पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – क्षमा आत्मा का नैसर्गिक गुण है। यह आत्मा का स्वभाव है। जब हम विकारों से ग्रस्त हो जाते हैं तो स्वभाव से विभाव में चले जाते हैं। यह विभाव क्रोध, भय, द्वेष, एवं घृणा के विकार रूप में प्रकट होते हैं। जब इन विकारों को परास्त किया जाता है तो हमारी आत्मा में क्षमा का शांत झरना बहने लगता है। आत्मविश्लेषण ऐसा हथियार है जो न केवल आपको ऐसी चर्चाओं से दूर रखने में सहायक सिद्ध होगी, बल्कि आपकी प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त करेगी। सर्वविदित है कि मनुष्य अच्छाईयों और बुराईयों का मिश्रण है। सदगुण एवं दुर्गुण किसी न किसी अनुपात में हर व्यक्ति में मौजूद होते हैं। बेहतर होगा कि हम दूसरों के सदुगुणों को समझें और उनको आत्मसात करने का प्रयास करें। परन्तु, स्मरण रहे कि उन्नति के लिए स्वमूल्यांकन करना तथा अपने दुर्गुणों को दूर करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना अति आवश्यक है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – क्रोध से क्रोध ही प्रज्वल्लित होता है। क्षमा के स्वभाव को आवृत करने वाले क्रोध को पहले जीतना आवश्यक है। अक्रोध से क्रोध जीता जाता है, क्योंकि क्रोध का अभाव ही क्षमा है। अतः क्रोध को धैर्य एवं विवेक से उपशांत करके, क्षमा के स्वधर्म को प्राप्त करना चाहिए। बड़ा व्यक्ति या बड़े ह्रदये वाला कौन कहलाता है? वह, जो सहन करना जानता है, जो क्षमा करना जानता है। क्षांति जो आत्मा का प्रथम और प्रधान धर्म है। क्षमा के लिए ”क्षांति” शब्द अधिक उपयुक्त है। क्षांति शब्द में क्षमा सहित सहिष्णुता, धैर्य और तितिक्षा अंतर्निहित है। क्रोध शमन और क्षमाभाव के संधान से द्विपक्षीय शुभ आत्मपरिणाम होते है। क्षमा से सामने वाला व्यक्ति भी निर्वेरता प्राप्त कर मैत्रीभाव का अनुभव करता है। प्रतिक्रिया में स्वयं भी क्षमा प्रदान कर हल्का अनुभव करते हुए निर्भय महसूस करता है। क्षमायाचक साहसपूर्वक क्षमा करके अपने हृदय में निर्मलता, निश्चिंतता, निर्भयता और सहृदयता का अनुभव करता है। अतः क्षमा करने वाले और प्राप्त करने वाले दोनो पक्षों को सौहार्द युक्त शांति का भाव स्थापित होता है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – क्षमा में लेशमात्र भी कायरता नहीं है। सहिष्णुता, समता, सहनशीलता, मैत्रीभाव व उदारता जैसे सामर्थ्य युक्त गुण, पुरूषार्थहीन या अधैर्यवान लोगों में उत्पन्न नहीं हो सकते। निश्चित ही इन गुणों को पाने में अक्षम लोग ही प्रायः क्षमा को कायरता बताने का प्रयास करते हैं। यह अधीरों का, कठिन पुरूषार्थ से बचने का उपक्रम होता है। जबकि क्षमा व्यक्तित्व में तेजस्विता उत्पन्न करता है। वस्तुतः आत्मा के मूल स्वभाव क्षमा पर छाये हुए क्रोध के आवरण को अनावृत करने के लिए, दृढ़ पुरूषार्थ, वीरता, निर्भयता, साहस, उदारता और दृढ़ मनोबल चाहिए; इसीलिए “क्षमा वीरस्य भूषणम् …” कहा जाता है। क्षमा ही दु:खों से मुक्ति का द्वार है। क्षमा मन की कुंठित गांठों को खोलती है और दया, सहिष्णुता, उदारता, संयम व संतोष की प्रवृतियों को विकसित करती है। क्षमाभाव मानवता के लिए वरदान है। अतः जगत में शांति, सौहार्द, सहिष्णुता, सहनशीलता और समता को प्रसारित करने का अमोघ उपाय है – क्षमा…।
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