न्यूज़ डेस्क : हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की इमानदारी के कायल उनके विरोधी भी है l मोदी सरकार को एक और मौका मिलने के प्रति आश्वस्त शांताकुमार चुनाव ना लड़ने की घोषणा कर चुके है l एक निजी अखबार से बातचीत में शांता कुमार ने बहुत सारी बातों का जिक्र किया , उन्होंने कहा कि एक समय कांग्रेश को हटाना बड़ा मुद्दा था लोगों को नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और विकास का गुजरात मॉडल पसंद आया l
इस बार हमें उपलब्धियों की बदौलत पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा l पहली बार विकास को सामाजिक न्याय से जोड़ा गया है l ग्लोबल हंगर इंडेक्स उनके अनुसार देश में 20 करोड से ज्यादा लोग हैं जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता सरकार को इस पर भी काम अभी करना है l उन्होंने चुनाव में 75 साल की उम्र की तय की गई सीमा पर भी बोला कि नए चेहरों का आना चाहिए मगर पुराने चेहरों के लिए भी सम्मानजनक रास्ता हो l जहां तक टिकट का सवाल है तो यह नेतृत्व का फैसला है किसको टिकट दिया जाए और किसको नहीं दिया जाए l उन्होंने कहा मैं पिछले चुनाव नहीं लड़ना चाहता था राजनाथ जी ने दबाव बनाया की आप चुनाव न लडे ,इस बार भी मैंने पहले ही चुनाव में लड़ने की घोषणा कर दी l
आडवाणी जी का जहां तक सवाल है तो उन्हें चुनाव ना लड़ने के लिए पार्टी बेहतर कोई और तरीका भी निकल सकती थी l टिकट की घोषणा के बाद मैं उनसे मिलने गया था, उनकी आंखों में आंसू थे जो बहुत पीड़ादायक लगा l वैसे भी वो कम बोलते हैं परन्तु उनसे मिला तो उन्होंने कुछ बोला तो नहीं मगर उनकी आंखों में आंसू थे , जो बहुत कुछ कह रहे थे l उन्होंने कहा कि राजनीति का हालात यह है कि नेताओं की दुकान सजी हुई है और अब टिकट निष्ठा का पैमाना बन गया है l राजनीती जब इस स्तर तक पहुंच जाए तो मन में सवाल उठता है कि क्या शहीदों के सपनों का भारत ऐसा ही होगा l उनका अनुभव पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 90 के दशक तक तो सियासत में सब ठीक था इसके बाद लोकसभा लोकसभा और शोकसभा बन गई है l एक दिन मैंने आडवाणी जी को दर्शक गैलरी की ओर दिखाया वहा कार्रवाई देखने आए एक छात्र ने संसद में शोर-शराबे के कारण हमें देख कर मुस्कुरा रहा था इसके बाद हम दोनों संसद से बाहर निकल गए l
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