विधानसभा में पारित विधेयक के अनुसार, वेतन और भत्तों में संशोधन इस प्रकार होगा:
विधायक: मासिक वेतन ₹55,000 से बढ़कर ₹70,000 हुआ, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता ₹90,000 से बढ़कर ₹1.20 लाख और कार्यालय भत्ता ₹30,000 से बढ़ाकर ₹90,000 किया गया। दैनिक भत्ता ₹1,800 से बढ़कर ₹2,000 हो गया।
मुख्यमंत्री: वेतन ₹95,000 से बढ़कर ₹1.15 लाख हो गया।
कैबिनेट मंत्री: मासिक वेतन ₹80,000 से बढ़कर ₹95,000 हुआ।
स्पीकर और डिप्टी स्पीकर: स्पीकर का वेतन ₹80,000 से बढ़ाकर ₹95,000 और डिप्टी स्पीकर का वेतन ₹75,000 से बढ़ाकर ₹92,000 किया गया।
पूर्व विधायकों की पेंशन: पहली बार विधायक बनने वालों की मासिक पेंशन ₹36,000 से बढ़ाकर ₹50,000 कर दी गई। साथ ही, भविष्य में हर पांच साल में महंगाई सूचकांक के आधार पर स्वचालित वेतन संशोधन का प्रावधान जोड़ा गया।
नए विधेयक में एक विशेष प्रावधान किया गया है, जिसके तहत वेतन को कॉस्ट इंफ्लेशन इंडेक्स (मुद्रास्फीति सूचकांक) से जोड़ा गया है। यह व्यवस्था 1 अप्रैल 2030 से लागू होगी और इसके तहत प्रत्येक पांच साल में वेतन में स्वतः संशोधन होगा। इस कारण, भविष्य में विधायकों के वेतन में ₹1 लाख से अधिक की वृद्धि हो सकती है।
इस फैसले का सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी भाजपा दोनों दलों के विधायकों ने स्वागत किया। विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद विधायकों ने मेज थपथपाकर अपनी सहमति जताई।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि मंत्रियों, स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और विधायकों के वेतन में नौ साल बाद संशोधन किया गया है। पिछली बार वेतन में संशोधन 2016 में हुआ था।
वेतन वृद्धि के साथ ही सरकार ने कुछ सुविधाओं में कटौती करने का भी फैसला किया है।
विधायकों को मिलने वाले ₹20,000 के टेलीफोन बिल प्रतिपूर्ति को समाप्त कर दिया गया है।
विधायकों को मिलने वाली पानी और बिजली पर सब्सिडी को भी वापस ले लिया गया है।
सरकार के इस कदम को लेकर जनता में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कुछ लोग इसे राजनीतिज्ञों के विशेषाधिकार बढ़ाने वाला निर्णय बता रहे हैं, जबकि कुछ का मानना है कि महंगाई और बढ़ती आर्थिक चुनौतियों के बीच यह फैसला उचित नहीं है।
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