आईआईटी-आईआईएम भी जूझ रहे शिक्षकों की कमी से
देश की उच्च शिक्षा में शीर्ष स्थान रखने वाले दो संस्थानों आईआईटी और आईआईएम को भी शिक्षकों की भारी कमी से जूझना पड़ रहा है। आईआईएम इंदौर में लगभग 57 पद खाली है। देशभर के आईआईएम में जहां शिक्षकों के 26 फीसदी पद खाली पड़े हैं, वहीं आईआईटी में 35 फीसदी शिक्षकों की कमी है। सूत्रों के मुताबिक सरकार शिक्षकों की कमी के चलते शिक्षा के स्तर पर किसी भी तरह के असर से इनकार करती है। जबकि आईआईटी व आईआईएम इंडस्ट्री के विशेषज्ञों, रिसर्च स्कॉलर्स और गेस्ट फैकल्टी की सेवाएं लेते रहते हैं, इसलिए शिक्षकों की कमी से पढ़ाई पर कोर्स असर नहीं पड़ता है।
पढ़ाई छोडऩे वालों की संख्या में 35 फीसदी इजाफा
आईआईटी के 889 स्टूडेंट ने साल 2016-17 की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी है। वहीं 2016-17 सत्र के 9 फीसदी स्टूडेंट ने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की। पढ़ाई छोडऩे वाले स्टूडेंट में 630 पीजी के, 196 पीएचडी के और 63 स्टूडेंट ग्रेजुएशन के हैं। आईआईटी में कुल सीटों की संख्या 9,885 है। 2015-16 में 23 आईआईटी संस्थानों में 656 स्टूडेंट ने अपनी पढ़ाई छोड़ी थी। इस साल पढ़ाई छोडऩे वाले स्टूडेंट की संख्या में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है। देश में कुल 23 आईआईटी में शिक्षकों के 8025 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 19 आईआईटी में 3132 शिक्षकों के पद खाली हैं। जबकि देश में 13 आईआईएम में शिक्षकों के कुल 908 पद स्वीकृत हैं। इनमें से 227 पद खाली पड़े हैं। सूत्रों की माने तो मंत्रालय ने पुरान स्टूडेंट, वैज्ञानिकों और विदेशी शिक्षकों को समय-समय पर आईआईटी आने के लिए आमंत्रित किया है। जानकारों के मुताबिक पीजी और पीएचडी में स्टूडेंट के पढ़ाई छोडऩे का कारण पब्लिक सेक्टर में मिलने वाला इंटर्नशिप प्रोग्राम है। जबकि ग्रेजुएशन वाले स्टूडेंट ने अपने गलत फैसले और बुरे परफॉर्मेंस के चलते पढ़ाई छोड़ी हैं।
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यूजी के स्टूडेंट का रेशो ना के बराबर
आईआईटी इंदौर में पीएचडी स्कॉलर्स और पीजी के कुछ ही स्टूडेंट्स है जो बीच में पढ़ाई छोड़ते हैं। यूजी में यह रेशो ना के बराबर है। लगभग 2000 स्टूडेंट्स पर करीब 100 फैकल्टी है। सीटों की संख्या में इजाफा होने पर फैकल्टी की संख्या जरुर कम हुई है।
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