पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – मन मनुष्य के बंधन एवं मोक्ष का कारण है। जैसे ही मन अज्ञान-आवरण से आवृत होता है, बंधन एवं दुःखों का कारण बन जाता है और ज्ञान प्रकाश का प्रस्फुटन होते ही मूढ़-मान्यता, भ्रम और संशयों का साम्राज्य स्वतः तिरोहित हो जाता है, तब मन मोक्ष एवं आनन्द का साधन बन जाता है, अतः मन शुभ-संकल्पित रहे ..! शुभ-संकल्प में अलौकिक शक्तियाँ एवं अप्रतिम सामर्थ्य विद्यमान है। मन में शुभ, पवित्र और दिव्य संकल्प उदित होते ही सकारात्मक चेतना, वह सफलता का संचार होने लगता है। यहाँ संकल्प-शक्ति के स्वरूप को समझने की आवश्यकता है। हवा के आघात से जिस प्रकार जल में तरंगें उठा करती हैं और एक किनारे से दूसरे किनारे तक दौड़ा करती हैं, जो लहरें अधिक शक्तिशाली होती हैं वे अधिक वेग और कम्पन के साथ किनारों से थपेड़े भरती हैं, उसी तरह मन में भी शुभ-अशुभ विचारों के कम्पन या तरंग उठा करती हैं जो सूक्ष्म आकाश में सुदूर तक प्रसारित होती रहती हैं। प्रत्येक विचार का एक निश्चित स्वरूप होता है, जो दूसरे सजातीय प्रवाहों के साथ मिलकर और भी शक्तिशाली बनता रहता है। इस तरह के अनेक संकल्प-विकल्प इस सूक्ष्म जगत में विद्यमान हैं, पर उनका लाभ मनुष्य को तब मिल पाता हैं, जब वह विशेष मनोयोग पूर्वक किसी एक इच्छा की पूर्ति की ओर प्रवृत्त होता है। इस तरह का मस्तिष्क उन सजातीय विचार-तरंगों को सूक्ष्म-आकाश से उसी तरह खींचता है, जैसे भूखा अजगर साँस की तेजी के साथ छोटे-छोटे अनेक जीव-जन्तु, कीट-पतंगों को खींच लेता हैं। सजातीय तत्वों की एक अदृश्य शक्ति काम करने लगती है और सफलता के अनेक मार्ग अपने आप सूझने लगते हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई दैवीय-शक्ति आपका साथ दे रही है, किन्तु वह शक्ति संकल्प की होती है जो मस्तिष्क में अनेक पुरुषों की वैसी ही कल्पनायें तथा सूझ-बूझ ढूंढ़कर लाती रहती है और विचारवान व्यक्ति उनमें से अपनी परिस्थितियों के अनुरूप साधनों को ग्रहण करता हुआ चला जाता हैं। इस प्रकार इससे सफलता प्राप्त करने में कुछ अधिक देर नहीं लगती …।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सच्चे मन से संकल्प करने वाले पर ही प्रभु कृपा होती है। शुभ-संकल्प और पवित्र कार्य करने से मन शुद्ध होता है, जो उन्हें मोक्ष के मार्ग पर ले जाता हैं। साहस और निश्चयात्मक विश्वास संकल्प के दो पहलू हैं, इन्हीं से मनुष्य की जीत होती है। साहस निरन्तर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देता है। इससे कर्म में गति बनी रहती है। निश्चयात्मक विचार प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सन्तुलन बनाये रहते हैं, इस तरह से मनुष्य अविचल भाव से अपने इच्छित कर्म पर लगा रहता है। स्वास्थ्य की तरह शिक्षा, उद्योग, साधना आदि अनेकों क्षेत्रों में संकल्प शक्ति से द्रुतगामी सफलता अर्जित की जा सकती है। मन में यदि शुभ-संकल्प या विचार आ रहे हैं तो उन्हें आचरण में उतारने में तनिक भी विलंब नहीं करें। उसे शीघ्र साकार करें। श्रीमद् भागवत श्रवण से पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। श्रीमद् भागवत अनमोल और अनूठा ग्रंथ है जिसमें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का तेज समाहित है। सुख-दु:ख दोनों स्थिति में प्रभु का स्मरण जरूरी है। सुख को तो सभी भगवान की कृपा मानते हैं, लेकिन दुःख को भी भगवान की कृपा या प्रसाद मानेंगे तो यह हमारी श्रद्धा-विश्वास का प्रमाण होगा। पूज्य “आचार्यश्री जी” ने कहा कि कब तक दीन-हीन व अशांत होकर तनाव भरा जीवन जीते रहेंगे। उन्होंने युवाओं में अच्छे संस्कारों व नैतिक मूल्यों का संचयन हो, इसके लिए अच्छे साहित्य को मित्र बनाने को प्रेरित किया। अशुभ-विचारों की अशुभ प्रतिक्रिया को ही ध्यान में रखते हुये शास्त्रकार ने लिखा है – “यत् प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च, यज्ज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्नऋते किंचन कर्म क्रियते, तन्मेमनः शिव संकल्पमस्तु …”॥ “अर्थात्, जिस मन से अनुभव, चिन्तन तथा धैर्य धारण किया जाता है, जो इन्द्रियों में एक तरह की ज्योति है, वह मेरा मन शुभ संकल्प वाला हो …।”
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