पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जैसे ही मन में शुभ-संकल्पता, सकारात्मकता और पारमार्थिकता के भाव उदित होते हैं; परिवेश में पावित्रय, प्रसन्नता और परिपूर्णता अनुभूत होने लगेगी…! जीवन में शुभ संकल्प होना हमारे कल्याण का हेतु है। शुभ संकल्प का आशय अच्छे विचारों से है। कुटिलता कदापि ग्राह्य नहीं है, अपितु सरलता और सहजता नैसर्गिक गुण हैं। आडंबरों और उपाधियों की भरमार न केवल दुखदायी होती है, अपितु शांति को भंग भी करती है। अत: प्रयास यह होना चाहिए कि सहज भाव से जीया जाए। निश्छल मन में ही सद्विचार आते हैं, जो हमारे बंधनों को काटने वाले होते हैं। विचार की बड़ी महत्ता है। जिन राष्ट्रों में स्वाधीनता आंदोलन चले, वहां पहले विचार-क्रांति जन्मी। तत्पश्चात ही मैदानी कार्रवाई शुरू हुई। विचार का प्रभाव अद्भुत है। यह विचार ही है जो अर्जुन को गाण्डीव उठाने के लिए प्रेरित करता है। चिंतन-मनन के बाद विचार ही आचरण का रूप लेता है। नरेन्द्र को विवेकानन्द बनाने में रामकृष्ण परमहंस के विचारों ने ही चमत्कार किया। सिकन्दर सीधे ही विश्व-विजय के लिए नहीं निकल पड़ा। पहले उसके मन में इस प्रकार की विजय प्राप्त करने का विचार आया था, तदनंतर ही वह उस दिशा में प्रवृत्त हुआ। कर्म का अंकुरण विचाररूपी बीज से होता है। विचार जितने उच्च और आदर्श होंगे, कर्म भी उतने ही श्रेष्ठ होंगे। मन विचार का गर्भस्थल है। मन जितना शुद्ध, सात्विक, पवित्र और निर्मल होगा, उतने ही पवित्र एवं उत्तम विचार उसमें आकार लेंगे। जीवन मधुमय हो, ऐसी हमारी चिर प्रार्थना रही है। शिव तत्व का निरंतर चिंतन होने पर शुभ और कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि हम अपने द्वारा बोयी हुई फसल का उत्पादन हैं। मनुष्य का जीवन उसके विचारों का ही प्रतिबिम्ब है। सफलता-असफलता, उन्नति- अवनति, तुच्छता-महानता, सुख-दुःख, शांति-अशांति आदि सभी पहलू मनुष्य के विचारों पर निर्भर करते हैं। किसी भी व्यक्ति के विचार जानकर उसके जीवन का नक्शा सहज ही मालूम किया जा सकता है। मनुष्य को कायर-वीर, स्वस्थ-अस्वस्थ, प्रसन्न-अप्रसन्न कुछ भी बनाने में उसके विचारों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। तात्पर्य यह है कि अपने विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का जीवन बनता- बिगड़ता है। अच्छे विचार उसे उन्नत बनायेंगे तो हीन विचार मनुष्य को गिराएँगे। किसी भी शक्ति का उपयोग रचनात्मक एवं ध्वंसात्मक दोनों की रास्तों से होता है। इसी तरह विचारों की शक्ति भी है। उसको पुरोगामी होने से मनुष्य के उज्ज्वल भविष्य का द्वार खुल जाता है और प्रतिगामी होने पर वही शक्ति उसके विनाश का कारण बन जाती है। अधोगामी विचार मन को चंचल, क्षुब्ध, असन्तुलित बनाते हैं। जबकि सद्विचारों में डूबे हुए मनुष्य को धरती स्वर्ग जैसी लगती है। विचार से हताश मन में आशा का संचार होता है। संसार में जितनी भी क्रांतियां हुई हैं, उनके मूल में क्रांतिकारी विचार ही रहे हैं। विचारों से ही कर्म की पृष्ठभूमि तैयार होती है। कर्म की प्रेरणा हमें विचारों से ही मिलती है। किसी भी विषय या कार्य पर मनुष्य पहले चिंतन-मनन करता है, उसके बाद ही कर्म का स्वरूप, प्रारूप एवं राह निर्धारित करता है…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सर्वप्रथम हम स्वयं में संतुलित हों। स्वयं को पहचानने की कोशिश करें। अपनी पावनता का बोध हमें न केवल प्रसन्नता प्रदान करता है, अपितु बल भी देता है। स्वयं का मूल्यांकन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जगत की आलोचना या परमूल्यांकन का उसके समक्ष कोई मूल्य नहीं है, किंतु यह स्वमूल्यांकन सर्वथा निरपेक्ष होना चाहिए। हम अपने को तभी सत्य मानें जब सत्य का अनुसरण करते हों। जीवन को सत्य और सरल बनाने के लिए हम अनंतकाल से प्रार्थना करते रहे हैं। कर्तव्य मार्ग पर दृढ़ रहने का भी हमारा संकल्प रहा है। अत: अभीष्ट यही है कि प्रार्थना को जीवन का अंग बनाकर सन्मार्ग का अनुसरण किया जाए। स्वयं के कर्मो के प्रति सतत सचेष्ट रहने की अपेक्षा है। अपनी कमियों को जानने और उन्हें दूर करने की आवश्यकता है। तो आइए, परमशक्तिमान परमेश्वर की सर्वातिशायी सत्ता का स्मरण करें, जिसके कि हम स्वयं भी अंश हैं। अंश और अंशी में भेद नहीं होने से हम भी परम शक्तिमान हैं। स्मरण के माध्यम से उस शक्ति का बोध करना ही हमारे कल्याण का हेतु है…।
पूज्य ‘आचार्यश्री” जी ने कहा – विचार बहुत बड़ा शक्तिपुंज है, इसमें अनंत ऊर्जा निहित है। विचारों की शक्ति अपार और अद्भुत है। संसार विचारों का ही प्रतिरूप है। विचार सूक्ष्म होते हैं और संसार के पदार्थ तथा वस्तुएं स्थूल, पर उनकी सृष्टि रचना पहले किये गये विचार के अनुसार ही होती है। दर्शन शास्त्र के अनुसार तो यह समस्त जगत ही परमात्मा के इस विचार का परिणाम है कि एकोहं बहुस्यामि… (मैं एक से अनेक हो जाऊं), पर यदि हम इतनी दूर न जायें तो हमको अपने सामने जो कुछ उन्नति, प्रगति, नये-नये परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं वे सब विचारों के ही परिणाम हैं । बड़े से बड़े महल, मन्दिर, विचारों का ही प्रतिरूप है। विचार का अद्भुत प्रभाव होता है व्यक्ति पर। विचार ही मनुष्य को ऊपर उठाते हैं और विचार ही मनुष्य के पतन का कारण बनते हैं। विचार से समाज और राष्ट्र जुड़ते हैं और विचार से ही टूटते हैं। जिस परिवार एवं राष्ट्र में व्यक्तियों के विचारों में श्रेष्ठता और समन्वय होगा, वे निश्चित ही समुन्नत होंगे। अच्छे विचार शांति लाते हैं और शांति उन्नति की पहली शर्त है। विचारों के अनुरूप ही मनुष्य का स्वभाव एवं आचरण बन जाता है। स्पष्ट है कि श्रेष्ठ विचारों से ही आदर्श एवं चरित्रवान व्यक्तित्व का निर्माण होगा। इन व्यक्तियों के आदर्श कर्मों से एक श्रेष्ठ, सशक्त एवं आदर्श राष्ट्र का सपना साकार हो सकेगा। अतः प्रत्येक व्यक्ति को अपने मानस में उच्च विचारों के बीज बोने चाहिए। इसी में व्यक्ति का, समाज का, राष्ट्र का एवं सम्पूर्ण विश्व का हित निहित है….।
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