हरियाणा में त्रि-इंजन सरकार: नीडोनॉमिक्स दृष्टिकोण से एसडब्ल्यूओसी विश्लेषण

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प्रो. मदन मोहन गोयल, पूर्व कुलपति

हरियाणा में सत्ता में काबिज नेतृत्व द्वारा घोषित “त्रि-इंजन सरकार” की अवधारणा को नीडोनॉमिक्स के दृष्टिकोण से गहराई से समझने और विश्लेषण करने की आवश्यकता है। यह शासन मॉडल केंद्र सरकार, राज्य सरकार और शहरी हरियाणा में स्थानीय सरकार के बीच समन्वित दृष्टिकोण को दर्शाता है। हाल के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की निर्णायक जीत और विपक्ष की लगभग नगण्य उपस्थिति को देखते हुए, इस संघीय ढांचे की “स्ट्रेंथ, वीकनेस, अपॉर्च्युनिटी और चैलेंज” (एसडब्ल्यूओसी ) का मूल्यांकन करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है।

ग्लोबल सेंटर फॉर नीडोनॉमिक्स, कुरुक्षेत्र का eNM रिसर्च लैब लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता पर बल देता है ताकि स्वस्थ बहस और नीति मूल्यांकन सुनिश्चित हो सके। एक संतुलित शासन मॉडल, जो भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा प्रतिपादित सार्वजनिक व्यय के सिद्धांतों के अनुरूप हो, हरियाणा और संपूर्ण भारत के समग्र विकास के लिए आवश्यक है। अपने वादों को पूरा करने के लिए, त्रि-इंजन सरकार को “स्ट्रीट स्मार्ट ” बनना होगा— सरल , नैतिक , कर्मशील , उत्तरदायी और पारदर्शी । इससे शासन जन-केंद्रित, नीडो-स्वस्थ और आर्थिक आनंद की ओर उन्मुख होगा।

त्रि-इंजन सरकार की ताकतें (स्ट्रेंथ )

समन्वित नीति कार्यान्वयन – केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों की एकता से नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन संभव होता है, जिससे प्रशासनिक देरी कम होती है।
मजबूत नेतृत्व और राजनीतिक स्थिरता – भाजपा का सत्ता में वर्चस्व नीति स्थिरता बनाए रखता है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक योजना सुनिश्चित होती है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और निवेश – केंद्र की वित्तीय सहायता और राज्य की सक्रिय नीतियों से हरियाणा में शहरी बुनियादी ढांचे, औद्योगिक क्षेत्रों और डिजिटल शासन का तीव्र विकास संभव है।
विकसित भारत 2047 से समन्वय – 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की परिकल्पना हरियाणा के आर्थिक प्रगति, स्थिरता और सामाजिक कल्याण के लक्ष्य से मेल खाती है।
जन-कल्याणकारी योजनाओं का समन्वय – तीनों स्तरों की सरकारों के बीच तालमेल से योजनाओं का लाभ अधिक प्रभावी ढंग से समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों तक पहुँचाया जा सकता है।
त्रि-इंजन सरकार की कमजोरियां (वीकनेस )

मजबूत विपक्ष का अभाव – एक सशक्त विपक्ष की गैर-मौजूदगी लोकतांत्रिक संतुलन को कमजोर कर सकती है, जिससे नीति निर्माण में एकरूपता और आत्मतोष की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
प्रशासनिक बाधाएँ – एकीकृत संरचना के बावजूद, नौकरशाही की धीमी प्रक्रियाएँ नीति क्रियान्वयन में बाधा बन सकती हैं।
शहरी-ग्रामीण असमानता – शहरी विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित होने से ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी हो सकती है, जिससे आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ सकती है।
केंद्रीय वित्त पर निर्भरता – यदि हरियाणा अधिकतर केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता पर निर्भर रहेगा, तो उसकी आर्थिक स्वायत्तता और नीति-निर्धारण की स्वतंत्रता सीमित हो सकती है।
पार्टी के अंदर राजनीतिक मतभेद – सत्तारूढ़ दल के आंतरिक विवाद शासन में अस्थिरता और नीति निर्धारण में असंगति का कारण बन सकते हैं।
त्रि-इंजन सरकार के अवसर (अपॉर्च्युनिटी )

स्मार्ट और सतत शहरीकरण – नीडोनॉमिक्स-आधारित नीतियों को अपनाकर हरियाणा को स्मार्ट सिटी, हरित अवसंरचना और सतत शहरी विकास में अग्रणी बनाया जा सकता है।
औद्योगिक और तकनीकी विकास – हरियाणा की भौगोलिक स्थिति और औद्योगिक आधार को सशक्त बनाकर विदेशी और घरेलू निवेश को आकर्षित किया जा सकता है, जिससे रोजगार और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
स्थानीय शासन को मजबूत बनाना – पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) और नगरपालिकाओं की भूमिका को सशक्त करने से विकेन्द्रीकृत प्रशासन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नीतियाँ अधिक जन-केंद्रित बनेंगी।
शिक्षा और कौशल विकास – व्यावसायिक प्रशिक्षण और उच्च शिक्षा में निवेश से युवाओं को नए उद्योगों के लिए तैयार किया जा सकता है, जिससे बेरोजगारी कम होगी और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) – सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग से अवसंरचना, डिजिटल गवर्नेंस और सामाजिक कल्याण की योजनाओं को प्रभावी रूप से कार्यान्वित किया जा सकता है।
त्रि-इंजन सरकार के सामने चुनौतियाँ (चैलेंज )

राजनीतिक बहुलवाद की आवश्यकता – एक सशक्त सत्तारूढ़ दल स्थिरता सुनिश्चित करता है, लेकिन लोकतंत्र स्वस्थ बहस और विरोध से मजबूत होता है। विपक्ष की अनुपस्थिति सत्तावाद और जवाबदेही में कमी ला सकती है।
भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी – एकीकृत सरकार के बावजूद, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक अक्षमताएँ बनी रह सकती हैं, जिसके लिए कठोर उपायों की आवश्यकता होगी।
विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन – तीव्र शहरीकरण और औद्योगिक विकास पर्यावरणीय चुनौतियाँ पैदा कर सकते हैं, जिनसे प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए सतत नीतियाँ आवश्यक हैं।
जन अपेक्षाओं का प्रबंधन – सरकार को उच्च जन अपेक्षाओं को पूरा करते हुए वित्तीय अनुशासन और आर्थिक स्थिरता बनाए रखनी होगी।
राजनीतिक दोषारोपण से बचाव – सरकार को व्यर्थ के राजनीतिक वाद-विवाद में उलझने के बजाय ठोस परिणाम देने और हितधारकों से संवाद पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
हरियाणा की शासन प्रणाली और नीडोनॉमिक्स का भविष्य

त्रि-इंजन सरकार को नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट अपनाने की आवश्यकता है, जो न्यूनतमवाद, स्थिरता और आर्थिक आनंद की वकालत करता है। इसके लिए शासन मॉडल को आवश्यकता-आधारित (Need-based) बनाना होगा, न कि लालच-आधारित ।

इस दिशा में आवश्यक कदम:
1 पारदर्शिता और जवाबदेही – सार्वजनिक धन का सदुपयोग सुनिश्चित करना।
2 समावेशी विकास – शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच अंतर को पाटना।
3 जन भागीदारी – डिजिटल प्लेटफार्मों और स्थानीय शासन सुधारों के माध्यम से जनता की भागीदारी बढ़ाना।
4 नैतिक नेतृत्व – राजनेताओं और नौकरशाहों को राजनीतिक लाभ से अधिक जन कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए।

विकसित हरियाणा की ओर एक कदम

हरियाणा को “विकसित भारत 2047” की परिकल्पना को साकार करने के लिए “स्ट्रीट स्मार्ट ” बनना होगा—सरल, नैतिक, कर्मशील, उत्तरदायी और पारदर्शी। शासन को केवल एक राजनीतिक संरचना नहीं, बल्कि आर्थिक विकास, सामाजिक समानता और पर्यावरणीय स्थिरता के साधन के रूप में कार्य करना चाहिए।

सारांश:
शासन सत्ता का नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी का विषय है। यदि हरियाणा नीडोनॉमिक्स-आधारित विकास, पारदर्शिता और जवाबदेही को अपनाए, तो वह लोकतांत्रिक शासन और समावेशी विकास का एक आदर्श मॉडल बन सकता है।

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