न्यूज़ डेस्क : पिछले पांच वर्षों में देश की राजनीति में एक नाम ऐसा भी उभरा है, जिसे अब किसी पहचान की जरूरत नहीं है और वो हैं प्रशांत किशोर यानी पीके। पीके उनका नाम नहीं है, पर आम बोलचाल में लोग यह जानते हैं कि इसका मतलब क्या है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बतौर रणनीतिकार पहचाने जाने वाले प्रशांत किशोर इस समय जनता दल यूनाइटेड के सदस्य हैं।
पांच साल पहले नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी के लिए बतौर चुनाव रणनीतिकार अपने साथ जोड़ा था। इसका लाभ पार्टी को मिला भी था। चाय पर चर्चा उनका ही आइडिया था। 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। जल्द ही पीके ने अपना रास्ता अलग कर लिया और बिहार में नीतीश कुमार के चहेते हो गए। उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के लिए काम किया। नारे गढ़े, रणनीति बनाई और यहां भी कामयाबी हासिल की।
ममता बनर्जी के साथ करेंगे काम : अब एक बार फिर प्रशांत किशोर सुर्खियों में हैं और वजह हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी। ममता दीदी ने उन्हें बंगाल में होने वाले 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए बतौर चुनावी रणनीतिकार या कहें कि राजनीतिक रणनीतिकार अपने साथ जोड़ा है। इस बारे में जब प्रशांत किशोर से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वो ममता बनर्जी को 2015 से जानते हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद दीदी ने उनसे संपर्क किया।
राजनीतिक हलकों में इसे ममता बनर्जी के बैकफुट पर जाने के तौर पर भी देखा जा रहा है। दरअसल, हाल के लोकसभा चुनाव परिणामों में तृणमूल कांग्रेस का जो प्रदर्शन रहा है, उसने ममता को ऐसा करने के लिए मजबूर किया है। आने वाले विधानसभा चुनाव उनके लिए चुनौती बन गए हैं। जिस तरह से राज्य में भाजपा अपना वर्चस्व बढ़ा रही है, उससे दीदी को यह आभास हो गया है कि विधानसभा चुनाव टेढ़ी खीर हो सकता है।
वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद प्रशांत किशोर की चमक कुछ फीकी पड़ गई थी, लेकिन हाल ही में आंध्र प्रदेश के विधानसभा चुनाव नतीजों ने फिर से उनकी छवि को चमका दिया है। आंध्र में उन्होंने जगन मोहन रेड्डी के लिए चुनाव रणनीति बनाई जिसमें वो पूरी तरह से सफल भी हुए। इससे पीके की छवि भी चमकी और ममता ने भाजपा से मुकाबले के लिए एक रणनीतिकार खोज लिया।
प. बंगाल चुनाव की चुनौती : बताया जा रहा है कि ममता ने 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए तृणमूल की चुनावी तैयारियों की पूरी जिम्मेदारी प्रशांत किशोर को सौंप दी है। वैसे भी प्रशांत को ऐसी जगह पर काम करना पसंद है, जहां सिंगल पर्सन लीडरशिप हो। इससे नीतियां, निर्णय और योजनाएं बनाने में आसानी होती है और इन्हें अमल में भी आसानी से लाया जा सकता है। भाजपा में उन्होंने मोदी-शाह की लीडरशिप में कमाल किया। बिहार में नीतीश कुमार के साथ, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर के साथ और आंध्र में जगन मोहन रेड्डी के साथ विजय परचम लहराया। हर मौके पर वह इन नेताओं की उम्मीदों पर खरे उतरे। उत्तर प्रदेश एक अपवाद रहा क्योंकि वहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच सामंजस्य की कमी रही और सिंगल लीडर जैसा कोई सिस्टम भी नहीं था।
ममता बनर्जी और तृणमूल के लिए चुनावी काम संभालने पर जब अमर उजाला ने प्रशांत किशोर से बात की तो उन्होंने कहा, मैं ममता बनर्जी को 2015 से जानता हूं। वो जुझारू नेता हैं जो जनता से सीधा संवाद रखती हैं। 2021 को मैंने एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। मेरे लिए चुनौती है और इसे मैं स्वीकार कर रहा हूं।
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