रायपुर छत्तीसगढ़ विधानसभा के चौथे चुनाव के लिए कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से तालमेल या गठबंधन करने इच्छुक है, ऐसी खबरों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पी. एल. पुनिया ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में कांग्रेस अकेले ही मंजिल की ओर चलेगी। वह यहां किसी से गठबंधन नहीं करेगी। कांग्रेस प्रभारी का कहना है कि कांग्रेस कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए क्षेत्रीय दलों के साथ मिल रही है किंतु छत्तीसगढ़ में किसी दल से गठजोड़ नहीं होगा। यहां के हालात अलग हैं।
कांग्रेस सभी नब्बे सीटों पर मजबूत है और सभी जगह जीतेगी। कांग्रेस प्रभारी ने इस तरह राज्य की पूरी की पूरी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की जीत तथा भाजपा सहित तमाम दलों का समूचा सफाया होने का दावा कर दिया है। राजनीति में यही तो दिक्कत है कि अगर पुनिया यह कहते कि कांग्रेस सत्तर या अस्सी सीटें जीतेगी तो लोग सवाल करने लग जाते कि बाकी सीटें कौन सी हैं, जहां भाजपा, बसपा या जोगी कांग्रेस आयेगी? सो उन्होंने किस्सा ही खत्म कर दिया। पूरी सीटें कांग्रेस जीतेगी। चुनाव में उतरने वाले राजनीतिक दल भला यह कैसे रह सकते हैं कि हम यहां अथवा वहां कमजोर हैं।
खुद को मजबूत प्रदर्शित करने के पीछे जनता तक यह संदेश भेजने की मंशा होती है कि ‘पलट तेरा ध्यान किधर है, अगली सरकार इधर है।’ वैसे पुनिया के पुनीत आत्मविश्वास (चाहे विरोधी इसे विश्वास का अजीर्ण ही समझें) की दाद देनी होगी। छत्तीसगढ़ में पन्द्रह साल से राज कर रही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पैसठ प्लस का टारगेट दिया है। जोगी कांग्रेस अपने बहत्तर साल के अधिपति अजीत जोगी को 90 में से 72 सीटें देना चाहती है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने यहां सीटों का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है। उन्होंने एकजुट होकर चुनाव जीतने तक ही अपनी उम्मीद सीमित रखी है क्योंकि राहुल जानते हैं कि हवा में उड़ने से काम नहीं चलने वाला। सपने इतने ही ऊंचे देखो कि गिर पड़ो तो फिर उठ खडे़ होने लायक बचे रहो। राहुल अब जमीन से जुड़ी राजनीति पर जोर दे रहे हैं, जो कांग्रेस के लिए सटीक दवा है। इसके सेवन से ही वह तंदुरुस्त हो सकती है।
कांग्रेस के शिखर नेतृत्व से लेकर राज्य के प्रभारी तक सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि यहां कांग्रेस कमजोर नहीं है। वह आंतरिक असंतोष और दुरभिसंधियों की वजह से भाजपा से हार जाती है। अगर कांग्रेस ने अंतर्कलह पर काबू पा लिया तो उसे छत्तीसगढ़ में आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन कांग्रेस में इस मर्ज का इलाज न तो पहले था और न अब है। प्रदेश प्रभारी पुनिया का कहना है कि एकजुट होकर भाजपा को उखाड़ फेंकने का काम कर रहे हैं। मतलब यह कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडं़ेगे। मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी के तलबगार कब तक एकजुट रह पायेंगे? टिकट का दौर शुरू होते ही परम्परागत खेमेबाजी शुरु नहीं होगी, इसकी गारंटी कौन दे सकता है? जब से छत्तीसगढ़ प्रदेश की सत्ता की राजनीति शुरू हुई है तभी से कांग्रेसी गुटबाजी और असंतोष की फसल लगातार लहलहा रही है।
पहले चुनाव के पहले विद्याचरण शुक्ल ने कांगेस छोड़ी थी तो चौथे चुनाव के पहले अजीत जोगी ने। अब कांग्रेस प्रभारी से लेकर तमाम कांग्रेसी ओहदेदार यह जताने की कोशिश में लगे हैं कि जोगी के जाने से कांग्रेस शुध्द हो गयी है। आशय यह कि जोगी के रहते कांग्रेस में गुटबाजी की गंदगी फैली हुई थी। जरा सोचा जाये कि जोगी के जाने के बाद क्या कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षाएं तीर्थ यात्रा पर निकल गयी हैं? तब और अब में फर्क केवल यही है कि पहले जोगी खेमा बनाम संगठन खेमा का खेल चलता था। अब एक ही खेमे के भीतर सियासी महाभारत का अंदेशा है। यदि कांग्रेस ने टिकट वितरण के समय मठाधीशों की महत्वाकांक्षा को काबू में कर सुयोग्य प्रत्याशी चुन लिये तो बेड़ा पार। वैसे पुनिया ने अकेले लड़ने का ऐलान तब किया है जब गोंगपा और बसपा दोनों ने ही शेर और हाथी होने की मुनादी पीट दी। यदि पुनिया पहले ही दांव चलते तो वजनदारी और दिखती। रही बात अकेले चलने की, तो कारवां तो बाद में भी बन सकता है।
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