नई दिल्ली। वर्ष 2000 मे लाल किले के अंदर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियो द्वारा सेना के जवानों पर गोलियां चलाने की साजिश मे शामिल आतंकी को गुजरात एटीएस व दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 18 साल बाद बुधवार को आइजीआइ एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया। आतंकी का नाम बिलाल अहमद कावा है।
वह श्रीनगर से फ्लाइट से दिल्ली आया था। स्पेशल सेल के लोधी कालोनी स्थित कार्यालय मे गुजरात एटीएस, सेल व आइबी के अधिकारी उससे पूछताछ कर रहे हैं। बिलाल की गिरफ्तारी ऐसे समय मे हुई है जब गणतत्र दिवस समारोह नजदीक है और इसमे आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स) देशों के राष्ट्राध्यक्ष मुख्य अतिथि के रूप मे शामिल होगे।
स्पेशल सेल के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक बिलाल (40) के बैक खाते से हमले मे शामिल और आतंकियो के खाते मे हवाला के जरिए पैसे भेजे गए थे। बिलाल 18 साल से वांछित था। हमले मे शामिल कुछ अन्य आरोपी अब भी फरार हैं। दिल्ली मे पहली बार लश्कर के 6 आतंकियो ने 22 दिसंबर 2000 को लाल किले के अंदर सेना पर हमला किया था।
एके-47 व हैड ग्रेनेड से लैश आतंकियो ने रात करीब 9 बजे लाल किले के अंदर चल रहे लाइट एंड साउंड प्रोग्राम के दौरान अंधाधुंध गोलियां चलाई थीं। उस दौरान लाल किले के अंदर सात राजपूताना राइफल्स की कई बटालियन थी। लाइट एंड साउंड प्रोग्राम देखने दर्शक भी जाते थे। हमले मे राजपूताना राइफल्स के तीन जवान अब्दुल्लाह ठाकुर, उमा शंकर व नायक अशोक कुमार की गोलियां लगने से मौत हो गई थी।
सभी आतंकी भागने मे सफल हो गए थे। मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक ने आतंकियो का नेतृत्व किया था। इससे पहले दिल्ली मे कोई हमला तो नही हुआ था, लेकिन लश्कर आतंकी पकड़े जरूर गए थे। घटना के तुरंत बाद 25 दिसंबर को स्पेशल सेल ने कई आतंकियो को दबोचा था।
अशफाक को वर्ष 2005 मे कड़कड़डूमा कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी फांसी सजा बरकरार रखी है, लेकिन अभी फांसी देने पर अतरिम रोक लगा दी गई है।
हमले मे शामिल श्रीनगर निवासी पिता-पुत्र नजीर अहमद कासिद और फारूक तथा पाकिस्तानी नागरिक आरिफ की भारतीय पत्नी रहमाना यूसुफ फारूकी सहित छह दोषियो को निचली अदालत ने बरी कर दिया था। इसके बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो 2007 मे अदालत ने नजीर और फारूक को उम्रकैद, जबकि रहमाना को सात साल कैद की सजा सुनाई गई।
उन्हें आरिफ को शरण देने का दोषी ठहराया गया था। हाई कोर्ट ने बाबर मोहसिन बागवाला, सदाकत अली और मतलूब आलम को बरी कर दिया था। इन लोगो को आरिफ को पनाह देने और फर्जी भारतीय पहचान पत्र उपलब्ध कराने के मामले मे सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी।
बिलाल ने की गुमराह करने की कोशिश
गुजरात एटीएस की टीम आइजीआइ एयरपोर्ट पर बिलाल के आने से पहले ही मौजूद थी। एयरपोर्ट पर उतरते ही उसे पकड़ लिया गया। पूछताछ करने पर उसने पहले गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन सख्ती से पूछताछ पर सच्चाई सामने आ गई।
जब उससे पूछा गया कि वह दिल्ली क्यो आया है, तो उसने बताया कि वह अपने भाई से मिलने आया था। उसका भाई दिल्ली मे कहां रहता है, पुलिस यह जानकारी जुटा रही है। स्पेशल सेल यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि वह 18 साल तक जम्मू-कश्मीर मे कहां छिपा था।
News Source :- www.jagran.com
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