रूस के SU-57 की ओर क्यों झुका भारत?
भारतीय वायुसेना अपने लड़ाकू बेड़े को और अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए लंबे समय से पांचवीं पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर जेट की तलाश कर रही थी। हालांकि अमेरिका ने F-35 की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने रूस के SU-57 के साथ समझौते को प्राथमिकता दी है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:
- तकनीकी मजबूती और लागत – SU-57 एक मल्टी-रोल स्टील्थ फाइटर जेट है, जो हाइपरसोनिक मिसाइलें ले जाने में सक्षम है। इसकी कीमत F-35 की तुलना में कम होने की संभावना है।
- सैन्य साझेदारी – भारत और रूस के बीच दशकों पुराना सैन्य सहयोग है। भारत पहले से ही S-400 मिसाइल सिस्टम, Su-30MKI फाइटर जेट, और T-90 टैंकों का इस्तेमाल कर रहा है।
- स्वदेशी उत्पादन में सहयोग – रूस, भारत को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और मेक इन इंडिया पहल के तहत स्थानीय उत्पादन का मौका दे सकता है, जबकि अमेरिका ऐसी शर्तें नहीं देता।
- अमेरिकी प्रतिबंधों की आशंका – अगर भारत F-35 खरीदता, तो उसे CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत रूस से रक्षा उपकरण लेने पर अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता था।
F-35 पर भारत की झिझक और ट्रंप को झटका?
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो 2024 के चुनावों में फिर से सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे हैं, ने अपने पिछले कार्यकाल में भारत को F-35 बेचने की रणनीति बनाई थी। लेकिन भारत का SU-57 की ओर झुकाव अमेरिकी रक्षा उद्योग के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत ने पहले भी अमेरिकी रक्षा सौदों में कड़े नियमों और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की सीमाओं के कारण दिलचस्पी कम दिखाई थी। इसके अलावा, F-35 की ऊंची लागत और रखरखाव खर्च भी भारतीय वायुसेना के बजट पर भारी पड़ सकता था।
क्या SU-57 भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा करेगा?
भारतीय वायुसेना को चीन और पाकिस्तान के संयुक्त खतरे का सामना करना पड़ता है, जहां J-20 और JF-17 जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान पहले से ही तैनात हैं। ऐसे में SU-57 की स्टील्थ टेक्नोलॉजी, लंबी दूरी के हथियार, और सुपरक्रूज क्षमता भारतीय रणनीतिक बढ़त को मजबूत कर सकते हैं।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय वायुसेना शुरू में 18-24 SU-57 जेट खरीद सकती है, जिसके बाद संभावित रूप से एक बड़ा सौदा किया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारत का SU-57 की ओर बढ़ता कदम न केवल वायुसेना की ताकत बढ़ाएगा, बल्कि यह रूस के साथ सैन्य संबंधों को और मजबूत करेगा। दूसरी ओर, F-35 से दूरी बनाकर भारत ने अमेरिका को यह स्पष्ट संदेश दिया है कि वह अपनी रक्षा नीति में पूरी तरह स्वतंत्र है और किसी दबाव में नहीं आएगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत-रूस के बीच SU-57 सौदा कब तक फाइनल होता है और इससे क्षेत्रीय सैन्य संतुलन पर क्या असर पड़ता है।