हिन्दू महिलाएँ और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा: राजनीतिक स्वार्थ या आस्था ?

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इन दिनों, यह चित्र काफी चर्चा में है  इस चित्र में जो कुछ  महिलाएँ हैं दिखाई दे रही हैं जो  अपने   राजनीतिक  स्वार्थ के लिए मुसलमान  पुरुषो के  इफ्तार  में  शामिल है। क्या इसमें आस्था दूर दूर तक दिखाई  देती हैं ? या यह मात्र एक राजनीतिक स्वार्थ है। ऐसे  व्यवहार को लोग राजनीति से प्रेरित मानते हैं, न कि धार्मिक आस्था का परिणाम। इफ्तार एक पवित्र धार्मिक कृत्य है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग उपवास तोड़ने के लिए एकत्र होते हैं। यह आयोजन पूरी तरह से धार्मिक आस्था पर आधारित होता है, न कि किसी राजनीतिक स्वार्थ पर। इसलिए, जब कोई महिला इसमें भाग लेती है, तो यह उसके धार्मिक विश्वासों को दर्शाता है, न कि किसी राजनीतिक एजेंडे को।इस विषय पर विमर्श करते हुए, यह महत्वपूर्ण है कि हम मुस्लिम महिलाओं के धार्मिक चरित्र, संस्कार और उनके आस्थाओं को सही दृष्टिकोण से समझें।

मुस्लिम महिलाएँ  हमेशा अपने धार्मिक संस्कारों को सबसे पहले महत्व देती हैं। उनका धार्मिक चरित्र और उनकी आस्था उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। धर्म, ईमान और आदर्शों के प्रति उनकी निष्ठा कहीं भी, किसी भी राजनीतिक या व्यक्तिगत स्वार्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। मुस्लिम महिलाएँ  कभी भी अपने धर्म से समझौता नहीं करतीं। यही कारण है कि उन्हें कभी भी नवरात्र, होली, दीपावली या दुर्गा पूजा जैसे हिंदू त्योहारों में शामिल होते हुए नहीं देखा जाता। वे अपने आस्थाओं के प्रति इतनी प्रतिबद्ध होती हैं कि व्यक्तिगत स्वार्थ और राजनीतिक कारणों के लिए धर्म से समझौता करना उनके लिए असंभव है।

 खासकर इफ्तार पार्टी और राजनीतिक आयोजनों में उनके शामिल होने को लेकर विचार विमर्श हो रहा है। मुस्लिम समुदाय की महिलाओ को कभी दुर्गा पूजा, नवरात्र, होली और दीपावली मनाते हुए किसी ने देखा ही  नहीं  क्योकि मुस्लिम  माहिलाएँ   अपने धर्म के प्रति कट्टर होती है तथा धार्मिक रुप से संस्कारवान और चरित्रवान होती है।  व्यक्तिगत राजनीतिक स्वार्थ के लिए भी वे धर्म से समझौता नहीं  करती क्योकि वे ईमानदार होती है।यह आलोचना इस बात पर आधारित है कि इफ्तार पार्टियां और इस तरह के आयोजनों में मुस्लिम पुरुषों के साथ हिन्दू  महिलाएँ ज्यादा दिख रही हैं, जबकि मुस्लिम माहिलाएँ इससे दूर रहती हैं।  जो मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की भूमिका और उनके धार्मिक आस्थाओं को लेकर है। वहीं दूसरी ओर कुछ  हिन्दू महिलाओं का इस प्रकार  का व्यवहार एक चिंतनीय विषय है ।अपने स्वार्थ के कारण किसी धार्मिक आयोजनों में भाग लेना उनके क्षुद्र मानसिकता  का परिचायक  है । 

मुस्लिम महिलाओं का धार्मिक चरित्र और संस्कार इस्लाम की असली ताकत हैं। वे अपने परिवार, समाज और समुदाय के लिए आदर्श प्रस्तुत करती हैं। उनका जीवन नैतिकता, ईमानदारी और सच्चाई से परिपूर्ण होता है। उनके लिए सत्ता , पैसा या कुर्सी से ज्यादा महत्वपूर्ण उनका धर्म और ईमान होता है। इसीलिए, मुस्लिम महिलाएँ  किसी भी बाहरी प्रभाव से बचती हैं और हमेशा अपने आस्थाओं के प्रति निष्ठावान रहती हैं। जबकि कुछ हिन्दू महिलाएँ  अपनी स्वतंत्रता की दुहाई देकर उस प्रत्येक कृत्य को करती हैं जिससे उनके अपनी आस्था ,संस्कारों ,परंपराओं पर चोट पहुँचे अतः उन्हें  इन सबसे बचने का प्रयास करना चाहिए । 

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