वाराणसी भारत के उतग्रदेश राज्य में गंग के तटपर बस विश्व के सबसे प्राचीनतम शहरों में से एक है। यह शहर बनारस और काशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। सनातन धर्म के अनुसार यह सर्वाधिक पवित्र माना गया है।
प्राचीनता इसके कण–कण में है । बनारस की प्राचीनता के विषय में प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं ‘बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से भी पुराना है, किवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।‘ वाराणसी की प्राय: भारत की धार्मिक राजधानी, मंदिरों की नगरी और शिव नगरी भी कहा जाता है। भगवान शिव ने एक श्लोक में वाराणसी का वर्णन करते हुए कहा है कि तीनों लोकों से समाहित एक शहर है, जिसमें स्थित मेरा निवास प्रासाद है काशी।
हिंदुओं के अलावा वाराणसी बौद्ध धर्म के भी चार पवित्रतम स्थलों में से एक है। शेष तीन कुशीनगर, बोध गया और लुबिनी हैं। वाराणसी से कुछ ही किलोमीटर दूर है सारनाथ, जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन दिए थे। मान्यता है
कि यहीं उन्होंने बौद्ध धर्म के मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन और धर्म की स्थापना की थी। इसके अलावा जैन धर्मावलबियों के लिए भी यह पवित्र तीर्थ है। इसे 23वें तीर्थकर श्री पाश्वनाथ का जन्मस्थान भी माना जाता है। ‘पंचतीर्थी‘घाटीं की महिमा महान
वैसे तो वाराणसी में 100 से अधिक घाट हैं, जो यहां के 6.5 किमी. लंबे तट पर बने हैं। इन घाटों में पांच अत्यंत पवित्र माने गए हैं। इन्हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थी‘ कहा जाता है। इन पांच घाटों में अस्सी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकर्णिक घाट शामिल हैं। इनमें अस्सी घाट सबसे दक्षिण में, जबकि आदिकेशवघाट सबसे उत्तर में स्थित है।
कैते पड़ा यह नाम
इतिहासकारों के अनुसार वाराणसी का नाम पहले वाराणसी नहीं रहा होगा। यह पहले काशी या कासी नाम से जाना जाता होगा। वाराणसी नाम का उद्गम संभवतः यहां बहने वाली गंगा की दो सहायक नदियों ‘वरुणा एवं ‘असि‘ के नामों से मिलकर बना है। ये नदियां गंगा नदी में क्रमश: उत्तर एवं दक्षिण से आकर मिलती हैं। एक अन्य विचार के अनुसार ‘वरुणा नदी’ को जिसे संभवत: प्राचीनकाल में ‘वरणासि‘ ही कहा जाता होगा और इसी से शहर को यह नाम मिला। महाभारत में ‘वरुणा‘ या आधुनिक ‘बरना नदी‘ का प्राचीन नाम ‘वरणासि‘ होने की पुष्टि होती है। अत: वाराणासी शब्द के दो नदियों के नाम से बनने की बात बाद में बनाई गई है।
यहां से प्राप्त होता है मोक्ष
महाभारत में उल्लेख है कि पृथ्वी पर स्थित कुछ स्थान अत्यंत पवित्र होते हैं। इनमें से कुछ अपनी विचित्रता के कारण, कुछ किसी के जन्म के प्रभाव से और कुछ ऋषि–मुनियों के सम्पर्क से पवित्र हो जाते हैं। यजुर्वेदीय जाबाल उपनिषद में महर्षि अत्रि ने महर्षि याज्ञवल्क्य से अव्यक्त और अनन्त परमात्मा को जानने का तरीका पूछा। तब याज्ञवल्क्य ने कहा कि उस अव्यक्त और अनन्त आत्मा की उपासना अविमुक्त क्षेत्र में हो सकती है, क्योंकि वह वहीं प्रतिष्ठित है और अत्रि के अविमुक्त की स्थिति पूछने पर याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि वह वरणा तथा नाशी (असि) नदियों के मध्य में है। वह अविमुक्त क्षेत्र देवताओं का देव स्थान और सभी प्राणियों का ब्रह्म सदन है। वहां ही प्राणियों के प्राण-प्रयाण (मृत्यु) के समय भगवान रूद्र तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं, जिसके प्रभाव से वह अमृती होकर मोक्ष प्राप्त करता है। अत: एव अविमुक्त में सदैव निवास करना चाहिए। उसको कभी न छोड़े, ऐसा याज्ञवल्क्य ने कहा है।
यहां के लोगों के हृदय में बसे हैं अजवान मंदिरों के नगर वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर मंदिर स्थित है| इनके अलावा यहां कई बड़े मंदिर भी स्थित हैं! जिनमें से प्रमुख हैं :
काशी विश्वनाथ मंदिर यह मंदिर भी स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान में जो मंदिर स्वरूप लिए हुए है, उसे इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में बनवाया था। 1839 में पंजाब के राजा ‘पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह इस मंदिर के दोनों शिखरों को स्वर्ण मंडित करवाने हेतु स्वर्ण दान किया था। मुगल शासक औरंगजेब ने इसके अधिकांश भाग को धराशायी कर दिया था, पर औरंगजेब के अत्याचारों से आस्था ज्यादा बलवती सिद्ध हुई और एक निकटस्थ स्थान पर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया।
दुई संदिर इसे “मंकी टेम्पल या ‘वानर मंदिर‘ भी कहते हैं, इस मंदिर का निर्माण , 18वीं सदी में किया गया था! यहां बड़ी संख्या उपस्थित बंदरों के कारण ही इसे “मंकी टेम्पल” की उपमा मिली है। मान्यता है केि यहां स्थित मां दुर्गा की प्रतिमा मानव निर्मित नहीं, बल्कि स्वतः ही मंदिर में प्रकट हुई थी। संकट मोचन मंदिर यह मंदिर महावीर रामभक्त हनुमान को समर्पित है अपनी अद्भुत शक्ति के कारण इस मंदिर की स्थानीय लोगों के हृदय में बहुत आस्था है| इस मंदिर में 7 मार्च 2006 को आतंकवादियों द्वारा तीन विस्फोट किए गए थे। उस समय यहां आरती होने वाली थी। तो उन्हें कहीं से भी दक्षिणा नहीं मिली, अत: वे रुष्ट होकर पूरे नगर को श्राप देने लगे| उसी समय वहां भगवान शिव एवं माता पार्वती एक दंपति के रूप में आए और वेद व्यास को भरपूर दान–दक्षिणा देकर तृप्त किया। इससे व्यास श्राप की बात है भूल गए। इसके बाद भगवान शिव ने महर्षि व्यासजी का काशी नगरी में प्रवेश निषेध कर दिया| इस बात के समाधान रूप में व्यासजी ने गंगा की दूसरी ओर आवास किया, जहां रामनगर में उनका मंदिर अमी भी मिलता है।
व दि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में नया विश्वनाथ मंदिर बना है, जिसे बिरला परिवार ने बनवाया था! ये मंदिर सभी धर्मों और जाति के लोगों के लिए खुला हुआ है।
मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकटा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं। वैसे यहां स्थित मंदिरों से ज्यादा प्रमुख यहां के लोग हैं। यहां के धार्मिक लोगों ने अपने हृदय में ही मंदिर बना रखा है, जो सभी मंदिरों से ज़्यादा पवित्र है।
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