एक मित्र ने पूछा है कि पूंजीवाद तो स्वार्थ की व्यवस्था है फिर भी आप उसका समर्थन कर रहे हैं? इस संबंध में थोड़ी सी बात समझ लेना जरूरी है। पहली बात तो यह है कि आजतक मनुष्य को जो गलत बातें सीखायी गई हैं उनमें से एक गलत बात यह है कि अपने लिए जीना बुरा है। मनुष्य पैदा ही इसलिए होता है कि अपने लिए जिये ! मनुष्य को समझाया जाता रहा है कि दूसरों के लिए जियो,अपने लिए जीना बुरा है। बाप बेटे के लिए जिये और बेटा फिर अपने बेटे के लिए जिये ; और इस तरह से न बाप जी पाए न बेटा जी पाये। समाज के लिए जियो,राष्ट्र के लिए जियो,मनुष्यता के लिए जियो,भगवान के लिए जियो,मोक्ष के लिए जियो। बस एक भूल मत कर बैठना कि अपने लिए नहीं जीना। यह बात इतनी बार समझाई गई है कि हमारे प्राणों में गहरे तक बैठ गई है कि अपने लिए जीना जैसे पाप है ,जबकि कोई आदमी अगर जिये तो सिर्फ अपने लिए ही जी सकता है और अगर दूसरों के लिए जीने भी निकलता है तो वह अपने लिए जीने की गहराई का परिणाम है,वह उसकी सुगंध है।
दूसरे की पीड़ा का भाव
कोई आदमी इस जगत में दूसरे के लिए नहीं जी सकता ,असंभव है मां भी बेटे के लिए नहीं जीती है और अगर बेटे के लिए मरती है तो वह मां का आनंद है। बेटा सिर्फ बहाना है । अगर नदी में एक आदमी डूब रहा हो और आप किनारे पर खड़े हों और दौड़कर जब आप उस आदमी को बचाते हैं तो शायद आप लोगों से कहें कि इस आदमी को मरने से बचाने के लिए मैंने अपना जीवन दांव पर लगा दिया। आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं। सच्चाई यह है कि आप उस आदमी को डूबते हुए नहीं देख सके। यह आपकी पीड़ा है यह आपका कष्ट था । इस कष्ट को मिटाने के लिए आप कूदें हैं और उस आदमी को आपने बचाया है। उस आदमी का आपसे कोई संबंध नहीं और अगर आपको यह पीड़ा नहीं होती तो आप न बचाते।
मैं आपसे कहना चाहता हूं कि स्वार्थ के कारण नहीं परोपकार की अस्वाभाविक, अवैज्ञानिक शिक्षाओं कारण दुनिया परेशान है। अगर आप सहज ही अपना सुख खोज सके तो काफी है। जन्म और मृत्यु के बीच अपना सुख खोज लें तो दुनिया आपको धन्यवाद देगी।क्योंकि जो आदमी अपना सुख खोज लेता है वह दूसरों को दुख देना बंद कर देता है। क्यों ? क्योंकि जो जानता है कि उसे सुख चाहिए वह यह भी जान लेता है कि दूसरे को दुख देकर सुख लाना असंभव है।
वह दूसरों को दुख देना बंद कर देता है।और जो आदमी यह जान लेता है कि दूसरों को दुख देने से मेरा सुख कम होता है वह बहुत जल्दी जान लेता है दूसरों को सुख देने से मेरा सुख बढ़ता है। यह गणित है सीधा। यह जिस दिन दिखाई पड़ जाता है उस दिन जिंदगी में क्रांति हो जाती है।
जीवन भी विकसित करना
अगर एक आदमी जाकर गरीबों की सेवा कर रहा है वह गरीबों की सेवा नहीं कर रहा है । अगर कह रहा है तो गलत कह रहा है। वह आदमी गरीब को गरीब देखना असंभव पा रहा है। उसके भीतर एक पीड़ा जन्म ले रही है जिसे दूर किए बगैर वह नहीं रह सकता। वह अपनी पीड़ा को दूर करने को गरीब की सेवा करने गया है। आजतक कोई मनुष्य दूसरे के लिए नहीं जिया है। सब अपने ही लिए जीते हैं। लेकिन अपने लिए जीना दो तरह का हो सकता है। एक अपने लिए जीना जिसमें दूसरों को मारना भी आ जाए ,मिटाना भी आ जाए। एक ऐसा जीना जिसमें दूसरे का जीवन भी विकसित होता हो। लेकिन परोपकार की बात बहुत खतरनाक है। जब भी हम किसी आदमी को सिखाते हैं कि दूसरे के लिए जियो, तभी वह आदमी बीमार और अस्वस्थ होना शुरू हो जाता है।
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