पटना । बिहार में जेडीयू और भाजपा के बीच लोकसभा चुनाव में सीटों के तालमेल को लेकर बात बिगड़ती नज़र आ रही है। जदयू 2015 के राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों को आधार पर टिकिट मांग रही है। भाजपा और उसकी दो सहयोगी पार्टियों- लोजपा और रालोसपा की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जदयू की मांग पर सहमति के आसार न के बराबर हैं। लेकिन जदयू नेताओं का दावा है कि 2015 का विधानसभा चुनाव राज्य में सबसे ताजा शक्ति परीक्षण था और आम चुनावों के लिए सीट बंटवारे में इसके नतीजों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
राजग के साझेदारों में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन जदयू के नेता चाहतें हैं कि सीट बंटवारे पर फैसला जल्द हो, ताकि चुनावों के वक्त कोई गंभीर मतभेद पैदा न हो। साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को राज्य की 243 सीटों में से 71 सीटें हासिल हुई थीं,
जबकि भाजपा को 53 और लोजपा- रालोसपा को दो-दो सीटें मिली थीं। जदयू उस वक्त राजद एवं कांग्रेस का सहयोगी था, लेकिन पिछले साल वह इन दोनों पार्टियों से नाता तोड़कर राजग में शामिल हो गया और राज्य में भाजपा के साथ सरकार बना ली। भाजपा के एक नेता ने जदयू की दलील को ‘‘ अवास्तविक ’’ करार देते हुए कहा कि चुनावों से पहले विभिन्न पार्टियां ऐसी चाल चलती हैं।
उन्होंने दावा किया कि 2015 में लालू प्रसाद की अगुवाई वाले राजद से गठबंधन के कारण जदयू को फायदा हुआ था और नीतीश की पार्टी की असल हैसियत का अंदाजा 2014 के लोकसभा चुनाव से लगाया जा सकता है जब वह अकेले दम पर लड़ी थी और उसे 40 में से महज दो सीटों पर जीत मिली थी। ज्यादातर सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। साल 2014 के आम चुनावों में भाजपा को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 22 पर जीत मिली थी जबकि इसकी सहयोगी लोजपा और रालोसपा को क्रमश छह और तीन सीटें मिली थीं।
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