नई दिल्ली। भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत में सुधार लाने के लिए मोदी सरकार द्वारा बड़े फैसले लिए गए। इनमें नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों ने अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डाला। आम चुनाव से पहले सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होने के नाते इसे लोगों के लिए बेहतर बनाने की कवायद की जा रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली अगले महीने एक फरवरी को बजट पेश करेंगे। सभी की निगाहें इस बात पर है कि आम जनता को वह कितनी राहत दे पाते हैं। इसी के मद्देनजर बुधवार को जीएसटी काउंसिल की महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, जिसमें पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार किया जाएगा।
तेल के बढ़ते दामों ने बढ़ाई सरकार की परेशानी
पेट्रोल-डीजल की रोज बदल रही कीमतों ने सरकार की माथे की सिकन बढ़ा दी है। अब हालत ये है कि डीजल अपनी उच्चतम दर पर पहुंच गया है। बजट से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर के पार पहुंच चुकी है, जिसकी वजह से देश में पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके बाद सरकार की कोशिश पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने पर है। सरकार पहले ही ये संकेत भी दे चुकी है कि वह ना सिर्फ राज्यों को वैट घटाने के लिए कह सकती है, बल्कि खुद भी इसपर कोई फैसला लिया जा सकता है। हालांकि इस फैसले में राज्यों की सहमति लेना जरूरी है। क्योंकि राज्यों की राजस्व से होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा पेट्रोल और डीजल से ही आता है।
कम की जा सकती हैं टैक्स दरें
सूत्रों के मुताबिक जीएसटी काउंसिल की इस बैठक में 60 से 70 समानों पर भी टैक्स कम किया जा सकता है। इनमें से कुछ सेवाओं पर पहले कोई टैक्स नहीं लगता था, पर जीएसटी में वह टैक्स के दायरे में आ गई थी। इस वजह से इनमें दिक्कत आ रही थी। साथ ही रियल एस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए उठ रही मांगों पर भी फैसला लिया जा सकता है। 18 जनवरी से शुरू हो रही जीएसटी काउंसिल की यह बैठक इसलिए भी अहम है, क्योंकि ये आम बजट से ठीक पहले हो रही है अगली बैठक मार्च के आखिर में या फिर अप्रैल में ही होगी।
News Source :- www.jagran.com
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