नेहरु ने ख़त्म किया था चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद, वर्तमान विदेश मंत्री से है इसका संबंध

न्यूज़ डेस्क : प्रधानमंत्री मोदी ने 73वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर लालकिले की प्राचीर से बड़ा एलान करते हुए तीनों सेनाओं के लिए एकीकृत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनाने का एलान किया। कारगिल युद्ध के बाद बनी कारगिल रिव्यू कमेटी ने भी सीडीएस का पद सृजन करने की सिफारिश की थी।     

 

एस. जयशंकर के पिता थे कारगिल रिव्यू कमेटी के चेयरमैन : चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद फाइव स्टार रैंक जनरल के सामानांतर होगा और तीनों सेनाओं थल, वायु, जल का जनरल होगा। इसकी जिम्मेदारी तीनों सेनाओं के बीच समन्वय मजबूत करने और सैन्य ऑपरेशन की स्थिति में रणनीति पर तेजी से अमल करने की होगी। आजादी के बाद तक देश में यह व्यवस्था थी, लेकिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सैन्य बल का विकेन्द्रीकरण करके चीफ आफ डिफेंस स्टाफ के पद को समाप्त कर दिया था। कारगिल जंग के बाद बनी कारगिल समीक्षा समिति ने एक बार फिर इस पद को बहाल करने की सिफारिश की थी। इस समिति के चेयरमैन विदेशमंत्री एस. जयशंकर के पिता के. सुब्रमण्यम थे।

 

 क्यों हुई सीडीएस की सिफारिश : कारगिल युद्ध के दौरान वायुसेना और भारतीय सेना के बीच तालमेल का अभाव साफ दिखाई दिया था। वायुसेना के इस्तेमाल पर तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष और सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक की राय अलग-अलग थी। भारतीय सामरिक रणनीतिकारों ने भी इस कमी को महसूस किया और सरकार से फिर से सीडीएस के गठन की सिफारिश की।

 

अभी क्या है व्यवस्था : भारत सरकार ने तीनों सेनाओं में सबसे वरिष्ठ जनरल को चीफ आफ आर्मी स्टाफ की मंजूरी दी है। तालमेल के बाबत ट्राई सर्विसेज कमान की व्यवस्था है। तीनों सेनाओं के संयुक्त कमांडर की कांफ्रेंस होती है और सुरक्षा मामलों की कैबिनेट में तीनों सेनाओं के प्रमुख होते हैं। इसके अलावा तालमेल, संयुक्त आपरेशन को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं।

 

19 साल तक सीडीएस के गठन पर सरकार ने किया संकोच : तीनों सेनाओं ने लगातार सीडीएस के गठन की मांग की है। रक्षा मंत्रालय की संसदीय समिति ने भी कारगिल समीक्षा समिति की सिफारिश को मजबूती से उठाया, लेकिन केन्द्र सरकार सीडीएस के गठन से परहेज करती रही। करीब 19 साल तक यह सिफारिश ठंडे बस्ते में पड़ी रही। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से इसका एलान कर दिया। 2001 में भी ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने भी सीडीएस के गठन की सिफारिश की थी। जिसके बाद 2012 में बनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर बनी नरेश चंद्रा टास्क फोर्स ने भी स्थाई चीफ आफ आर्मी स्टाफ बनाने की सलाह दी थी।

 

क्यों सरकार कर रही थी परहेज? : भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय के सामने सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न सीडीएस की वैधानिक स्थिति और प्रोटोकॉल को लेकर था। मौजूद तीनों जनरल फोर स्टार और रक्षा सचिव के समकक्ष हैं। ऐसे में जनरलों के जनरल का ओहदा क्या होगा? क्या वह साढ़े चार या फाइव स्टार जनरल होगा? या फिर रक्षा सचिव से ऊपर या कैबिनेट सेक्रेटरी के बराबर का दर्जा होगा? ऐसा होने पर अन्य प्रोटोकॉल की स्थिति क्या होगी?

 

बेहद पावरफुल होगा सीडीएस! : थल, वायु और नौसेना की सीडीएस पद पर अलग अलग दावेदारी भी आड़े आ रही थी। कुल मिलाकर सरकार रक्षात्मक होकर चल रही थी। भारत सरकार का एक डर और था कि कहीं फाइव स्टार जनरल चीफ ऑफ स्टाफ परिस्थिति विशेष में पाकिस्तान की तरह सैन्य शासन जैसी पहल न कर दे। पाकिस्तान में वैसे भी कई बार सैन्य शासन हो चुका है। हालांकि पाकिस्तान की तुलना भारतीय जनरल और सैन्यबल हमेशा कहीं अधिक अनुशासित और प्रोफेशनल रहे हैं।   

 

इन देशों में है व्यवस्था : नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) से जुड़े ज्यादातर देशों में सेनाओं के सर्वोच्च पद पर चीफ ऑफ डिफेंस नियुक्त करने की व्यवस्था है। वर्तमान में ब्रिटेन, इटली, कनाडा, फ्रांस, गांबिया, घाना, नाइजीरिया, स्पेन, श्रीलंका और सियरा लियोन समेत दस देशों में यह व्यवस्था है, वहीं अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है। हर देश अपने यहां सीडीएस को अलग अलग पावर देता है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन में सीडीएस सभी सशस्त्र बलों का प्रोफेशनल हेड होता है और वहां के रक्षा मंत्रालय और प्रधानमंत्री का सबसे वरिष्ठ सैन्य सलाहकार होता है।

 

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