सफलता तीन बातों पर निर्भर होती है – श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया : स्वामी अवधेसानंद जी

ज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
           ।। श्री: कृपा ।।
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 पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जैन घर्म के पंचशील सिद्धांत-अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य का प्रतिपादन कर मानव मात्र के लिए “आत्म-कल्याण” का मार्ग प्रशस्त करने वाले चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर जी के प्राकटय दिवस की अनेकानेक मंगलकामनाएं ..! जैन परंपरा में ‘अहिंसा परमोधर्मः …’ का सिद्धांत न केवल शारीरिक हिंसा को मिटाने के लिए है, बल्कि मानव कल्याण और अनुकम्पा के लिए विशिष्ट है। भगवान महावीर ने ‘अपरिग्रह’ (यानी, जीवन के लिए अनिवार्यता से अधिक ग्रहण नहीं करना) को विशेष महत्व दिया। मानव जाति प्रकृति का दोहन कर रही है। इसके परिणाम-स्वरूप जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्म में से एक है। ‘जैन धर्म’ का अर्थ है – ‘जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म’। जो ‘जिन’ के अनुयायी हों उन्हें ‘जैन’ कहते हैं। ‘जिन’ शब्द बना है ‘जि’ धातु से। ‘जि’ माने – जीतना। ‘जिन’ माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या ‘जिन’ कहा जाता है। भगवान महावीर कहते थे कि जो भी जैन निर्वाण को प्राप्त करना चाहता है उसको स्वयं के आचरण, ज्ञान और विश्वास को शुद्ध करना चाहिए और पाँच प्रतिज्ञाओं का पालन अवश्य करना चाहिये।
जैन धर्म में तप की बहुत बड़ी महिमा है। उपवास को भी एक तप के रूप में देखा गया है। कोई भी मनुष्य बिना ध्यान, अनशन और तप किये अन्दर से शुद्ध नहीं हो सकता। यदि वह स्वयं की आत्मा की मुक्ति चाहता है तो उसे ध्यान, अनशन और तप करना ही होगा। महावीर स्वामी ने पूर्ण अहिंसा पर जोर दिया है। इनकी दृष्टि में अहिंसा परम धर्म है। वे अहिंसा को धर्म की आँख से नहीं, बल्कि धर्म को अहिंसा की आँख से देखते थे। अहिंसा पर जितना जोर महावीर स्वामी ने दिया है उतना शायद ही किसी अन्य महापुरुष ने दिया हो। और, तब से ही “अहिंसा परमो धर्मः …” जैन धर्म में एक प्रधान सिद्धांत माना जाने लगा। सत्य, अहिंसा, शांति और सद्भाव के उपासक भगवान महावीर ने प्रत्येक भारतवासी को जाति-धर्म एवं ऊंच-नीच की संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर सामाजिक समरसता के मार्ग पर चलना सिखाया। इस प्रकार उनका जीवन-दर्शन एवं आदर्श सदियों तक मानव जाति का पथ अालोकित करते हुए हमें कठिन समय में सदैव राह दिखता रहेगा …।
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 पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – किसी भी कार्य की सफलता तीन बातों पर निर्भर होती है – श्रद्धा, ज्ञान और क्रिया। जैन शास्त्रों में इन्हें सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र कहते हैं। सम्यक् दर्शन अर्थात्, सच्चे देवशास्त्र-गुरु पर श्रद्धा करना। सम्यक् दृष्टि वाले मनुष्य पृथ्वी और परलोक के भय, रोग-भय, मरण-भय, चौरासी योनियों के भय एवं सांसारिक मान-सम्मान आदि के भय से मुक्त होते हैं। सम्यक् ज्ञान – सच्चे ज्ञान को सम्यक् ज्ञान कहते हैं। इसके पांच भेद हैं – (1.) मतिज्ञान (2.) श्रुतज्ञान (3.) अवधि ज्ञान (4.) मन:पर्याय ज्ञान, और (5.) कैवल्य ज्ञान। इंद्रियों व मन द्वारा जो पदार्थों का बोध होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं। मतिज्ञान द्वारा जाने हुए पदार्थों को विशेष रूप से जानना या श्रुतज्ञान कहते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि की मर्यादा लेकर जो ज्ञानरूपी पदार्थों को जानता है, उसे अवधि ज्ञान कहते हैं। जो ज्ञान दूसरे के मन के विचारों को जान लेता है, उसे मन:पर्याय ज्ञान कहते हैं। जो ज्ञान समस्त द्रव्यों और उनके त्रिकालवर्ती पर्यायों को एकसाथ जानता है, उसे कैवल्य ज्ञान कहते हैं। सम्यक् चरित्र – चोरी, हिंसा, झूठ, परिग्रह, कुशील – इन पांच पापों के त्याग को सम्यक् चरित्र कहते हैं।
इसके दो भेद हैं – (1.) देश चरित्र, और (2.) सकल ‍चरित्र। श्रावकों के व्रतों को देशचरित्र कहते हैं और मुनियों के व्रतों को सकल चरित्र। श्रावक (गृहस्थ) पाप न करने की संकल्प करता है, किंतु मुनि उसके अनुसार आचरण करते हैं। पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – स्वयं के और दूसरे के बारे में हिंसा का विचार भी न लाने से चित्त में स्थिरता आती है। ऐसा सोचने और करने से सकारात्मक ऊर्जा का जन्म होता है। सकारात्मक ऊर्जा से आपके आस-पास का वातावरण भी खुशनुमा होने लगता है। यही सकारात्मक वातावरण आपकी सफलता का आधार है। अतः अहिंसा से ही स्वयं को स्वयं की देह, मन और बुद्धि के सारे क्रिया-कलापों से उपजे दु:खों से स्वतंत्रता मिलेगी। अर्थात्, अहिंसा की साधना से बैर भाव निकल जाता है। बैर भाव के जाने से काम, क्रोध आदि वृत्तियों का निरोध होता है। वृत्तियों के निरोध से शरीर निरोगी बनता है। इससे मन में शांति और आनंद का अनुभव होता है। सही और गलत में भेद करने की शक्ति आती है और सभी को मित्रवत समझने की सकारात्मक दृष्टि बढ़ती है …।

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