दुनियाभर के इतिहासकारों का मिथक आखिरकार सिनौली साइट ने तोड़ ही दिया है. जिस बात को लेकर पुरातत्वविद और इतिहासकार काफी उत्साहित नजर आ रहे थे, वह नजारा आखिरकार सामने आ ही गया है. विश्व भर में अभी तक के मिले प्राचीन सभ्यताओं के शवाधान पुरास्थलों में सिनौली साइट सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. यहां पर चल रहे खनन से पुरातत्वविदों को महाभारतकालीन ‘रथ’ और ‘शाही ताबूत’ मिले हैं. इसके साथ ही ताबूत में दफन योद्धा की ताम्र युगीन तलवारें, ढाल, सोने और बहुमूल्य पत्थरों के मनके, योद्धा का कवच, हेलमेट आदि भी प्राप्त होने से अब पूरे विश्व के पुरातत्वविदों की नजरें सिनौली पर टिक गई हैं.
15 फरवरी 2018 से ट्रायल ट्रेंच लगाया गया था
दरअसल, 15 फरवरी 2018 को बागपत जनपद के गांव सिनौली में खनन स्थल पर एक ट्रायल ट्रेंच स्थानीय इतिहासकारों की मांग पर एएसआई की महानिदेशक डॉ. ऊषा शर्मा के निर्देश पर पुरातत्वविद डॉ. संजय मंजुल और डॉ. अरविन मंजुल के निर्देशन में लगाया गया था. खास बात यह रही कि साल 2005 के उत्खनन के बाद 2007 में सिनौली की मानव बस्ती के सर्वेक्षण के दौरान शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन और तत्कालीन उप महानिरीक्षक, मेरठ विजय कुमार को यहां से ताम्र धातु के कुछ टुकड़े बाण की आकृति के मिले थे. जिस जगह पर ग्रामीणों द्वारा मिट्टी हटाई गई थी, उसी जगह पर सिनौली का यह ऐतिहासिक ट्रेंच लगाया गया ओर ट्रेंच का उत्खनन करते ही पहले दिन ही यहां से ताम्रनिधि प्राप्त होना शुरू हो गया जोइस लघु उत्खनन के समापन तक प्राप्त हो रही है.
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