न्यूज़ डेस्क : केंद्र में भाजपा नीत एनडीए सरकार बनाने जा रहा है। नई सरकार के सामने रोजगार और जीडीपी में बढ़ोतरी बड़ी चुनौती होगी। मोदी सरकार को 2014-19 तक महंगाई का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन अब ईंधन और खाद्य पदार्थों के दामों में वृद्धि की वजह से महंगाई के मोर्चे पर कठिन लड़ाई लड़नी होगी।
जीडीपी: नई सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक विकास की है। वित्त मंत्रालय की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी ग्रोथ के 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। देखा जाए तो यह 2014 मोदी सरकार के बाद सबसे कम वृद्धि है। जबकि अक्तूबर-दिसंबर 2018 तिमाही में वृद्धि 6.6 फीसदी के साथ 6 साल के निचले स्तर पर चली गई थी। जनवरी-मार्च 2019 तिमाही के आंकड़े 31 मई को जारी किए जाएंगे जिसमें जीडीपी ग्रोथ के और फिसलने की आशंका जताई जा रही है।
रोजगार: रोजगार के मुद्दे ने 2014 नरेंद्र मोदी को सत्ता दिलाई, लेकिन रोजगार संकट को लेकर विपक्ष लगातार उनपर हमलावर रहा। नई सरकार के सामने रोजगार बढ़ाने की बड़ी चुनौती होगी। देश में हर महीने 10 लाख से ज्यादा लोग रोजगार पाने की होड़ में आ जाते हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर लोगों को रोजगार नहीं मिलता। बेरोजगारी दर के आंकड़ों को लेकर नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की कुछ महीने पहले लीक हुई रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-18 में यह 6.1 फीसदी थी, जो 45 साल में सबसे ज्यादा है। यूपीए-2 के दौरान 2011-12 में यह 2.2 फीसदी थी। आर्थिक मंदी से रोजगार के नए अवसर कम पैदा होंगे।
इंफ्रास्ट्रक्चर : इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र पर मोदी सरकार ने काफी जोर दिया था। केयर रेटिंग की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी देश में कुल 1,424 प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। इनमें से 384 देरी से चल रहे हैं। इनकी कुल लागत 12.4 लाख करोड़ रुपये है। नई सरकार के लिए इनकी फंडिंग मुश्किल हो सकती है। बैंक लंबी अवधि के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए कर्ज नहीं देना चाहते। वित्त वर्ष 2017-18 में बैंकों का कुल बैड लोन 10.4 लाख करोड़ था। सरकार के लिए अपनी जेब से इनकी फंडिंग भी आसान नहीं होगी। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी नरमी देखी जा रही है।
राजस्व : अगली सरकार को राजस्व बढ़ाने के लिए काफी जोर लगाना होगा। ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा है और जीएसटी सुधार की प्रक्रिया में है, अगली सरकार को रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ाने के लिए संघर्ष करना होगा ताकि नकदी बांटने की योजना को चला सके।
विदेश नीति : नई सरकार के लिए विदेश नीति के मोर्चे पर चुनौतियां कम नहीं होंगी। अमेरिका में प्रतिष्ठित भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में भारत और अमेरिका के रिश्तों में प्रगति हुई है। लेकिन व्यापार एवं आर्थिक मोर्चे पर तनाव बढ़ा है। ऐसे में घरेलू मोर्चे पर आर्थिक सुधारों में तेजी लानी होगी। संस्थाओं को भी मजबूती देनी होगी।
महंगाई : नई सरकार को बढ़ती महंगाई की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों में कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें लगातार बढ़ी हैं। पिछले दिनों न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के एक सर्वे में जानकारों ने यह बात मानी कि अप्रैल माह के लिए महंगाई दर बढ़कर छह महीने की ऊंचाई पर जा सकती है। सब्जियों-अनाज के दाम बढ़ रहे है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना तय है। ईंधन की कीमतों के बढ़ने खाद्य वस्तुओं की कीमतें और बढ़ जाएंगी।
इनसे भी निपटना होगा : राष्ट्रीय सुरक्षा और कृषि संकट जैसे कई बड़े मुद्दे भी होंगे जिनसे नई सरकार को निपटना होगा। स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य समस्याओं से निपटने पर भी मुस्तैदी से लगना होगा। सामाजिक मोर्चे पर भी सामंजस्य बिठाए रहने की चुनौती होगी।
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