कलयुग में हनुमान जी के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता : स्वामी अवधेसानंद जी

पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
           ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जिन की कृपा और आशीष-अनुग्रह से दुर्गम सुगम, असाध्य साध्य और असंभव संभव बन जाता है; ऐसे संकटमोचक मोक्ष-प्रदाता महादेव श्रीहनुमान जी के प्राकट्य दिवस पर अनेक शुभकामनाएं ..! कलयुग में हनुमान जी के बिना कोई कार्य सिद्ध नहीं होता। भगवान श्रीहनुमान जी को स्मृतिगामी बताया गया है। जब भी भक्त उनका स्मरण करते हैं तो वे किसी न किसी रूप में दुःख के निवारण के लिए व सहयोग करने के लिए अवशय प्रकट होते हैं। हनुमान जी अतुलित बलधाम हैं, श्रेष्ठ ज्ञानी हैं और प्रभु श्रीराम के सबसे प्यारे भक्त भी हैं। वो विषम परिस्थितियों में सज्जनों के एक मात्र अवलम्ब हैं। संकट के समय सेवक भाव से उन्होंने जगत के आराध्य भगवान श्रीराम की सहायता की। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हनुमान जी की आराधना से सद्ज्ञान की प्राप्ति होती है।मनुष्य शारीरिक रूप से स्वस्थ दिखता है, लेकिन मानसिक रूप से वह स्वस्थ है यह कहना कठिन है। मानसिक रोग हनुमान जी ही ठीक करते हैं।
संसार ही एक रोग है, इस सांसारिकता के बंधन से हनुमान जी ही मुक्ति दिलाते हैं, अर्थात्, “नासै रोग हरे सब पीरा ..”! वेद कहते हैं कि सभी दु:खों की जड़ अज्ञानता है और जो हनुमान जी की उपासना करते हैं उन्हें ज्ञान की प्राप्ति होती है। जितनी सिद्धियां हैं, वे हनुमान जी की कृपा से ही मिलती हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के सेवक, कार्य साधक भगवान हनुमान की महिमा अपरंपार है। उनके स्मरण मात्र से ही भूत-प्रेत, पिशाच तथा अनिष्टकारी शक्तियाँ दूर भाग जाती हैं। महावीर, ज्ञान, वैराग्य, बुद्घि के प्रदाता की साधना के अनेक रूप प्रचलित हैं। अपने भक्त की प्रार्थना सुनकर महावीर तत्काल सभी का कष्ट हर लेते हैं। लोक देवता के रूप में भगवान हनुमान जी की भी आराधना की जाती है।”शंकर स्वयं केसरीनंदन …” वे साक्षात परमेश्वर रूद्र हैं। हनुमान संत हैं। जो भी प्राणी श्रीहनुमान जी की शरण गया। समझो उन्होंने उसे प्रभु श्रीराम से मिलवा दिया। कलयुग में हनुमान जी ही एक ऐसे देवता हैं। जो अजर-अमर हैं। जिस तरह हनुमान जी परमात्मा का पावन नाम सुमिरन कर परमात्म-भाव को प्राप्त हुए, उसी तरह समस्त प्राणी को प्रभु का नाम सुमिरन कर अपना कल्याण करना चाहिए …।
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 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हनुमान जी से जानिए सफलता के सूत्र। जीवन में बड़ा काम करने से पहले तीन चीजें आवश्यक हैं । पहला – काम प्रारम्भ करने के पहले भगवान का नाम लें। दूसरा – बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें। और, तीसरा है – किसी भी कार्य का आरंभ मुस्कुराते हुए करें। हर मनुष्य को अपने जीवन काल में सफलता प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना होगा, क्योंकि बिना संघर्ष के सफलता नहीं पाई जा सकती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हनुमान जी है। जैसे – रामभक्त हनुमान जी ने भी लंका जाने के लिए और वहां माता सीता को खोजने के लिए बहुत संघर्ष किया था। इसलिए मनुष्य को संघर्ष के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। स्वयं हनुमान जी ने भी लंका जाने के पहले इन तीनों कामों को किया था।
उन्होंने हमें बताया कि – सफलता का पहला सूत्र है- सक्रियता। जैसे हनुमान जी हमेशा सक्रिय रहते थे। वैसे ही मनुष्य का तन हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और मन निष्क्रिय होना चाहिए। मन का विश्राम ही ध्यान (मेडीटेशन) है। आप मन को निष्क्रिय करिए तो जीवन की बहुत-सी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाएंगी। सफलता का दूसरा सूत्र है – सजगता। मनुष्य को हमेशा सजग रहना चाहिए। और, यह तभी संभव है, जब उसका लक्ष्य निश्चित होगा। इससे समय और ऊर्जा का सदुपयोग होगा। इसका उदाहरण यह है कि स्वयं हनुमान जी ने लंका यात्रा के समय कई तरह की बाधाओं का सामना किया। सबसे पहले उन्होंने मैनाक पर्वत को पार किया, जहां पर भोग और विलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध थी, लेकिन हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को केवल छुआ। अन्य चीजों पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इसके बाद उन्हें सुरसा नामक राक्षसी मिली। इसे पार करने के लिए हनुमान जी ने लघु रूप धारण किया। हनुमान का यह लघु रूप हमें बताता है कि दुनिया में बड़ा होना है, आगे बढ़ना है तो छोटा होना पड़ेगा।
छोटा होने का तात्पर्य यहां आपके कद से नहीं, अपितु आपकी विनम्रता से है। यानी हमें विनम्र होना पड़ेगा। सफलता का तीसरा सूत्र है – सक्षम होना। मनुष्य को तभी सफलता मिल सकती है, जब वह सक्षम होगा। सक्षम होने का अर्थ केवल शारीरिक रूप से ही सक्षम होना नहीं है, बल्कि तन, मन और धन तीनों से सक्षम होना है। जब हम इन तीनों से पूरी तरह सक्षम हो जाएंगे तभी हम सफलता को प्राप्त कर सकेंगे। ऋद्धि-सिद्धि और शक्ति प्रदाता श्रीहनुमान जी की आराधना परम वैभव और सुख-शांति देने वाली है। शनि का प्रकोप हो तो उनकी आराधना अमोघ अस्त्र बन जाती है। जिसने एक बार भी श्रीहनुमान जी का सच्चे दिल से स्तवन कर लिया, उसने विजय प्राप्त कर ली। वह भगवान श्रीराम के भक्त हैं, सीता मैया के दुलारे हैं और भगवान शंकर जी के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। उनकी पूजा रुद्र की ही पूजा है। भगवान शंकर की तरह ही वह शीघ्र फल प्रदान करते हैं और अपने भक्तों को निराश नहीं होने देते …।

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