नई दिल्ली । उत्तर कोरिया से परमाणु युद्ध का खतरा टलने के बावजूद दुनिया से इसका खतरा अभी पूरी तरह से नहीं टला है। अभी ईरान इसकी दूसरी कड़ी के रूप में तैयार हो रहा है। इसकी वजह है ईरान और अमेरिका के बीच हुई परमाणु डील, जिसको लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उलटी गिनती शुरू हो रखी है। इसको लेकर ईरान बार-बार चेतावनी दे चुका है। अमेरिका की तरफ से ईरान को लेकर लगातार तीखी बयानबाजी हो रही है तो वहीं ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी ने भी साफ कर दिया है कि ट्रंप भले ही 12 मई को इस डील को लेकर कोई भी फैसला लें लेकिन जब देश की रक्षा की बात आएगी तो ईरान किसी से भी इसके लिए कोई समझौता नहीं करेगा।
डील एक ऐतिहासिक भूल
टीवी पर दिए अपने भाषण में उन्होंने अमेरिका को संबोधित करते हुए बेहद साफ शब्दों में यह भी कह दिया कि यदि उन्हें लगता है कि यह डील एक ऐतिहासिक भूल थी तो उसको वे कूड़े में डाल दें। रुहानी ने यह भी साफ कर दिया है कि वह अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु हथियार बना सकते है, इसका किसी अन्य देश से कोई लेना-देना नहीं है। उनका यह बयान रूस के उस बयान को कहीं न कहीं सही करार दे रहा है जिसमें रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिका को आगाह करते हुए कहा था कि यदि अमेरिका परमाणु डील से पीछे हटा तो तीसरे विश्व युद्ध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
डील टूटने की आहट से बेचैन कई देश
इस डील के टूटने की और इससे होने वाले नुकसान की आहट कई देशों में महसूस की जा रही है। आपको बता दें कि जर्मनी समेत फ्रांस और ब्रिटेन भी इस डील से पीछे न हटने के लिए अमेरिका से अपील कर चुके हैं। इसी सिलसिले में कुछ दिन पहले फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रान ने भी अमेरिका की यात्रा की थी। इसके अलावा कुछ दिन में ब्रिटेन के विदेश मंत्री भी अमेरिका जाने वाले हैं। इससे पहले उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स से कहा कि यह सही है कि इस डील में कुछ खामियां रही हैं, इसके बावजूद डील तोड़ने के अलावा हमारे पास दूसरे कई विकल्प हैं जिनसे हम इस बात से आश्वस्त हो सकते हैं कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं है या वह अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं चला रहा है।
दूसरी तरफ रूस और चीन पहले ही इस डील को लेकर अमेरिका को चेतावनी दे चुके हैं। ऐसे में ईरानी राष्ट्रपति का ताजा बयान मामले को और गंभीर बना रहा है। रुहानी इससे पहले भी यह बात कह चुके हैं कि यदि अमेरिका इस डील से पीछे हटता है तो वह तेजी से परमाणु मिसाइल कार्यक्रम शुरू करेंगे, जिसे कोई नहीं रोक सकेगा।
2015 में हुई थी परमाणु डील
आपको बता दें कि अमेरिका और ईरान के बीच उसके परमाणु कार्यक्रम को रोकने और प्रतिबंधों के छूट को लेकर वर्ष 2015 में परमाणु डील की गई थी। इसमें अमेरिका के अलावा फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, रूस और चीन शामिल थे। लेकिन अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने इसको बराक ओबामा की सबसे बड़ी भूल और इस डील को ऐतिहासिक भूल करार दिया था। यहां पर ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि कुछ ही दिन पहले इजरायल के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा था कि ईरान ने इस डील की आड़ में अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखकर इस डील के नियमों को तोड़ा है। नेतन्याहू ने यह भी कहा था कि यदि अमेरिका को यह डील रखनी है तो यह जरूरी होगा कि ईरान के सारे परमाणु हथियारों को कम समय सीमा में खत्म कर दे। हालांकि बेंजामिन द्वारा पेश किए गए तथ्यों का ईरान ने जबरदस्त तरीके से खंडन किया था। कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि नेतन्याहू ने जिन बातों का अपने टीवी प्रसारण के दौरान सामने रखा उसको लेकर कोई सुबूत उन्होंने पेश नहीं किए थे।
क्या कहते हैं जानकार
हालांकि जानकार मानते हैं कि नेतन्याहू ने अपनी प्रजेंटेशन में जो कुछ दिखाया वह दरअसल, एक दशक पुराना तथ्य था जो कभी अमेरिका ने पेश किया था। इसमें कुछ नया नहीं था। यह पुराने तथ्यों पर आधारित था। दूसरी ओर रुहानी ने इजरायल पर तीखा प्रहार करते हुए यह भी कहा है कि इस डील के खिलाफ केवल तीन देश हैं अमेरिका, सऊदी अरब और इजरायल। गौरतलब है कि इजरायल और सऊदी अरब इस डील का हिस्सा नहीं हैं। लेकिन बदलते राजनीतिक और रणनीतिक समीकरण में सऊदी अरब के अमेरिका करीब आ गया है और बीते कुछ समय में दोनों देशों के बीच कुछ बड़े समझौते भी हुए हैं। इस वजह से सऊदी अरब का झुकाव अमेरिका की तरफ ज्यादा है। इसके अलावा सऊदी अरब और ईरान के बीच में शिया और सुन्नी का मुद्दा हमेशा से ही उग्र रहा है। वहीं जहां तक परमाणु डील की बात है तो माइक पोंपियो भी इस बात का इशारा कर चुके हैं कि ट्रंप इस डील से हटने का ही फैसला करेंगे।
बेवजह का दबाव
इसके अलावा भी कुछ दूसरे जानकार मानते हैं कि अमेरिका परमाणु डील को लेकर बेवजह का दबाव बना रहा है। मिडिल ईस्ट की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर वईल अवाद इस बात को कई बार दोहरा चुके हैं कि अमेरिका का मकसद परमाणु हमले या हथियारों का डर दिखाकर पड़ोसी मुल्कों को अपने हथियार बेचने का है। यही सब अमेरिका सीरिया में भी कर रहा है। वहां पर वह सऊदी अरब को भड़काकर और डर दिखाकर उन्हें हथियार बेचता है और वही अब ईरान का डर दिखाकर आस-पास के मुल्कों को अपने हथियार बेचना चाहता है। इससे पहले उत्तर कोरिया का डर दिखाकर अमेरिका ने दक्षिण कोरिया और जापान में हथियार बेचे हैं। वह मानते हैं कि इस क्षेत्र में अमेरिका की दखल से ज्यादा परेशानियां बढ़ी हैं।
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