मुंबई । पिछले दशक में ऑफिस स्पेस की अवधारणा में आए व्यापक बदलाव के चलते इसे को-वर्किंग की संज्ञा दी गई है। इसमें कर्मचारी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए कार्य वातावरण, पर्यावरण, कर्मचारी डिजाइन और सुविधाओं को तवज्जो दिया जाता है। इंटरनेशनल प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स, नाइट फ्रैंक की तरफ से जारी ‘को-वर्किंग : द ऑफिस ऑफ द फ्यूचर’ शीर्षक वाली रपट में कार्यस्थल की बदलती धारणाओं पर फोकस किया गया है।
वर्ष 2010 से दुनिया भर में को-वर्किंग कार्यस्थलों की संख्या 3,050 प्रतिशत (600 केंद्रों से 18,900 केंद्र) तक बढ़ी है, जबकि स्टेटिस्टा डोजियर के अनुसार इस अवधि में, इन सुविधाओं में काम करने वालों की संख्या 21,000 सीटों से बढ़कर 17 लाख सीटों तक बढ़कर 8,000 प्रतिशत हो गई है।
भारत में देश भर में फैले कई बड़े कारपोरेट्स के साथ एक को-वर्किं ग बदलाव के केंद्र में है। 200 से अधिक को-वर्किं ग कंपनियों के पास देश भर में अनुमानित 400 को-वर्किं ग स्पेसेज चल रहे हैं, केवल रीगस की तुलना में और 2010 में कुछ स्थानीय कंपनियों ने 30 से कम ऐसे केंद्रों को संचालित किया है।
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