लखनऊ। उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण लखनऊ एयरपोर्ट पर घने कोहरे की चादर अब विमानों का रास्ता नहीं रोकती। यह गुजरे जमाने की बात हो गई जब लखनऊ पहुंचकर भी विमानों की लैंडिंग चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर नहीं हो पाती थी।
लखनऊ एयरपोर्ट पर पिछले साल कैट 3 बी इंशुमेंटल लैंडिंग सिस्टम (आइएलएस) लगा दिया गया। अब इस सिस्टम के विस्तार की प्रक्रिया चल रही है। पिछले साल ही घने कोहरे के बीच 250 विमानों की सुरक्षित लैंडिंग इस एयरपोर्ट पर कराई जा सकी है।
पिछले साल तक केवल दिल्ली एयरपोर्ट पर ही कैट 3 बी उपकरणों से लैंडिंग हो पाती थी। दिल्ली में किसी तरह की दिक्कत होने पर लखनऊ ही वहां के डायवर्ट विमानों की लैंडिंग करने वाला महत्वपूर्ण एयरपोर्ट है। कैट 3 बी न होने के कारण कोहरे के समय विजिबिलिटी 350 मीटर से कम होने पर लखनऊ एयरपोर्ट पर विमानों की लैंडिंग नहीं हो पाती थी। ऐसे में महत्वपूर्ण समझे जाने वाले लखनऊ और जयपुर एयरपोर्ट पर कैट 3 बी श्रेणी का आइएलएस लगाया गया। इसमें करीब 40 करोड़ रुपये की लागत आई है।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने 27 अक्टूबर 2016 को लखनऊ और जयपुर एयरपोर्ट को कैट 3बी आइएलएस का दर्जा दिया था। एयरपोर्ट पर कई महीने के परीक्षण के बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने आठ दिसंबर 2016 से इस उपकरण से विमानों की लैंडिंग की अनुमति प्रदान कर दी। इसके बाद अमृतसर को भी जोड़ा गया। जबकि, कोलकाता में आइएलएस लगाने का काम चल रहा है। अब लखनऊ एयरपोर्ट पर विमानों की लैंडिंग 50 मीटर तक की विजिबिलिटी में भी हो रही है।
ऐसे काम करता आइएलएस
आइएलएस सिस्टम रन-वे के साथ विमान के कॉकपिट में लगा होता है। विमान का पायलट कॉकपिट के भीतर ही स्क्रीन पर रन-वे पर पहुंचने के बाद आगे की स्थिति देखता है। रन-वे विजुअल रेंज उपकरण से पायलट को विजिबिलिटी का पता लगाने में मदद मिलेगी।
एयरपोर्ट पर लैंडिंग करते समय 360 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति वाले विमान को सरफेस मूवमेंट राडार से ही सारे सिग्नल मिलेंगे। सरफेस मूवमेंट राडार पायलट को उसकी ऊंचाई और आइएलएस का संकेत प्रदान करता है। इसके सहारे विमान रन-वे पर उतरने के बाद इस पर लगी जर्मनी की लाइटों की मदद से पार्किंग तक की अपनी दिशा तय करता है।
हर गतिविधियों पर भी नजर
रनवे के दोनों ओर 150 मीटर तक घूमने वाले कार्गो और पेट्रोलियम सहित सभी तरह के वाहन आइएलएस के कारण एटीएस के राडार पर हैं। कैट 3 बी के उपकरणों में शामिल सरफेस मूवमेंट राडार के जरिए जहां एयर ट्रैफिक कंट्रोल से हर गतिविधि पर सीधी निगरानी शुरू हो गई।
वहीं राडार के साथ इलेक्ट्रानिक उपकरण ट्रासपौंडर भी लखनऊ एयरपोर्ट प्रशासन को दिया गया है। यह ट्रांसपौंडर कार्गो के सभी वाहनों, पेट्रोलियम कंपनी के ट्रकों के अलावा एयरपोर्ट प्रशासन की फायर, एंबुलेंस, सीआइएसएफ और अधिकारियों के वाहनों में लगाए गए हैं।
कैट 3 बी के काम करते समय रन-वे के दोनों छोर पर 150 मीटर तक यदि कोई गतिविधि होगी तो विमानों की लैंडिंग नहीं हो सकती है। ऐसे में एटीसी को सरफेस मूवमेंट राडार के जरिए यह पता चलेगा कि रन-वे के आसपास कौन से वाहन हैं। कोहरे में भी ट्रांसपौंडर से वाहनों का नंबर और उनके विभागों की फोटो स्क्रीन पर देखी जा सकेगी।
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