सपने रे सपने रे सच हो जाना रे

     अपना प्रयास नया आकाश 

 

गर्मी हो या बरसात कोई भी मौसम हो हम अपनी पीठ पर एक झोला रखे हुए  चलते रहते हैं, पूरे शहर घूमते हैं सिर्फ इसलिए कि शाम को रोटी नसीब हो सके l  हम पूरे शहर में कचरा मे से कुछ काम की चीज़ ढूढ़ते हैं l उस कचरे में हाथ  डालते हैं जिसे लोग छूना पसंद नहीं करते l आम लोग सोचते है हम कचरा छु देंगे तो मर जाएंगे और हम सोचते है की हम नहीं छुएंगे तो मर जाएंगे l हमें नहीं पता की देश में स्वच्छता अभियान भी चल रही है शहरों को स्वच्छ बनाया जा रहा है l  परंतु हमें और हमारे जीवन को स्वच्छ बनाने के लिए कोई काम नहीं कर रहा है , न सरकार और ना ही जनता l हम सुबह उठते हैं अपने काम पर जाते हैं शाम को आते हैं अपने सपने को लिए हुए और यह सोचते हुए की मैं भी कभी स्कूल जाता मैं भी पढ़कर ऑफिसर बनता l  मेरे अंदर भी वो सबकुछ है जो सब मे है परंतु मेरे पास संसाधन नहीं है l सभी की तरह मैं भी भारतीय हूं और मेरे मैं भी भारत है l  परंतु मेरी जिंदगी इसी में शुरू होती है यहीं खत्म होती है l बस यह सोचते हुए की –” सपने रे सपने रे सच हो जाना रे ” और बस यह इंतजार करते हुए की कभी तो सपना सच होगा और हम भी अन्य बच्चों की तरह अपने जीवन में मान सम्मान पाएंगे l  काश हमें भी वहां जन्म मिला होता जहां हम अपने सपने पूरा कर पाते l  बस यही सोच कर आंखों में आंसू लिए आगे चले जाते है !

 

क्या हम ऐसे बच्चों की मदद करने के लिए आगे आ सकते हैं ? इनके सपने पूरा करने में सहयोग कर सकते हैं ? अगर आप इनका  सहयोग करने की इच्छा रखते है तो हमसे जुड़ें  l हमारे में प्रयास में बाल मजदूरी से देश को आजाद कर  बाल शिक्षा की ओर अग्रसर करने के प्रयास मे l

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