सुकमा में अज्ञात बीमारी का कहर, एक-दो माह में आठ ग्रामीणों की मौत, बुजुर्ग महिला को पेड़ के नीचे ग्लूकोज चढ़ाया
सुकमा
जिले के छिंदगढ़ ब्लाक के धनीकोर्ता गांव में अज्ञात बीमारी से पिछले एक-दो माह में आठ ग्रामीणों की मौत हो गई है। अधिकांश ग्रामीणों को सीने व हाथ-पैर में दर्द की शिकायत थी। स्वास्थ्य विभाग ने गांव में तीन दिनों से शिविर लगाया है, इसमें 80 ग्रामीणों की जांच की गई। उनमें से 37 लोगों को दर्द की शिकायत है और नौ मलेरिया के मरीज मिले। कुछ को जिला अस्पताल रेफर किया गया, बाकी का प्राथमिक उपचार चल रहा है। आठ ग्रामीणों की मौत किन कारणों से हुई ये स्वास्थ्य विभाग पता नहीं लगा पाया। इससे पहले भी सुकमा में अलग-अलग गांवों में 90 ग्रामीणों की मौत पिछले चार सालों में हो चुकी है।
बुधवार को धनीकोर्ता गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम लखापारा में शिविर लगा कर मरीजों का इलाज कर रही है। एक बुजुर्ग महिला को पेड़ के नीचे ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था।
इसके साथ ही कुछ ग्रामीण एकत्रित थे जिनकी जांच की जा रही थी। ग्रामीणों के चेहरों पर दहशत साफ दिखाई दे रहा है। दरअसल 60 किमी दूर स्थित धनीकोर्ता कुन्ना पंचायत का आश्रित गांव है।
यहां पारे लखापारा, पटेलपारा में 620 लोग निवासरत हैं। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सीना दर्द, पैर-हाथ में दर्द, सूजन जैसी बीमारी से आठ लोगों की मौत हो गई है।
इसमें दो तो छिंदगढ़ व जिला अस्पताल सुकमा में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया है। वहीं गांव में दो छोटे बच्चों की भी मौत चेचक से हो गई उसकी भी ग्रामीणों में शिकायत है।
ग्रामीणों का इलाज चल रहा है। लेकिन इलाज के बाद भी ग्रामीणों की मौत हो रही है जिससे गांव में दहशत का माहौल है।
कब-कब हुई ग्रामीणों की मौत
लखापारा निवासी बुधरा बुचका (32 वर्ष) को हाथ-पैर में दर्द की शिकायत थी और उसकी मौत 23 जनवरी को हुई। हड़मा देवा (65 वर्ष) को कमजोरी थी उसकी मौत 25 फरवरी को हुई।
सुका हिड़मा (30 वर्ष) हाथ-पैर व सीने में दर्द की शिकायत थी, उसकी मौत 15 फरवरी को हुई। मंगा हिड़मा (25 वर्ष) को भी हाथ-पैर में दर्द की शिकायत थी और 15 फरवरी को मौत हुई।
सोनी हड़मा (38 वर्ष) हाथ-पैर व सीने में दर्द का उपचार छिंदगढ़ में चल रहा था वहां 28 फरवरी को मौत हुई। वेला लिंगा (55 वर्ष) को पैर-हाथ में दर्द की शिकायत थी उनकी मृत्यु दो मार्च को हुई।
मुचाकि मासे पिता सन्नू (चार माह) की मौत एक मार्च को हुई उसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।
देवे मुचाकि पिता हुंगा (एक वर्ष) को भी वही शिकायत थी उसकी भी मौत फरवरी माह में हुई।
इलाज के बाद दो सगे भाइयों की मौत
गांव के लखापारा निवासी दो सगे भाई मंगा हिड़मा और सुका हिड़मा को पैर और सीने में दर्द की शिकायत थी। एक सप्ताह के भीतर ही दोनों ने एक ही दिन दम तोड़ दिया।
मंगा ने दिन में तो सुका ने रात में दम तोड़ा। वहीं वेला लिंगा काफी दिनों से बीमार था, मौत से एक सप्ताह पहले जिला अस्पताल में इलाज करवाया।
जब वापस गांव गया तो फिर से बीमार पड़ गया। उसको फिर से जिला अस्पताल ले जाया गया लेकिन इस बार वहां दम तोड़ दिया।
गांव में झाड़-फूंक करने वाले चार वड्डे
ग्रामीणों ने बताया कि गांव में जागरूकता की भारी कमी है। इसके कारण गांव के लोग बीमार होते हैं तो सबसे पहले गांव में ही झाड़-फूंक करवाते हैं। गांव के तीन पारों में चार वड्डे हैं जहां पूजा-पाठ के साथ झाड़-फूंक होता है। वहीं स्वास्थ्य विभाग द्वारा भी गांव में कभी जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया। ये इलाका पहले नक्सल प्रभावित था लेकिन आज यहां सड़क बन गई है और शासन की योजनाएं पहुंच रही हैं।