छोटी आयु में रोग
एक अध्ययन के अनुसार केवल दिल्ली शहर । में 2002 से 2006 के बीच स्थूलकाय बच्चों की संख्या में 8 फीसदी की वृद्धि हुई है। अब तक तो यह प्रतिशत और भी बढ़ चुका होगा। देश के अन्य शहरों में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। इस बढ़ती हुई स्थूलता के चलते उच्च रक्तचाप, हृदय रोग एवं मधुमेह जैसी अधिक आयु में होने वाले रोग अब किशोरावस्था में ही आक्रमण करने लगे हैं। .
संक्रमित रोगो से बचे
हमारे युवा वर्ग की अक्रियाशील जीवनशैली उनके स्वास्थ्य को कमजोर और रोग प्रदत्त बनाने में और भी सहायक होती है। जब तक बच्चों को पोषक आहार और शारीरिक व्यायाम का महत्व समझ में नहीं आएगा, तब तक यह समस्या बनी रहेगी तथा वे वयस्क होने पर असमय ही अनेक संक्रामक रोगों के शिकार बन जाएंगे। बचपन से ही हमें अपनी संतानों में पौष्टिक आहार के प्रति रुचि उत्पन्न करना आवश्यक है। प्राय: देखा गया है कि अधिक लाड़-प्यार के चक्कर में अभिभावक कोका / पेप्सी कोला का रसास्वादन कराने में गर्व का अनुभव करते हैं। बाद में जब यही बच्चे घर के सुपाच्य एवं पोषक आहार से मुंह चुराने लगते हैं, तब माता-पिता पाश्चात्य संस्कृति को कोसने लगते हैं। अधिक तले-भुने, वसा एवं शर्करायुक्त पदार्थों का सेवन बच्चों में अनेक प्रकार की अनियमितताओं को उत्पन्न करता है, जो आगे चल कर अनेक प्रकार के असंक्रामक रोगों को निमंत्रित करता है।
आज की आरामदेह और अति-व्यस्त जीवन शैली के चलते संतुलित आहार का महत्व और भी बढ़ जाता है। हम सभी के लिए अधिक साग -सब्जी, फल एवं मोटा अनाज खाना लाभप्रद है। आजकल चाइनीज और थाई फूड बहुत प्रचलित है। इन दोनों पाक शैलियों में उबली हुई सब्जिओं और उबले चावल/नूडल्स की बहुतायत होती है। घी-तेल का प्रयोग बहुत कम होता है। ये व्यंजन सुपाच्य होने के साथ-साथ अत्यधिक स्वास्थ्य-वर्धक हैं। छोले भटूरे, चाट पकौड़ी, केक पेस्ट्री, फ्रेंच फ्राइज और फास्ट फूड आदि का सेवन कम से कम करना चाहिए। कोकाकोला के स्थान पर घर का बना नींबू पानी या मट्ठा कहीं अधिक शीतलता प्रदान करेगा ।
शिक्षण संस्थाओं में भी सजगता की आवश्यकता
हमारे शिक्षण संस्थाओं का प्रशासन भी बच्चों को स्वास्थ्यवर्धक जीवन अपनाने में बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है। अभिभावक, अध्यापक एवं विद्यार्थियों के सामूहिक प्रयासों से हम मोटापे, डायबिटीज और एक सुस्त, बीमार जीवन-शैली के प्रकोप से भावी-पीढ़ी को बचा सकते हैं। वल्र्ड डायबिटीज फाउंडेशन के सौजन्य से दिल्ली और कुछ अन्य शहरों के स्कूलों में कुछ इसी प्रकार के कार्यक्रम (“मार्ग’ और ‘चेतना”) चलाये जा रहे हैं। इनमें समूह संवाद, प्रदर्शनी, खान-पान-प्रतियोगिता तथा अन्य कार्यक्रमों के द्वारा छात्रों में पौष्टिक आहार , और व्यायाम के महत्व को उजागर किया जाता है तथा विशेषज्ञों द्वारा प्रत्येक विद्यार्थों का हेल्थ कार्ड भी बनाया जाता है।
समझदार अभिभावक और शिक्षक के रूप में हमें स्वास्थ्यवर्धक एवं क्रियाशील रहन-सहन पर ध्यान देना होगा। बच्चों में स्वादिष्ट, पौष्टिक खाने के साथ उन्हें जंकफूड का कम इस्तेमाल करना सिखाना होगा। हम स्वयं ही अपने बच्चों के खान पान की आदत बिगाड़ने के जिम्मेदार हैं। कम्प्यूटर गेम्स खेलने, मोबाइल और टेलीविजन ज्यादा देखने के बजाय दौड़ने, खेलने, साइकिल चलाने के लिए प्रेरित करें ।
एक अनुमान के अनुसार, यदि इस विस्फोटक स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो अगले 5 वर्षों में भारत को 237 अरब डॉलर की आर्थिक हानि का भार वहन करना पड़ेगा। यह चिंता का विषय हैं तथा इस दिशा में अविलम्ब एवं उचित कदम उठाने का संकेत देते हैं। किशोर-किशोरिओं में इस बढ़ते हुए मोटापे एवं घटती हुई शारीरिक क्षमता का मुख्य कारण है चर्बीविसा युक्त खाद्य पदार्थों का बढ़ता हुआ सेवन तथा शारीरिक क्रियाकलापोंव्यायाम की कमी बढ़ते हुए शहरीकरण और औद्योगीकरण ने हमारे दैनिक आहार में भयानक परिवर्तन किये हैं। अधिक वसा युक्त भोजन तथा अधिक शर्करा युक्त पेय पदार्थों का अनुचित मात्रा में सेवन करने के कारण हमारे शरीर में पोषक तत्वों की मात्रा असंतुलित हो गई है। ऊपर से ट्रांस फैटी एसिड (जो फास्ट फूड, बेकरी पदार्थ, तथा बाजार में बिकने वाली तली हुई खाद्य सामग्री में प्रचुर मात्रा में पाई जाती हैं) का विनाशकारी प्रभाव तो करेले को नीम पर चढ़ाने जैसा है।
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