महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालु लगा चुके आस्था की डुबकी, आखिर तक 55 करोड़ लोगों के आने की उम्मीद

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,11 फरवरी।
हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र स्थलों पर लगने वाला महाकुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। इस बार के महाकुंभ में अब तक 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं, और मेला समाप्त होने तक यह संख्या 55 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। यह मेला न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के हिंदू श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आध्यात्मिक अवसर होता है, जिसमें लोग पवित्र नदियों में स्नान कर मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं।

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

महाकुंभ हर 12 वर्षों में आयोजित किया जाता है, जबकि अर्धकुंभ हर 6 वर्षों में होता है। यह आयोजन चार पवित्र स्थलों—हरिद्वार (गंगा), प्रयागराज (गंगा, यमुना, सरस्वती संगम), उज्जैन (क्षिप्रा) और नासिक (गोदावरी)—पर बारी-बारी से होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरी थीं, जिससे ये स्थान पवित्र माने जाते हैं।

अब तक का आयोजन और श्रद्धालुओं का उत्साह

इस बार के महाकुंभ में अब तक 45 करोड़ श्रद्धालु स्नान कर चुके हैं, जो कि एक ऐतिहासिक संख्या है। कुंभ के शाही स्नान के दौरान लाखों साधु-संत, नागा साधु और श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। देश-विदेश से आए श्रद्धालु यहां पंडालों में धार्मिक प्रवचन, यज्ञ, हवन और संत समागम में भी भाग ले रहे हैं।

प्रशासन की विशेष तैयारियाँ

इतनी विशाल संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को देखते हुए प्रशासन ने खास तैयारियाँ की हैं:

  1. यातायात और परिवहन सुविधा – विशेष ट्रेनें, बसें और पार्किंग की व्यवस्था।
  2. स्वास्थ्य सेवाएँ – अस्थायी अस्पताल, एंबुलेंस और मेडिकल कैंप।
  3. सुरक्षा प्रबंध – हजारों पुलिसकर्मी, सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन सर्विलांस।
  4. साफ-सफाई और स्वच्छता अभियान – नदी किनारे विशेष सफाई दल और जागरूकता अभियान।

55 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना

मेला प्रशासन के अनुसार, अंतिम प्रमुख स्नानों में 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है, जिससे कुल संख्या 55 करोड़ तक पहुंच सकती है। यह आंकड़ा महाकुंभ को अब तक का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन बना सकता है।

निष्कर्ष

महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और अध्यात्म का प्रतीक भी है। लाखों संतों और करोड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति इस मेले को दिव्यता प्रदान करती है। जैसे-जैसे मेला अपने अंतिम चरण में पहुंचेगा, भक्तों की संख्या और भी बढ़ेगी, जिससे यह आयोजन ऐतिहासिक बन जाएगा।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!


Leave A Reply

Your email address will not be published.