मुसलमान पक्षकार को बड़ा झटका, बड़ी बेंच में भेजने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली : अयोध्या के राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया। 2-1 के बहुमत से सुप्रीम कोर्ट ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया। बता दें कि यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था।

वर्तमान में यह मुद्दा उस वक्त उठा जब चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। गुरुवार को कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 1994 के जजमेंट को दोबारा परीक्षण के लिए सात सदस्यीय बेंच को भेजने की जरूरत नहीं हैं।

दरअसल, इस मामले में मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि 1994 में इस्माइल फारूकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए।

जस्टिस भूषण ने अपने और सीजेआई दीपक मिश्रा की तरफ से दिए फैसले में कहा कि हमें वह संदर्भ देखना होगा जिसमें पांच सदस्यीय पीठ ने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में फैसला सुनाया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। कोर्ट ने कहा कि वह फैसला जमीन अधिग्रहण के संदर्भ में था। बता दें कि अब जमीन विवाद पर सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या मामले की सुनवाई करेगा।
2-1 के बहुमत से आए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में तीसरे जज एसए नजीर थे। वह इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस भूषण से सहमत नहीं थे। जस्टिस नजीर ने कहा, मैं अपने भाई जजों की राय से सहमत नहीं हूं।

खतने पर सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस नजीर ने कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए। जस्टिस नजीर ने कहा कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है, इस विषय पर फैसला धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए, उसपर गहन विचार की जरूरत है।

जस्टिस भूषण ने अपने और सीजेआई दीपक मिश्रा की तरफ से फैसले में कहा कि अयोध्या जमीन विवाद को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2-1 से फैसला सुनाते हुए कहा कि मामले को बड़ी बेंच में भेजने की जरूरत नहीं है।

जस्टिस भूषण ने कहा कि सभी मंदिर, मस्जिद और चर्च का अधिग्रहण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मस्जिद में नमाज इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है, यह कहा जा चुका है। उन्होंने कहा कि सवाल था कि मस्जिद का अधिग्रहण हो सकता है या नहीं।

इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस अशोक भूषण की एक ऑपिनियन जबकि तीसरे जज एस. नजीर की ऑपिनियन अलग थी। 1994 के इस्माइल फारूकी केस में दिए फैसले का जिक्र करते हुए जस्टिस भूषण ने अपनी और सीजेआई की तरफ से फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है।

अब मुख्य जमीन विवाद पर होगी सुनवाई

राम मंदिर के लिए होने वाले आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। इस मामले में आपराधिक केस के साथ-साथ दीवानी मुकदमा भी चला। टाइटल विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिए फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों में बीच का हिस्सा हिंदुओं का होगा जहां फिलहाल रामलला की मूर्ति है। निर्मोही अखाड़ा को दूसरा हिस्सा दिया गया इसी में सीता रसोई और राम चबूतरा शामिल हैं बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।

इस फैसले को तमाम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बहाल कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सियासी बयानबाजी भी शुरू हो गई है। बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने कहा कि इस फैसले से मंदिर बनाने का रास्ता साफ हो गया है। मेरे मूलभूत अधिकारों की जीत हुई है। मस्जिद को शिफ्ट किया जा सकता है मंदिर को नहीं।

अंड़गा हट गया है,राम मंदिर का निर्माण होगा। वहीं राम जन्मभूमि न्यास के वरिष्ठ सदस्य डॉक्टर रामविलास वेदांती ने कहा कि जहां रामलला विराजमान हैं, वहां कोई भी मस्जिद नहीं थी। अयोध्या में बहुत सी मस्जिदें हैं, वहां पर जाकर मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ें। नमाज तो सड़क पर भी पढ़ी जाती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए विश्व हिंदू परिषद ने कहा कि अयोध्या विवाद को लटकाने की कोशिश करने वालों की हार हुई है। वीएचपी के नेता आलोक कुमार ने कहा कि हम इस निर्णय से सहमत हैं।

उधर इस फैसले पर बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकार इकबाल अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि यह फैसला मंदिर-मस्जिद पर नहीं था। मुस्लिमों पर इस फैसले का कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो जरूरी समझा वहीं किया है।

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