प्री- मानसून बारिश मे हुई 22 % कमी, खतरे की घंटी

न्यूज़ डेस्क :  भारत में प्री-मानसून बारिश में इस बार 22 फीसद की कमी आई है। मार्च से मई के महीने में होने वाली यह बरसात देश के कई भागों में कृषि के लिए बेहद अहम होती है। जबकि मानसून आने की रफ्तार ठीक है और वह अगले 2-3 दिनों में अंडमान द्वीप पहुंच जाएगा।

 

भारतीय मौसम विभाग ने एक मार्च से 15 मई की अवधि में 75.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की है। जबकि इसी अवधि में सामान्य रूप से वर्षा 96.8 मिलीमीटर होती है। इसलिए इस साल प्री-मानसून बारिश में करीब 22 फीसद की गिरावट आई है। इस बीच, दक्षिण-पश्चिम अंडमान सागर में मानसून की स्थिति बेहतर हुई है। वह जल्द ही उत्तरी अंडमान सागर पहुंच जाएगा और अगले 2-3 दिन में मानसून अंडमान द्वीप पहुंच जाएगा।

 

दक्षिणी राज्यों में 46 फीसद की सर्वाधिक कमी दर्ज की गई : मौसम विभाग के चार मंडलों में से दक्षिणी प्रायद्वीप में सभी दक्षिणी राज्य आ जाते हैं। इस क्षेत्र में प्री-मानसून बारिश में 46 फीसद की कमी दर्ज की गई है, जोकि देश में सर्वाधिक है। इसके बाद, उत्तर-पश्चिमी उपमंडल में सभी उत्तरी राज्य आ जाते हैं। इस उपमंडल में 36 फीसद ही प्री-मानसून बारिश हुई है। यहां पर वैसे एक मार्च से 24 अप्रैल तक 38 फीसद बारिश होती है। लिहाजा, इस उपमंडल में प्री-मानसून बारिश में दो फीसद की कमी आई है।

 

इसी तरह पूर्वी और पूर्वोत्तर क्षेत्र में पूर्वी राज्य झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और पूर्वोत्तर राज्यों की प्री-मानसून बारिश में सात फीसद की कमी रही। जबकि मध्य क्षेत्र के महाराष्ट्र, गोवा, छत्तीसगढ़, गुजरात और मध्य प्रदेश में प्री-मानसून बारिश में कोई कमी नहीं हुई। इस अवधि में मध्य क्षेत्र में पांच फीसद प्री-मानसून बारिश हुई जोकि सामान्य है। इस क्षेत्र में प्रचंड लू भी चली। साथ ही महाराष्ट्र के कई बांधों में जरा भी पानी नहीं बचा है।

 

भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौर ने बताया कि पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों और पश्चिमी घाटों में प्री-मानसून बारिश दरअसल पौधारोपण वाली फसलों के लिए बेहद अहम है। मध्य भारत में गन्ना और कपास जैसी फसलें सिंचाई पर ही निर्भर हैं। उन्हें पूरक के तौर पर प्री-मानसून बारिश की भी जरूरत पड़ती है। हिमालय के वन क्षेत्र में प्री-मानसून बारिश सेब की खेती के लिए बेहद जरूरी है।

भारतीय मानसून और एटलांटिक नीनो में संबंध : भारत में गर्मियों में होने वाली मानसूनी बारिश और अटलांटिक सागर की सतह के तापमान में गड़बड़ी का आपसी संबंध है। एक ताजा शोध के मुताबिक इस नई जानकारी से भविष्य में भारत में मानसून की और सटीक भविष्यवाणी की जा सकेगी।

 

अबूधाबी में बसे भारतीय मौसम वैज्ञानिक अजय रविंद्रन के नेतृत्व में हुए इस शोध में बताया गया है कि गर्म होती दुनिया में बढ़ते टेलीकनेक्शन और भारतीय ग्रीष्म मानसूनी बारिश के बीच संबंध है। दरअसल, अटलांटिक सागर में असामान्य गर्मी या सर्दी को अटलांटिक जोनल मोड (एजेडएम) या अटलांटिक नीनो कहते हैं। इसे अफ्रीका के मौसम को प्रभावित करने वाले के रूप में जाना जाता है।

 

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