पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
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पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – जीवन में निश्चित उद्देश्य हो; जब व्यक्ति को किसी उद्देश्य स्पष्ट का ज्ञान होता है तो उसके मन में दृढ़ता तथा आत्मबल जागृत हो जाता है; इससे वह एकाग्र हो कर अपने कार्यों को पूरे उत्साह से करने लगता है। यही नहीं, उद्देश्य हमें शिक्षण-पद्धतियों के प्रयोग करने, साधनों का चयन करने, उचित पाठ्यक्रम की रचना करने तथा परिस्थितियों के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था करने में भी सहायता प्रदान करता है। इससे व्यक्ति तथा समाज दोनों विकास की ओर अग्रसर होते रहते हैं। जिस शिक्षा का कोई उद्देश्य नहीं होता, वह व्यर्थ है। ऐसी उद्देश्यविहीन शिक्षा को प्राप्त करके बालकों में अकर्मण्यता, उदासिनता उत्पन्न जो जाती है। परिणामस्वरूप उन्हें अपने किये हुए कार्यों में सफलता नहीं मिल पाती जिससे कार्य को आरम्भ करने से पूर्व बालक तथा शिक्षक दोनों को शिक्षा के उद्देश्य अथवा उद्देश्यों का स्पष्ट ज्ञान होना परम आवश्यक है। उद्देश्य के ज्ञान के बिना शिक्षक उस नाविक के समान होता है जिसे अपने लक्ष्य का ज्ञान नहीं तथा उसके विधार्थी उस पतवार-विहीन नौका के समान हैं जो समुद्र की लहरों के थपेड़े खाती हुई तट की ओर बढ़ती जा रही है। मनुष्य के जीवन में एक निश्चित लक्ष्य का होना अनिवार्य है । लक्ष्यविहीन मनुष्य क्रिकेट के खेल में उस गेंदबाज की तरह होता है जो गेंद तो फेंकता है परंतु सामने विकेट नहीं होते । इसी भाँति हम परिकल्पना कर सकते हैं कि फुटबाल के खेल में जहाँ खिलाड़ी खेल रहे हों और वहाँ से गोल पोस्ट हटा दिया जाए तो ऐसी स्थिति में खिलाड़ी किस स्थिति में होंगे, इस बात का अनुमान स्वत: ही लगाया जा सकता है। अत: जीवन में एक निश्चित लक्ष्य एवं निश्चित दिशा का होना अति आवश्यक है…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – मनुष्य का महत्वाकांक्षी होना एक स्वाभाविक गुण है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में कुछ न कुछ विशेष प्राप्त करना चाहता है। कुछ बड़े होकर डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं तो कुछ व्यापार में अपना नाम कमाना चाहते हैं। इसी प्रकार कुछ समाज सेवा करना चाहते हैं तो कुछ भक्ति के मार्ग पर चलकर ईश्वर को पाने की चेष्टा करते हैं। सभी व्यक्तियों की इच्छाएँ अलग-अलग होती हैं, परंतु इनमें से बहुत कम लोग ही अपनी इच्छा को साकार रूप में देख पाते हैं। थोड़े से भाग्यशाली अपनी इच्छा को मूर्त रूप दे पाते हैं। ऐसे व्यक्तियों में सामान्यता दृढ़ इच्छाशक्ति होती है और वे एक निश्चित लक्ष्य की ओर सदैव अग्रसर रहते हैं। जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सदैव अपने लक्ष्य के प्रति सचेत एवं सतर्क रहे हैं। उनकी कार्य के प्रति समर्पित भावना से ही उन्हें कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त हो सकी। “आचार्यश्री” ने साधकों से आध्यात्मिक बनने को कहा। उन्होंने कहा कि विलासिता सत्य की प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। विलासिता का परित्याग कर व्यक्ति अध्यात्म की ओर बढ़ सकता है एवं दृढ़ विश्वास की उच्च स्थिति को प्राप्त कर लेता है। विषयों के धरातल से ऊपर उठिए, इन्द्रियों की आशक्ति से ऊपर उठिए; तभी जीवन में आगे बढ़ सकेंगे। भौतिक पदार्थ क्षणभंगुर हैं, हम उन्हें वस्तुतः अपना नहीं कह सकते, वह तो केवल अल्प समय के लिए हमारे पास रहते हैं, किंतु आध्यात्मिक उपलब्धियाँ स्थायी होती है और परम् संतोष प्रदान करती है। धनोपार्जन के लिए गलत तरीके एवं भाग-दौड़ से आप तनावग्रस्त हो सकते हैं, क्योंकि जरुरतें खत्म हो सकती हैं, पर लालच नहीं। जो थोड़े से सन्तुष्ट है, उसके पास सब कुछ है। जीवन जीना एक ऐसी कला है, जिसमें कम साधनों से जीवन को आनन्दमय बनाया जा सकता है। आपकी मुस्कुराहट आपकी सद्भावना का सन्देश है। आगन्तुक का मुस्कुराते हुए स्वागत करें। मुस्कराते रहेंगे तो तनाव एवं चिन्ताग्रस्त नहीं होंगे। गुलाब के पुष्प की भाँति चेहरे पर सदा मुसकान रखें। सदा हँसते-मुस्कराते रहेंगे तो सभी आपको पसन्द करेंगे…।
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