पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।। पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सर्वत्र एकत्व का अनुभव आत्मनिरीक्षण का सहज परिणाम है, अतः स्वाध्याय सर्वथा हितकर है…! आत्मविश्लेषण महत्वपूर्ण होता है। यह जानने की जरूरत होती है कि हमारा आचार-व्यवहार, विचार, खान-पान सही है या नहीं। चिंतन की शुद्धता, आचरण की पारदर्शिता पर विचार करने की आवश्यकता होती है। आत्म-निरक्षण का अर्थ है – अपने आप को देखना।
अर्थात्, किसी कार्य को करने या होने के बाद उसके करने में हमारे द्वारा अपनाई गई क्रिया और विचार पद्धति का विश्लेषण। यानी, हमने किसी बात को कैसे सोचा और समझा व उसे किस प्रकार क्रियान्वित किया? आत्म-अवलोकन के द्वारा हमें अपनी गलतियों से सीखने और अच्छे किए गए कार्य को और बेहतर ढंग से करने का अवसर मिलता है। महात्मा बुद्ध का कहना है कि व्यक्ति को जितना कोई बाहरी सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय एवं आत्म-अवलोकन तथा आत्म-चिंतन से सीख सकता है। इसलिए वह हमेशा कहते हैं ‘अप्पो दीपो भव …’ अर्थात्, अपने दीपक स्वयं बनो।
यानी, अपने बुद्धि, चिंतन एवं आत्म-अवलोकन से अपने जीवन को प्रकाशित करो। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान कभी विस्मृत नहीं होता और हमेशा व्यक्ति को सही निर्णय लेने में सहायक होता है; क्योंकि यह गहन अनुभव चिंतन और आत्म-अवलोकन पर आधारित है। पूज्य” आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि आत्म-निरीक्षण साधना का प्रथम सोपान है। मनसा-वाचा, कर्मणा एकत्व और स्वयं के प्रति जागरूक रहें। अमरता आत्मा में निहित सभी शक्तियों की परिणति है। जीवन एक अंतहीन यात्रा है। जन्म-मरण, सायुज्य-ज्ञालोक्य, सामीप्य इसके पड़ाव हैं। परंतु, यात्रा का अंत है – स्वयं आत्मा को उपलब्ध हो जाना…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – अध्यात्म का अर्थ है – अपने स्वभाव में लौटना। जहां शांति, आनंद और स्थाई समाधान है। अध्यात्म भीतर की उर्जा को, स्वयं की आग को जगाता है। यह बताता है कि कैसे विषम और प्रतिकूल परिस्थितियों में बड़ा बना जाएं? जीवन की स्वाभाविक मांग अध्यात्म है। जब उसकी पूर्ति होने लगती है, तब सहसा प्रसन्नता, आनंद, उल्लास, जीवन में धन्यता, उत्सव-धर्मिता, स्थायित्व, प्रसन्नता आदि अनुभूत होने लगती हैं। जिसके आने पर भ्रम-भय नहीं रहता, शोक नहीं रहता, फिर द्वंद भी कहाँ रहता है। हानि-लाभ, जन्म-मरण, यश-अपयश इन द्वंदों से ऊपर उठना ही अध्यात्म है। जो चेतना को प्रसादिक बना दे वही तो अध्यात्म है। अध्यात्म स्वभाव का नाम है। जो हमें स्वभाव की ओर, अपने अस्तित्व की ओर, अपनी सत्ता की ओर ले आए, उसे अध्यात्म कहते हैं। महापुरुषों के उपदेश ठीक तरह से सुनना आ जाए तो जीवन की शंकायें स्वमेव ही समाप्त हो जाएंगी।
आत्म-तत्त्व के दर्शन, जागरण और समुन्नयन के लिए चार सोपान अति आवश्यक हैं – आत्म-निरीक्षण, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण और आत्म-विकास। जीवन को सही दिशा में ले जाने का प्रयास तो हम सभी करते हैं लेकिन यदि हम महापुरुषों के बताए दिशा-निर्देशों के अनुरूप चलें तो सम्भव है, हमारा जीवन सार्थक बन जाए। आध्यात्मिक चिन्तन के अंतर्गत व्यक्ति को एकमात्र अतीन्द्रिय स्वरूप अनुसंधान के उद्देश्य को प्राप्त करने का संदेश दिया गया है। जिससे प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता, संतुष्टि तथा शांति को प्राप्त करते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने की कला सीख जाए। दार्शनिक चिन्तन के अनमोल मोती मनुष्य के भ्रम, भय, संदेह, तर्क-वितर्क और समस्याओं को दूर कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति तो समूची वसुधा के प्राण हैं। अतः भारत की संस्कृति ही मनुष्य जाति को आदर्शों, मर्यादाओं, प्रेम, त्याग और मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ा रही हैं….।
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