पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सत्संग-स्वाध्याय और अखण्ड-प्रचण्ड पुरुषार्थ जीवन सिद्धि के सहज साधन हैं ! मनुष्य जीवन ईश्वर का अमूल्य उपहार है, इसका प्रत्येक पल महनीय और अनन्त संभावनाओं से परिपूर्ण है। अतः जीवन मूल्यों के प्रति सचेत एवं पुरुषार्थ सम्पन्नता रहे ..! सत्संग से जीवन संस्कारित होता है। संत समागम व सत्संग मानवता के कल्याण का महाकुंभ है। सत्संग रूपी महासागर में जो डुबकी लगाते हैं, वो अपने जीवन को सफल बना लेते हैं। सत्संग जीवन को निर्मल और पवित्र बनाता है। यह मन के खराब विचारों और पापों को दूर करता है। वाणी में सत्यता का संचार होता है। सत्संग मनुष्य का हर तरह से कल्याण करता है। सत्संग में जाने से व्यक्ति का जीवन संस्कारवान हो जाता है। सत्संग के बिना मानव का जीवन व्यर्थ होता है। भगवान की कृपा के बिना संत की प्राप्ति नहीं होती है। जीवन में व्यस्तता होते हुए भी सत्संग के लिए समय निकालना चाहिए। भगवान की कथा श्रवण से आनंद की प्राप्ति होती है। जन्म-मरण रूपी रोग का निवारण सद्गुरु की दी गई ज्ञान रूपी औषधियों से होती है। सत्संग ही जीवन की सभी समस्याओं का एकमात्र निदान है।
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सत्संग जीवन का रस है, यह विचारों का अमृत तथा जीवन का आनंद है। परमानंद की प्राप्ति के लिए सत्संग के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है। प्रभु का नाम-स्मरण तथा कीर्तन से महान आध्यात्मिक शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। शुभ कर्म का फल है – सत्संग। सत्संग जीवन का अमृत है। सत्संग के बिना जीवन नीरस हो जाता है। जीवन आनंदमय बनाने के लिए सत्संग ही एक मात्र रास्ता है। जीवन की सभी समस्याओं का समाधान सत्संग से हो जाता है। वर्तमान में हर मनुष्य चाहता है कि वह स्वस्थ रहे, समृद्ध रहे और सदैव आनंदित रहे तथा उसका कल्याण हो। यदि मनुष्य का वास्तविक कल्याण किसी में निहित है तो वह केवल सत्संग में ही है। सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है। संत-सत्पुरुषों का सान्निध्य जीवन को आनन्दमय बनाने का पाथेय है। सत्संग जीवन के विषाद का निवारण करने की औषधि, जीवन को विभिन्न सम्पत्तियों से समृद्ध करने की सुमति है, जो महापुरुषों का संग करने से मिलती है। इस प्रकार महान विभूतियों की अमृतमय योगवाणी से ज्ञानपिपासुओं की ज्ञानपिपासा शांत होती है, दुःखी एवं अशान्त हृदयों में शांति का संचार होता है एवं घर संसार की जटिल समस्याओं में उलझे हुए मनुष्यों का पथ प्रकाशित होता है …।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि स्वाध्याय में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए। स्वाध्याय मन की मलिनता को साफ करके आत्मा को परमात्मा के निकट बिठाने का सर्वोत्तम मार्ग है। “मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम् “॥ मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है, जो मन विषयों में आसक्त हो तो बंधन का कारण बनता है और निर्विषय अर्थात वीतराग हो जाता है तो मुक्ति अर्थात मोक्ष का कारण बनता है। अतः प्रत्येक विचारवान व्यक्ति को प्रतिदिन संकल्पपूर्वक सद्ग्रंथों का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है। जो हमेशा स्वाध्याय करता है, उसका मन हमेशा प्रसन्नचित और शांत रहता है। स्वाध्याय से ज्ञानवर्धन होता है, जिससे धर्मं और संस्कृति की सेवा होती है। स्वाध्याय से अज्ञान और अविद्या का आवरण हटने लगता है और वेदादि शास्त्रों के दिव्य ज्ञान का प्राकट्य होता है। प्रतिदिन स्वाध्याय करने से बुद्धि तीव्र हो जाती है।
अभ्यास से संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं। जो साधक प्रतिदिन स्वाध्याय करते हैं, वे कभी भी साधना से भटकते नहीं। जो प्रतिदिन स्वाध्याय करता है, उसकी बुद्धि इतनी सूक्ष्म हो जाती है कि वह प्रकृति के रहस्यों को स्वतः जानने लगता है। जो प्रतिदिन साधना करता है, वही उच्चस्तरीय साधनाओं का अधिकारी हो सकता है। जिन्हें ईश्वर में श्रृद्धा और विश्वास नहीं होता, उन्हें चाहिए कि प्रतिदिन स्वाध्याय करें तथा प्रतिदिन ईश्वर के दिए हर उपहार के लिए कृतज्ञता प्रकट करे और ईश्वर को धन्यवाद दे। अध्यात्म सागर पर जो कुछ भी लिखा गया है, यह सब लेखक के स्वाध्याय का ही परिणाम है। अतः जीवन में संयम, सेवा, स्वाध्याय, सत्संग, साधना के द्वारा स्वात्मोत्थान कर हर कोई ऋषि-महर्षि हो सकता है ..!
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