नई दिल्ली: भारत में पहली बार आयोजित और विश्व के आठवें थिएटर ओलंपिक्स का इस रविवार दिल्ली में पहला सप्ताह बीता. दिल्ली के अलावा चेन्नई में 18 फरवरी, तिरुअनंतपुरम में 22 फरवरी और भुवनेश्वर में 24 फ़रवरी को थिएटर ओलंपिक्स का उद्घाटन हो चुका है. इस सप्ताह में यह कोलकाता, बैंगलुरु और पटना में शुरु हो जाएगा. पहले सप्ताह में दो विदेशी प्रस्तुतियां की चर्चा हुई. एक अंतराराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सदस्य थियोडोरस ट्रेजोपोल्स की प्रस्तुति ‘एन्कोर’ और दूसरी पोलैंड के निर्देशक जार्स्लाव फ़्रेट की प्रस्तुति ‘सिजेरियन सेक्शन, एसे ऑन सुसाइड.’
पोलैंड की ‘सिजेरियन सेक्शन, एक्शन एंड सुसाइड’ नॉन वर्बल ध्वनियों और देह गतियों के साहचर्य से निर्मित दृश्य रचना थी, इसमें संवाद नहीं था. श्रीराम सेंटर ऑडिटोरियम के मंच के बीच के हिस्से पर नाटक का सारा कार्य व्यापार केंद्रित था. यह हिस्सा चारों ओर संगीतकारों के बैठने से बन रहा था जो चेलो, पियानो, और दूसरे वाद्य बजा रहे थे. गायन भी विविध शैलियों में हो रहा था, जो भावों को संप्रेषित कर रहा था. संगीत के बीच तीन अभिनेता थे दो स्त्री और एक पुरुष और इनकी देहगतियां थी. देह की गतियों और संगीत का साहचर्य दृश्य की रचना कर रहा था. आत्महत्या की प्रवृत्तियों की शरीर के माध्यम से व्याख्या की गई थी. संगीत और उस पर शरीर की लयबद्धता, कुर्सियों, मेज के सहारे चलने उठने गिरने के संतुलन से नाटक का प्रभाव निर्मित हो रहा था.
ग्रीस के एटिस थिएटर की थियोडोरस ट्रेजोपोल्स निर्देशित प्रस्तुति ‘एन्कोर’ उनके त्रयी ‘अलार्मे’ और ‘एमोर’ का हिस्सा है. यह मूलतः एक कविता की प्रस्तुति है कविता थामस सैलातोपिस की है. प्रस्तुति में एक अभिनेता और एक अभिनेत्री के दो शरीरों के माध्यम से प्रेम और इस प्रक्रिया में एक दूसरा का उपभोग करने की, एक का दूसरे के भीतर विकसित होकर नष्ट करने की, एक दूसरे से निकलने की, और दो देहों के एक दूसरे पर वर्चस्व कायम करने और समर्पण करने की स्थितियों की अभिव्यक्ति कर रही थी. अभिनेताओं को अनुशासन, तकनीक का नियंत्रण, ध्वनि इस प्रस्तुति में कमाल की है. मंच पर एक क्रॉस बनाया गया है जो धार्मिक प्रतीक की भी अभिव्यक्ति करता है और अभिनेताओं की सारी गतिविधि इस क्रास पर होती हैं. देह की एक दूसरे के प्रति प्रतिक्रिया करते हुए और ‘एन्कोर एन्कोर एन्कोर …’ दोहराते हुए अभिनेता शरीर से कभी तेज और कभी फ़ुसफुसाहट में आवाज निकालते हैं जो भाव सघनता को गहन करती है. एक सुर्रियल से दृश्य प्रभाव निर्मित करती हुई प्रस्तुति का दार्शनिक सूत्र अस्तित्व के सवालों से जुड़ा हुआ है. कविता की मंचीय प्रस्तुति कैसे की जानी चाहिए यह इस प्रस्तुति से सीखा जा सकता है. थियोडोरस ट्रेजोपोल्स ने थिएटर ओलंपिक की शुरूआत की है और इस समिति के अध्यक्ष भी हैं.
भारतीय दर्शकों के अधिकांश को अभी ऐसी प्रस्तुतियों को देखने की आदत नहीं है जिसमें कोई निश्चित कथा तत्व नहीं रहता है, शरीर की गतियों, ध्वनि के सहारे बिंब और भाव संप्रेषण जोर रहता है. दर्शकों को कथात्मक आख्यान देखने, पढ़ने की अधिक आदत है जिससे कि वो सटीक अर्थ ग्रहण कर सकें. नाटक देखते हुए भी यह अभ्यास अवचेतन में सक्रिय रहता है जो बिम्बों की श्रृंखला या दृश्यात्मक आख्यान के सम्पूर्ण आस्वादन से दर्शकों को रोकता है, उसके धैर्य की परीक्षा लेता है. लेकिन दर्शक देखने की आदतों के साथ प्रयोग करने के लिए यदि तैयार हों तो यह अवरोध भी दूर हो जाता है. दृश्य को दृश्य में ग्रहण करें उसकी प्रक्रिया को देखें, और दृश्य को अपनी इंद्रियों (Sences) के साथ संवाद करने दें तो ऐसी प्रस्तुतियों से जुड़ाव बन जाता है.
Comments are closed.