का आकलन उसे मिलने वाले बजट, मानव संसाधन, काम का बोझ, व्यापकता (लिंग, एससी/एसटी/ओबीसी), बुनियादी ढांचा, पांच साल में सुधार की प्रवृत्ति के आधार पर किया गया है।

 

खाली पदों का न भरा जाना बड़ी समस्या

रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी चारों मानकों में खाली पदों की बड़ी संख्या है, जो इंसाफ मुहैया करा पाने में एक बड़ी बाधा है। सिर्फ आधे राज्य ही ऐसे हैं, जिन्होंने बीते पांच साल में इन खाली पडे़ पदों को कम करने की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। उदाहरण के तौर पर अगर सिर्फ न्यायपालिका की ही बात करें तो देशभर में कुल मंजूर किए जजों के पदों के महज 23 फीसदी ही भरे गए हैं, जो अभी 18,200 हैं।

 

पुलिस बलों में सिर्फ सात फीसदी ही महिलाएं

रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस बलों में सिर्फ सात फीसदी ही महिलाएं हैं। वहीं, निचली अदालतों में महज 28 फीसदी ही महिलाएं हैं। देश में सिर्फ 10 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ही ऐसे हैं, जहां पुलिस बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से ज्यादा है।


जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदी

रिपोर्ट के अनुसार, जेलों में जरूरत से ज्यादा 114 फीसदी कैदी ठूंसे हुए हैं। वहीं, इन जेलों में बंद 68 फीसदी आरोपी ऐसे हैं, जो जांच या मुकदमे का इंतजार कर रहे हैं। कुछ राज्य तो ऐसे हैं जो केंद्र से मिले पैसों को पूरी तरह इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहे हैं।

 

80 फीसदी आबादी को 75 पैसे सालाना कानूनी मदद

कुछ स्तंभ ऐसे हैं, जो कम बजट के कारण प्रभावी भूमिका में नहीं आ पा रहे हैं। खास तौर पर कानूनी मदद। रिपोर्ट के मुताबिक, देश की 80 फीसदी आबादी को सालाना 75 पैसे के हिसाब कानूनी सहायता मुहैया कराई जा रही है।

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