नई दिल्ली/ गुड़गांव, अप्रैल 2019 : नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट लिमिटेड (एनआरआइ कंसल्टिंग एंड सॉल्यूशंस), भारत में रोजगार अवसर सूचकांकों पर गहराई से अध्ययन करने के बाद, इस अनुमान पर पहुंचा है कि भारत का एमएसएमई (माइ्क्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज) सेक्टर अगले 4 से 5 सालों में 1 करोड़ से अधिक नौकरियों का सृजन करने के लिए तैयार है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यम वर्ग का विकास और खर्च करने योग्य आमदनी में बढ़ोतरी से भारत खपत के लिए एक आकर्षक बाजार है.
हालांकि, भारत में खपत किये जाने वाले महत्वपूर्ण हिस्से को आयात से पूरा किया जाता है, इस तरह नौकरियों का सृजन करने में घरेलू विनिर्माण क्षेत्र की क्षमता सीमित हो जाती है. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है, पर मैन्युफैक्चरिंग एमएसएमई को विभिन्न स्थानों में विस्तारित करने पर यदि ज्यादा ध्यान दिया जाये तो कई नौकरियां पैदा की जा सकती है. इसके लिए ऐसे उपाय अपनाने होंगे जो एमएसएमई की बाजार प्रतिस्पर्धात्मकता सुधारने पर लक्षित हों.
भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर दोहरी जिम्मेदारियां हैं. पहली श्रमिकों को कृषि से शिफ्ट कर इसमें शामिल करना और दूसरा इन नये जोड़े गये श्रमिक बल की जरूरतों को पूरा करना. एमएसएमई मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 के अनुसार, एमएसएमई सेक्टर विनिर्माण क्षेत्र में 3.6 करोड़ नौकरियों (~70 प्रतिशत) का योगदान देता है. एमएसएमई भारत के विभिन्न स्थानों में फैली हुई हैं (यूएनआइडीओ के अनुसार). विभिन्न क्लस्टर्स में बनाये जाने वाले उत्पाद समूहों पर एक विस्तृत नजर डालते हैं – 1) आर्टिफिशियल ज्वेलरी, खेल के सामान, वैज्ञानिक उपकरण, प्लास्टिक के खिलौने आदि, 2) धातु के बर्तन, मशीन उपकरण जैसे टेक्सटाइल मशीनरी, बिजली के पंखे, मिक्सर, थ्रेशर्स आदि, 3) रबर, प्लास्टिक, चमड़ा और संबंधित उत्पाद, 4) साइकिल के पुर्जे, और ऑटो कंपोनेंट्स, और 5) टेक्सटाइल, लकड़ी, कागज, खाद्य, खनिज और रासायनिक उत्पाद. भारत में ये सभी सामान बताते हैं कि इन एमएसएमई को विकसित करने पर ध्यान देने से अगले 4-5 सालों में अतिरिक्त 75 लाख से 1 करोड़ रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते हैं तथा आयात को भी कम किया जा सकता है.
श्री आशिम शर्मा, पार्टनर एवं ग्रुप हेड, एनआरआइ कंसल्टिंग एंड सॉल्यूशन्स ने कहा, ”मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम बदलते उपभोक्ता व्यवहार और दुनिया भर में हो रहे तकनीकी रूझानों के विभिन्न ट्रेंड्स के प्रभाव में निरंतर विकसित हो रहा है. इसने भारत के घरेलू सूक्ष्म और लघु-स्तरीय उद्योगों को अभिप्रेरित किया है और जिससे रोजगार निर्माण हो रहा है. अपना दायरा बढ़ाने के लिये एमएसएमई सेक्टर को एक बाजार-उन्मुख रणनीति की जरूरत है, जोकि मांग से प्रेरित उत्पादन और उत्पादों की एडवोकेसी मार्केटिंग के दो प्रमुख क्षेत्रों पर आधारित है.
मांग से प्रेरित उत्पादन में उत्पाद की विशेषताओं का फैसला करने का अधिकार है. इसके लिए ग्राहकों की वास्तविक जरूरतों के साथ तकनीकी मानदंडों को कोरिलेट कर प्रतिस्पर्धी उत्पादों का विश्लेषण किया जाता है. इससे सुनिश्चित होता है कि जिन उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है, वे सही विशिष्टता स्तर के हैं यानी ओवरडिजाइंड नहीं हैं और लागत अप्रतिस्पर्धी अथवा कम विशिष्ट नहीं हैं और सर्विस लाइफ जरूरतों को पूरा नहीं कर रहे हैं. आयातित उत्पादों की विशिष्टताओं के साथ (एमएसएमई उत्पाद के प्रतिस्पर्धी) तुलना भी यह सुनिश्चित करेगी कि एमएसएमई आयातित उत्पादों के सभी सकारात्मक पहलुओं को पूरा करते हैं,साथ ही उन क्षेत्रों में सुधार किया जा सकेगा जिनमें आयातित उत्पाद कमतर हैं, इस तरह अनूठा बिक्री प्रस्ताव (यूएसपी) निर्मित होगा.
इस रिपोर्ट में एडवोकेसी मार्केटिंग की भूमिका के बारे में विस्तार से बताया गया है जोकि एमएसएमई द्वारा बनाये जाने वाले उत्पादों के बारे में एक सकारात्मक धारणा विकसित करने में मदद कर सकती है. क्योंकि कई पारंपरिक उद्योग “सस्ते” और “खराब गुणवत्ता” व “ट्रेंडी” नहीं होने आदि की धारणा के कारण आयात पर निर्भर करते हैं. इसे सुनिश्चित करने के लिए, रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न उपभोक्ता वर्गों में बी2बी एवं बी2सी दोनों क्षेत्रों में ‘प्रमुख प्रभावशाली व्यक्तियों’ को ढूंढना चाहिये. इसके बाद इन लोगों को उत्पादों का अनुभव करना चाहिये और इनकी डिजाइन एवं उत्पादन में लाये जाने वाले बदलावों (जहां आवश्यक हो) पर भी अपना परिदृश्य देना चाहिये ताकि उन्हें आधुनिक उपभोक्ता की मांगों के अनुरूप बनाया जा सके. यह ‘प्रमुख प्रभावशाली व्यक्ति’, यदि उत्पादों से संतुष्ट होते हैं, तो वे विभिन्न उपभोक्ता वर्गों में एमएसएमई उत्पाद के लिए ब्रांड एंबेसेडर के तौर पर काम करेंगे और उनका सकारात्मक प्रचार करने में मदद मिलेगी. इस तरह, ग्राहक उत्पाद खरीदते समय एमएसएमई उत्पादों पर विचार करेंगे.
उदाहरण के लिए, ऑटोमोटिव उद्योग में 40 प्रतिशत टूलिंग मांग (डाईज एवं माउल्डस) को आयात से पूरा किया जाता है क्योंकि भारतीय ओईएम अभी भी भारत के टूल रूम्स के बजाय अपनी टूलिंग जरूरतों के लिए आयात को पसंद करते हैं. ये टूल रूम्स ज्यादातर एमएसएमई हैं. भारतीय टूल विनिर्माताओं का दायरा बढ़ाने से ऑटो ओईएम को स्थानीय उत्पादन करने और बॉटम-लाइन सुधारने में मदद मिलेगी और इसी समय टूलिंग उद्योग के लिए रोजगार सृजन होगा.
एनआरआई कंसल्टिंग एंड सॉल्यूशन्स के विषय में :
एनआरई कंसल्टिंग एंड सॉल्यूशन्स जापान में एक सबसे बड़ी कंसल्टिंग फर्म है, जिसकी एशिया में बेहद मजबूत उपस्थिति है. भविष्य का निर्माण और नवाचार करना एनआरआइ के डीएनए का एक हिस्सा है. एनआरआई ग्रुप में ऐसा माना जाता है कि मूल्य निर्माण में उन समस्याओं का पता लगाना शामिल है, जिनका सामना क्लाइंट्स और मार्केट्स द्वारा किया जा रहा है और साथ ही इन मुद्दों का समाधान करने में क्लाइंट्स की मदद की जा रही है. एनआरई के दुनिया भर में 700 कंसल्टेंट्स है. इसके अलावा भारत में इसकी 120 से अधिक कंसल्टेंट्स की एक मजबूत टीम है, जिसका फोकस स्ट्रैटेजी एंड बिजनेस परफॉर्मेंस इंप्रूवमेंट्स (बीपीआइ) प्रोजेक्ट्स पर है.
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