बिहार चुनाव 2025 से पहले नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन में बड़ा बदलाव

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पूनम शर्मा

बिहार 27 अप्रैल 2025– बिहार की राजनीति फिर करवट ले रही है। 2025 विधानसभा चुनावों की आहट के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने मंत्रियों और पार्टी नेताओं को नए सिरे से जिलों की जिम्मेदारी सौंपकर बड़ा सियासी दांव खेला है। इसका स्पष्ट संकेत है कि जदयू-भाजपा गठबंधन चुनावी मोर्चे पर पूरी ताकत से उतरने की तैयारी कर रहा है।

मंत्रिमंडल सचिवालय के माध्यम से जारी अधिसूचना के अनुसार, उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को पटना का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। इसी प्रकार विजय सिन्हा को मुजफ्फरपुर, विजय कुमार चौधरी को पूर्णिया और नालंदा, विजेंद्र प्रसाद यादव को वैशाली, श्रवण कुमार को समस्तीपुर और मधेपुरा जैसे महत्वपूर्ण जिलों का प्रभार देने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे को दरभंगा, अशोक चौधरी को सीतामढ़ी और जहानाबाद, नीरज कुमार को कटिहार, तथा अन्य कई मंत्रियों को महत्वपूर्ण जिलों की जिम्मेदारी दी गई है। यह फेरबदल सिर्फ प्रशासनिक नहीं बल्कि चुनावी रणनीति का हिस्सा है।

चुनावी तैयारी का साफ संकेत- नीतीश कुमार का यह फैसला साफ तौर पर भविष्य में आने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।  जिलों के नेतृत्व को पुन:संगठित करना  विकास कार्यों की निगरानी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इन नेताओं को जमीन पर पार्टी का आधार मजबूत करने, कार्यकर्ताओं में जोश भरने और सरकारी नीतियों का प्रचार करने का भी काम भी दिया गया है। प्रभारी मंत्री की नियुक्ति से हर जिले में करने से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि स्थानीय समस्याओं का समाधान तेजी से हो और सरकार के खिलाफ कोई नाराजगी उभरने से पहले उसे काबू किया जा सके। इससे विपक्षी दलों खासकर राजद और कांग्रेस को जमीन पर मजबूत होने का मौका कम मिलेगा।

संगठनात्मक सुदृढ़ीकरण- नीतीश कुमार जानते हैं कि सरकार में रहना काफी नहीं है, बल्कि संगठन को भी चुनावी मोड में लाना आवश्यक है। इसीलिए कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष का पद मंत्रियों को भी दिया गया है। इस समिति के माध्यम से योजनाओं का जमीनी कार्यान्वयन, जनसंपर्क और राजनीतिक समीकरण बनाने का कार्य होगा।

सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा जैसे नेताओं को प्रमुख जिलों का जिम्मा देकर एक तरफ जातीय संतुलन साधने की कोशिश की गई है तो दूसरी तरफ युवा नेतृत्व को भी बढ़ावा देने का संकेत दिया गया है। इससे यह भी साफ हो रहा है कि भाजपा-जदयू गठबंधन नेतृत्व परिवर्तन और पीढ़ीगत बदलाव के दबावों को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रहा है।

                                                                                                  जदयू-भाजपा गठबंधन की नई पटकथा

हाल ही में जदयू के वरिष्ठ नेताओं ने दावा किया था कि “मोदी-नीतीश की जोड़ी नई पटकथा लिख रही है।” यह दावा अब इस पुनर्गठन के जरिए जमीन पर उतरता दिख रहा है। दरअसल, भाजपा और जदयू दोनों को पता है कि 2020 के मुकाबले अब चुनावी माहौल और चुनौतियां अलग हैं। राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण, कांग्रेस का साथ और वाम दलों का समर्थन विपक्ष को मजबूती दे सकता है। ऐसे में हर सीट पर स्थानीय स्तर पर मजबूत पकड़ बनाना गठबंधन के लिए अनिवार्य हो गया है।

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का यह मास्टरस्ट्रोक कई मायनों में क्रांतिकारी है। यह प्रशासनिक फेरबदल नहीं है, शास्त्रीय चुनावी रणनीति का हिस्सा है। जिलों में प्रभारी मंत्री बनाकर जहां सरकार की पकड़ मजबूत करने की कोशिश की जा रही है, वहीं संगठन को सक्रिय कर एक बार फिर “सुशासन बाबू” की छवि को चमकाने की तैयारी है। अब देखना होगा कि यह रणनीति आने वाले चुनावों में कितनी कारगर साबित होती है।

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