मणिपुर में हिंसा मुख्य रूप से जातीय तनाव, भूमि विवाद और अवैध पोस्ता (अफीम) की खेती के कारण बढ़ी थी। हालांकि, बीते कुछ हफ्तों में हिंसा में कमी आई है। 26 फरवरी 2025 को जारी एक पुलिस रिपोर्ट में यह पुष्टि की गई कि विभिन्न उग्रवादी संगठनों ने स्वेच्छा से हथियार डाल दिए हैं। यह राज्य में शांति बहाल करने के लिए सरकार के प्रयासों की एक महत्वपूर्ण सफलता मानी जा रही है।
उग्रवादियों और अपराधियों के खिलाफ सरकार का सख्त अभियान
सरकार द्वारा उग्रवादियों के ठिकानों पर बड़े पैमाने पर छापेमारी अभियान चलाए जा रहे हैं। कई अवैध बंकरों और सड़क मार्गों पर बने अवरोधकों को ध्वस्त किया गया है, जिनका उपयोग उग्रवादी लोगों से अवैध वसूली और उन्हें डराने-धमकाने के लिए करते थे।
इसके अलावा, संगठित अपराध और अवैध नशा तस्करी में शामिल कई अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। इससे हिंसक घटनाओं में कमी आई है और जिन इलाकों पर पहले उग्रवादियों का कब्जा था, वहां अब सरकारी नियंत्रण बहाल किया जा रहा है।
ड्रग्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई
मणिपुर में उग्रवाद का मुख्य वित्तीय स्रोत अवैध नशा तस्करी रहा है। खासकर पहाड़ी जिलों में अफीम की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जो उग्रवादी संगठनों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाती थी।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों ने अवैध नशे के व्यापार पर नकेल कसने के लिए कड़े कदम उठाए हैं। 1 मार्च 2025 को 5,000 डेटोनेटर जब्त किए गए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उग्रवादी ड्रग्स के माध्यम से अपनी आतंकी गतिविधियों को वित्त पोषित कर रहे थे। इसके अलावा, सुरक्षा बलों ने हथियारों की बड़ी खेप भी जब्त की है, जिससे उग्रवादियों की हिंसक गतिविधियों की क्षमता पर अंकुश लगा है।
उग्रवादी समूहों के आत्मसमर्पण से उम्मीद
सरकार द्वारा उग्रवाद पर लगाम लगाने के लिए चलाए गए अभियान के चलते कई उग्रवादी गुटों ने आत्मसमर्पण करना शुरू कर दिया है। कुकी, जोमी और मीतेई गुटों ने अब तक 550 से अधिक हथियार सुरक्षा बलों को सौंप दिए हैं।
सरकार ने सभी उग्रवादी गुटों को 6 मार्च 2025 तक आत्मसमर्पण करने की अंतिम चेतावनी दी है। इसके साथ ही, 8 मार्च 2025 तक जबरन वसूली के लिए बनाए गए अवैध अवरोधकों को पूरी तरह खत्म करने का आदेश दिया गया है।
सामाजिक संगठनों और जनता की चिंताएं
हालांकि, राज्य में स्थिति अभी भी पूरी तरह सामान्य नहीं हुई है। सामाजिक संगठनों और विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधियों ने चिंता जताई है कि शांति प्रक्रिया में सभी जातीय समूहों के हितों को सुरक्षित रखा जाए। कुछ संगठनों ने सरकारी कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन करने की योजना बनाई है।
इसके अलावा, सरकार ने विदेशी वित्त पोषित एनजीओ पर भी कड़ी निगरानी बढ़ा दी है। हाल ही में कई एनजीओ के विदेशी अनुदान (FCRA) लाइसेंस रद्द किए गए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी बाहरी ताकत का इस्तेमाल मणिपुर में अशांति फैलाने के लिए न किया जाए।
क्या मणिपुर में स्थायी शांति संभव होगी?
हालांकि मणिपुर की स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है, लेकिन सरकार द्वारा उठाए गए कड़े कदमों से उम्मीद की जा रही है कि राज्य में स्थायी शांति की स्थापना होगी। उग्रवादी ठिकानों का सफाया, ड्रग तस्करी पर रोक और अवैध वसूली के नेटवर्क का खात्मा, ये सभी संकेत मणिपुर के लिए एक बेहतर भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं।
सरकार आशान्वित है कि यदि यह प्रयास जारी रहे, तो आने वाले महीनों में मणिपुर हिंसा और उग्रवाद के दंश से पूरी तरह मुक्त हो सकता है। हालांकि, जातीय तनाव और ऐतिहासिक विवादों को सुलझाना सरकार के लिए अब भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
मणिपुर के हालात को देखते हुए, अगले कुछ सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण होंगे। यदि सरकार अपनी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू कर पाती है और स्थानीय लोगों का विश्वास जीत पाती है, तो मणिपुर वास्तव में एक शांतिपूर्ण और समृद्ध राज्य बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है।