मीसाबंदी पेंशन बंद करने विधानसभा में विधेयक लाने की तैयारी

भोपाल। मुख्य मंत्री कमलनाथ मीसाबंदी सम्मान निधि के रूप में मिलने वाली पेंशन राशि को बंद करने जा रहे हैं। इसके लिए विधेयक का प्रस्ताव तैयार कराया गया है। जो जल्द ही मुख्यमंत्री के सामने रखा जाएगा मंत्रिमंडल से स्वीकृति मिलने के बाद इसे विधानसभा में निरसन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किए जाने की तैयारियां चल रही हैं।
मध्यप्रदेश में दो हजार से अधिक मीसा बंदियों को 25000 मासिक की सम्मान निधि शासकीय को से दी जा रही है। इसमें लगभग 70 करोड रुपए खर्च किए जा रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में राजनीतिक बंदियों के साथ-साथ मीसा बंदी के रूप में बहुत सारे अपराधिक कृत्य करने वाले भी बंद हुए थे।

2008 में शिवराज सरकार ने 6 माह से कम जेल में रहने वालों को 3000 और 6 माह से अधिक जेल में रहने वालों को 6000 माह की पेंशन शुरू की थी 2012 में संशोधन करके इस राशि को बढ़ाकर 10 हजार और 15 हजार रुपए कर दिया गया था।

2016 में शुरू हुआ विवाद
मध्यप्रदेश शासन ने 2016 में 1 माह से अधिक समय रहने वालों को भी पेंशन का पात्र घोषित कर दिया था उसके बाद से एक माह से कम रहने वाले लोगों ने भी मीसाबंदी के रूप में पेंशन के लिए आवेदन कर दिया और उन्हें पेंशन मिलने भी लगी जिसको लेकर इसका बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया।

कांग्रेस सूत्रों द्वारा जानकारी दी गई है, कि आपातकाल के दौरान मध्य प्रदेश के राजनीतिक बंदियों की संख्या लगभग 350 थी। आपातकाल लगने के तुरंत बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया था और कुछ ही दिनों में उन्हें छोड़ दिया गया था। उसके बाद भी मीसाबंदी के रूप में उन्हें सम्मान निधि दिए जाने की बात कांग्रेस को स्वीकार नहीं कर रही है। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भी हजारों लोग जेलों में बंद हुए थे किंतु उन्हें पेंशन नहीं मिल रही हैं। जबकि अंग्रेजों ने उनके पूरे परिवार को बुरी तरह प्रताड़ित किया था। मीसा बंदियों के नाम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को सरकारी कोष से सम्मान निधि के रूप में जो रेवड़ी बांटी जा रही है, वर्तमान सरकार उसको बंद करने की कार्यवाही कर रही है।

मीसा बंदियों का कहना है कि वर्तमान सरकार ने यदि उनकी पेंशन बंद की, तो वह कोर्ट का सहारा लेंगे। मीसा बंदियों का कहना है कि इसके पूर्व उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार ने भी पेंशन बंद करने का प्रयास किया था। जिसे हाईकोर्ट के आदेश से पुनः शुरू करना पड़ा। मध्यप्रदेश में यदि ऐसा कोई प्रयास हुआ तो वह न्यायालय का सहारा लेंगे।

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