।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सृष्टि स्वभावत: परिवर्तनशील है, अतः शुभ-संकल्प की तीव्रता से सकारात्मक एवं कल्याणकारी परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं…! हर क्षण अपनी सर्वोत्तम सेवा समाज को देने का शुभ-संकल्प होना चाहिए। शुभ-संकल्प के द्वारा ही मनुष्य उचाईयों की शिखर तक पहुँच सकता है। प्रत्येक व्यक्ति में बहुत कुछ कर सकने की क्षमता होती है। उसकी उन्नति का सबसे बड़ा रहस्य है – आत्मनियन्त्रण। यही मनुष्य के आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी है। इसलिए जिस व्यक्ति ने आत्मनियन्त्रण कर लिया, उसे अवश्य सफलता मिलती है। जो व्यक्ति आत्मनियन्त्रण कर लेता है, वही क्रोध पर नियन्त्रण कर सकता है। “पूज्य आचार्यश्री” जी के अनुसार आत्मनिरीक्षण एवं आत्मसुधार करके अपनी छोटी-छोटी गलतियों को पहचान कर उन्हें दुबारा नहीं दोहरायें, तभी जीवन में उन्नति कर सकते हैं। आप हर सप्ताह अपनी प्रगति का मूल्यांकन करें तथा यह मालूम करें कि आपने कब कौन सी गलती की और भविष्य में उसे न करने का संकल्प करें। आवश्यकताएँ कम करिए। दूसरों की देखा-देखी अपनी आवश्यकताएँ बढ़ा कर अधिक खर्च बढ़ाना क्या उचित है? अपनी आय से अधिक खर्च नहीं करें। हमें ध्यान रखना चाहिए कि जितनी हमारी आवश्यकतायें कम होगी, उतनी चिन्ता भी कम होगी और सन्तोष अधिक होगा । सिर्फ आवश्यक वस्तुओं की ही खरीदारी करें, घर को म्यूजियम न बनाएं। चरित्र व्यक्ति की सर्वोपरि पूँजी है। जीवन की स्थायी सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। इस आधार के बिना जैसे-जैसे सफलता प्राप्त कर भी ली गई, तो वह टिकाऊ नहीं हो सकती है। जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में स्वयं को सम्भालकर, पूर्ण संयम से, अपना मार्ग निर्धारित करता है, वह जीवन में अवश्य सफल होता है। विजय मिली है, इसे विश्राम ना समझो। सच्ची लगन, कड़ी मेहनत और अनुशासन के साथ कुशलता हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है। यदि आगे बढ़ते रहने की जिद बरकरार हो, तो कोई कारण नहीं कि सफलता नहीं मिलेगी…!
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – आगे बढ़ने वाले लोग प्राप्त उपलब्धियों से संतुष्ट होकर बैठे नहीं रहते। ऐसा इसलिए, क्योंकि इससे न केवल जीवन में नीरसता आ जाती है, बल्कि प्रगति का मार्ग भी अवरूद्ध हो जाता है। प्रतिदिन यह अनुभव करना चाहिए कि आप नई शुरूआत कर रहे हैं, कुछ नया कर रहे हैं। जो पत्थर लुढ़कता नहीं रहता, उस पर काई जम जाती है। जीओ ऐसे कि हमारा हर पल हंसते-गाते बीते। ‘‘नई सुबह नया जन्म, नई दृष्टि, नया उत्साह, नया मौसम, नए विचार, नए संकल्प, नव संदेश, नया उल्लास, नव गीत के साथ नव दिन का आगाज हो।’’ नव युग का सुस्वागत् – यही जीवन का युग गायन है। सोचें कि हम आज एक नये दिन में प्रवेश कर गये हैं। प्रतिदिन अपने नये दिन को उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए जी-जान से जुटे रहना चाहिए। अर्थात्, सदैव वर्तमान में जीना चाहिए। महापुरूषों के जीवन में देखें तो हम पायेंगे कि उनके मन में किसी के लिए भी तनिक भी बदले तथा भेदभाव की भावना नहीं होती है। महापुरूषों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई का होता है। वे जीवन में किसी से भी शत्रुता करके अपना एक पल भी बरबाद करने से बचते हैं। जिस काम में जितने अड़ंगे, उतनी ही कार्यात्मक संतुष्टि मिलती है। रूकावटें हमारी उत्कृष्टता का पैमाना बन सकती हैं। हम जितनी बाधाएं पार करते हैं, उतने ही उत्कृष्ट बनते हैं। आप कोई भी काम करें, बाधाएं आएंगी जरूर। बस, आपको इससे पार पाने की अपनी तैयारी रखनी होगी…।
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