नियमों की कमी में उलझेगा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग

नई दिल्ली। कांग्रेस सहित सात राजनैतिक दलों के सांसदों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को पद से हटाने के लिए महाभियोग का नोटिस दिया है। ये पहला मौका है जबकि सीजेआई को हटाने के लिए नोटिस दिया गया है। लेकिन मौजूदा नियम कानून में सीजेआई के बारे में नियम स्पष्ट नहीं हैं। यहां तक कि जज को पद से हटाने की तय प्रक्रिया में कुछ जगह सीजेआई की भी भूमिका होती है ऐसे में प्रक्रिया आगे बढ़ाने में नियमों की कमी पेश आयेगी। न्यायविदों की मानें तो ये अपनी तरह का पहला मामला है और इस बारे में कोई नजीर मौजूद नहीं है इसलिए कई जगह पेंच उलझेगा।

हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रक्रिया संविधान में दी गई है। उसे लागू करने के लिए जजेस इन्क्वायरी एक्ट और जजेस इन्क्वायरी रूल हैं।

कौन तय करेगा कमेटी में सुप्रीमकोर्ट जज का नाम

प्रक्रिया के मुताबिक अगर राज्यसभा सभापति महाभियोग नोटिस स्वीकार करते हैं तो सबसे पहले आरोपों की जांच के लिए जांच कमेटी गठित होगी। तीन सदस्यीय कमेटी में सुप्रीम कोर्ट जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और प्रतिष्ठित कानूनविद होता है। सुप्रीम कोर्ट से जज के नाम के लिए सीजेआई से मशविरा किया जाता है। यहां आरोप सीजेआई पर हैं ऐसे में कमेटी में जज का नाम तय करने पर पेंच फंसेगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढ़ा मानते हैं कि ऐसी स्थिति आने पर मामला अटक सकता है क्योंकि इस बाबत कोई नियम स्पष्ट नहीं हैं। ऐसी स्थिति में वे दूसरे नंबर के वरिष्ठ जज द्वारा सदस्य नामित करने की बात करते हैं।

लेकिन फिर सवाल उठता है कि अगर महाभियोग नोटिस में चार वरिष्ठ जजों के सीजेआई के खिलाफ प्रेस कान्फ्रेंस करने का मुद्दा शामिल है तो क्या दूसरे नंबर के जज को ये हक मिलेगा। उस स्थिति में वो चारो जज भी ये तय नहीं कर सकते। ऐसे में एक तरीका ये हो सकता है कि फुल कोर्ट बैठे और कमेटी के जज का नाम तय करे। सीजेआई से काम नहीं छीना जा सकता

अगर किसी जज के खिलाफ जांच होती है तो सामान्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट कोलीजियम आरोपित जज से काम वापस लेने के लिए संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से कहती है और वे उस जज से न्यायिक कार्य वापस ले लेते हैं। लेकिन चीफ जस्टिस कोर्ट का प्रशासनिक मुखिया होता है उससे काम नहीं छीना जा सकता। हाईकोर्ट के मामले ज्यादा से ज्यादा कोलीजियम उसका दूसरे हाईकोर्ट तबादला कर सकती है लेकिन सुप्रीम के सीजेआई के मामले में तो कुछ नहीं हो सकता। सीजेआई से काम वापस लिये जाने का कोई नियम नहीं है ये सिर्फ उनके अपने विवेकाधिकार पर है कि वे न्यायिक काम छोड़ते हैं कि नहीं। इसके अलावा प्रशासनिक कार्य तो वैसे भी देखेंगे। जैसे मुकदमों की सुनवाई का रोस्टर तय करना आदि। जस्टिस लोढ़ा मानते हैं कि इस बारे में नियम नहीं हैं और सीजेआई से काम नहीं छीना जा सकता। यानि जबतक सीजेआई के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव संसद से पास नहीं हो जाता वे काम करते रह सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट जाने पर सुनवाई पीठ सीजेआई ही तय करेंगे 

अगर सभापति सांसदों का नोटिस अस्वीकार कर देते हैं तो कांग्रेस उसके खिलाफ कोर्ट जाने की बात कर रही है। लेकिन अगर वे सभापति के नोटिस अस्वीकार करने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हैं तो उस पर सुनवाई करने वाली पीठ सीजेआई ही तय करेंगे क्योंकि चीफ जस्टिस ही मास्टर आफ रोस्टर होते हैं।

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