प्रमोशन के फायदे न मिलने पर CRPF के 91 पूर्व अफसरों ने भेजा कानूनी नोटिस, डीजी से मांगा जवाब

न्यूज़ डेस्क : देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के दर्जनों पूर्व अफसर, जो पदोन्नति एवं वित्तीय फायदों से वंचित रह गए थे, उन्होंने सीआरपीएफ के डीजी राजीव राय भटनागर को कानूनी नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। आईजी या डीआईजी के पद से रिटायर हुए सभी अफसर यूपीएससी की परीक्षा पास कर सहायक कमांडेंट के पद पर भर्ती हुए थे। 35-36 साल तक सेवा में रहने वाले पूर्व अधिकारियों का कहना है कि इन्हें जानबूझकर पदोन्नति एवं वित्तीय फायदों से वंचित रखा गया है। फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में माना था कि सीएपीएफ के ग्रुप-ए के अधिकारियों को छठे वेतन आयोग के संदर्भ में 2006 से एनएफएफयू सहित सभी लाभ दिए जाने चाहिए।

 

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों को सही ठहराया था, जिनमें इन बलों को ‘संगठित सेवा’ का दर्जा देने की बात कही गई थी। इसके बावजूद अभी तक इन्हें कुछ नहीं मिल सका। नोटिस में कहा गया है कि सीआरपीएफ महानिदेशक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना की है। कानूनी नोटिस की एक प्रति केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और डीओपीटी सचिव डॉ. सी. चंद्रमौली को भेजी गई है।

 

टालमटोल की नीति पर चल रही है केंद्र सरकार 

सीआरपीएफ के पूर्व आईजी वीपीएस पंवार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद केंद्र सरकार टालमटोल की नीति पर चल रही है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के करीब दस हजार मौजूदा अफसर और सैकड़ों पूर्व अफसर प्रमोशन एवं वित्तीय फायदों में हुए भेदभाव को लेकर परेशान हैं। जिस तरह से केंद्र सरकार की दूसरी संगठित सेवाओं में एक तय समय के बाद रैंक या फिर उसके समकक्ष वेतन मिलता है, वैसा सभी केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों को नहीं मिल पा रहा है। करीब बीस साल की सेवा के बाद आईपीएस अधिकारी आईजी बन जाता है, लेकिन कॉडर अफसर उस वक्त कमांडेंट के पद तक पहुंच पाता है।

कॉडर अफसर 34-35 साल की नौकरी के बाद बड़ी मुश्किल से आईजी बनता है। डीओपीटी ने 2008-09 के दौरान केंद्रीय सुरक्षा बलों में ओजीएएस यानी ‘आर्गेनाइज्ड ग्रुप ए सर्विस’ के तहत सेवा नियम बनाने के आदेश जारी किए थे। अभी तक सीआरपीएफ, बीएसएफ और दूसरी कई सेवाओं में सर्विस रूल्स नहीं बनाए गए हैं। इतना ही नहीं, इन कॉडर अधिकारियों को समय पर गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) और गैर-कार्यात्मक चयन ग्रेड (एनएफएसयू) का लाभ मिल जाए, इसके लिए आरआर यानी रिक्रूटमेंट रूल्स में भी संशोधन नहीं किया गया। नतीजतन, आज बहुत से कॉडर अधिकारी प्रमोशन और आर्थिक फायदों से वंचित हैं।

 

डीओपीटी का आदेश भी नहीं माना

कॉडर अफसर, वेतन विसंगतियां खत्म कराने और समय पर पदोन्नति लेने की खातिर एक दशक से लड़ाई लड़ रहे हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इनके पक्ष में फैसला दे दिया है। अदालत के फैसले से हरकत में आई केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले ही यह घोषणा की थी कि इन अधिकारियों को संगठित कॉडर के सभी फायदे मिलेंगे। यानी अब इन अफसरों को गैर-कार्यात्मक वित्तीय उन्नयन (एनएफएफयू) और गैर-कार्यात्मक चयन ग्रेड (एनएफएसयू) का लाभ मिल जाएगा।

सरकार ने इन्हें संगठित कॉडर सेवा के सभी फायदे देने का एलान तो कर दिया, लेकिन उसके लिए डीओपीटी के आदेशों का पालन नहीं किया गया। डीओपीटी ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के कॉडर अफसरों के लिए नए सर्विस रूल्स बनाने की बात कही थी। केंद्र सरकार ने इस दिशा में कोई काम ही नहीं किया। कॉडर अफसरों का कहना है कि जब तक पुराने भर्ती नियमों में संशोधन नहीं हो जाता और नए सर्विस नियम नहीं बन जाते, तब तक केंद्र सरकार की घोषणा बेमानी है। इस हालत में तो केवल 20 फीसदी अफसरों को ही लाभ मिल पाएगा।

बल के अधिकारियों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने कथित तौर पर आईपीएस एसोसिएशन का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में इस मामले का हल करने के लिए एक कमेटी गठित करने की बात कह दी। इसके लिए पहले जुलाई तक का समय लिया गया, फिर अक्तूबर और उसके बाद 30 नवंबर तक का समय ले लिया गया। यह डेट निकलने के बाद सरकार ने अब दोबारा से सुप्रीम कोर्ट में 31 मार्च तक का समय ले लिया है।


बीस साल बाद मिलता है सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड

अधिकारी बताते हैं कि केंद्र सरकार की 55 संगठित कॉडर वाली नौकरियों में अधिकतम बीस साल बाद सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड मिलता है। जैसे बीस साल की नौकरी पूरी होने के बाद आईएएस जेएस रैंक पर और आईपीएस आईजी के पद पर चला जाता है। चूंकि ये कॉडर सर्विस हैं, इसलिए इनमें टाइम बाउंड प्रमोशन यानी एक तय समय के बाद पदोन्नति मिल जाती है। खास बात है कि इन सेवाओं में रिक्त स्थान नहीं देखा जाता। जगह खाली हो या न हो, मगर तय समय पर प्रमोशन मिल जाता है।

दूसरी ओर, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में प्रमोशन उसी वक्त होता है, जब सीट खाली होती है। यदि किसी फोर्स में एक साथ कई बटालियनों का गठन होता है, तो ही प्रमोशन की कुछ संभावना बनती है। इसे नॉन प्लान ग्रोथ कहा जाता है। डीओपीटी ने इस बाबत भी दिशा निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी फोर्स में नॉन प्लान ग्रोथ नहीं होगी। जो भर्तियां होगी, वे सुनियोजित तरीके से ही की जाएंगी। 2001 और 2010 में भर्ती नियमों को बदला गया, लेकिन उनमें इतनी ज्यादा विसंगतियां थी कि उससे अफसरों को फायदा होने की बजाए नुकसान हो गया।

केंद्र सरकार अब जो फायदा देने की बात कह रही है, वह पुराने भर्ती नियमों पर आधारित है। अधिकारियों ने बताया कि वर्तमान समय में जो भर्ती नियम हैं, वे ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना को लागू नहीं होने देंगे। अगर सरकार नए सर्विस रूल फ्रेम किए बिना एनएफएफयू देती है, तो उसका फायदा सभी को नहीं मिलेगा। अस्सी फीसदी कॉडर अफसर इससे वंचित रह जाएंगे।

 

शर्तों के आधार पर ही मिलेगा प्रमोशन

आरोप है कि सरकार ने एनएफएफयू देने के लिए कई तरह की शर्तें लगा दी हैं। इनमें प्रमोशन कोर्स, वह पद पहले ग्रहण किया हो, मेडिकल फिटनेस, किसी मामले की जांच लंबित न हो यानी विजिलेंस क्लीयरेंस, फील्ड सर्विस, लीव रिजर्व, ट्रेनिंग रिजर्व और डेपुटेशन रिजर्व जैसी कई शर्तें शामिल हैं। छह दिन का प्रमोशन कोर्स अहम माना जाता है। खास बात है कि ये कोर्स अधिकारी अपनी मनमर्जी से नहीं कर सकता। इसके लिए तो विभाग ही उसे कोर्स पर भेजता है।

सीआरपीएफ की बात करें तो 90 फीसदी अधिकारियों को प्रमोशन कोर्स नहीं कराया गया है। अब 40-40 के बैच में डीआईजी को माउंट आबू स्थित संस्थान में कोर्स पर भेजा जा रहा है। इस बाबत अधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें उक्त शर्तों से वन टाइम छूट दी जाए। फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में माना था कि सीएपीएफ के ग्रुप-ए के अधिकारियों को छठे वेतन आयोग के संदर्भ में 2006 से एनएफएफयू सहित सभी लाभ दिए जाने चाहिए।

शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट के दो फैसलों को सही ठहराया था, जिनमें इन बलों को ‘संगठित सेवा’ का दर्जा दिया गया था। जिन अधिकारियों ने लीगल नोटिस भेजा है, उनमें से अधिकांश अफसर 2006 या उसके बाद रिटायर हुए हैं। इनमें से ज्यादातर अधिकारी डीआईजी के पद से रिटायर हुए थे। वीपीएस पंवार बताते हैं कि यदि 2006 से उन्हें सभी लाभ मिले होते तो अधिकांश अफसर एडीजी के पद तक जा सकते थे।

 

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