नई दिल्ली । सरकार ने 30 सितंबर तक 20 लाख टन चीनी निर्यात का लक्ष्य रखा है, जिसे हासिल करना असंभव प्रतीत हो रहा है। चालू सत्र में ज्यादा से ज्यादा आठ लाख टन तक ही चीनी का निर्यात संभव है, क्योंकि बरसात का मौसम शुरू हो जाने से चीनी निर्यात में दिक्कत आ सकती है। क्योंकि चीनी को थोड़ा भी पानी मिल जाए तो उसे पिघलते देर नहीं लगती। यही वजह है कि चीनी मिलों ने सरकार से इस समय सीमा को बरसात के मौसम के बाद बढ़ाकर 31 दिसंबर तक करने की मांग की है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश पी. नाइकनवरे ने कहा कि चालू चीनी उत्पादन व विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में महज सात से आठ लाख टन चीनी का निर्यात ही हो सकता है, क्योंकि बारिश शुरू होने से आगे निर्यात में दिक्कतें आ सकती हैं। उन्होंने कहा, बरसात के कारण महाराष्ट्र और गुजरात के बंदरगाहों से चीनी निर्यात संभव नहीं हो पाएगा।
लेकिन हमने सरकार से मांग की है कि न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत निर्धारित 20 लाख टन चीनी निर्यात के लक्ष्य की समय सीमा 30 सितंबर से बढ़ाकर 31 दिसंबर कर दिया जाए, ताकि बरसात के बाद चीनी का निर्यात संभव हो।
नाइकनवरे ने बताया कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जो चीनी की दरें हैं उसके अनुसार, भारतीय मिलों को 1900 रुपये प्रति क्विंटल पर चीनी निर्यात करनी होगी जबकि सरकार द्वारा तय न्यूनतम एक्स मिल रेट 29 रुपये प्रति क्विंटल है और मौजूदा मिल दरें कहीं इससे ऊपर चल रही हैं। उन्होंने कहा, “इस समय मिलों को चीनी निर्यात करने में कम से कम 10-11 रुपये प्रति किलोग्राम का घाटा हो रहा है,
जबकि सरकार द्वारा जो गन्ने के मूल्य पर 55 रुपये प्रति टन का उत्पादन प्रोत्साहन दिया जा रहा है, उससे मिलों को महज आठ रुपये प्रति किलो की कमी की भरपाई हो पाएगी। फिर भी दो से तीन रुपये प्रति किलो का घाटा है। एनएफसीएसएफ के प्रबंध निदेशक ने बताया कि अब तक 3.5 लाख टन चीनी निर्यात के सौदे हो चुके हैं और आगे संभावित बाजार की तलाश की जा रही है।
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