बांग्लादेश में पत्रकारों की गिरफ्तारी क्यों? नोबेल शांति पुरस्कार विजेता देश में प्रेस स्वतंत्रता पर संकट

बांग्लादेश में स्वतंत्र पत्रकारिता और मीडिया रिपोर्टिंग पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। सरकार और प्रशासनिक तंत्र पर सवाल उठाने वाले पत्रकारों को अक्सर मानहानि, राष्ट्रीय सुरक्षा या साइबर अपराध कानूनों के तहत गिरफ्तार किया जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि ये गिरफ्तारियां एक बड़ी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य आलोचनात्मक आवाज़ों को दबाना और सरकारी नीतियों की समीक्षा करने वाले पत्रकारों को चुप कराना है।

बांग्लादेश में डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट (DSA) 2018 के तहत पत्रकारों की गिरफ्तारी तेजी से बढ़ी है। इस कानून को शुरुआत में साइबर अपराध रोकने के लिए लाया गया था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के खिलाफ किया जा रहा है।

  • 2018 से अब तक सैकड़ों पत्रकारों और एक्टिविस्टों पर इस कानून के तहत केस दर्ज किए जा चुके हैं।

  • सरकार के खिलाफ कोई भी रिपोर्ट प्रकाशित करने पर मीडिया संस्थानों पर दबाव बनाया जाता है।

  • सोशल मीडिया पोस्ट तक पर गिरफ्तारी हो रही है।

संयुक्त राष्ट्र, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने बांग्लादेश में प्रेस की आज़ादी पर बढ़ते प्रतिबंधों की कड़ी आलोचना की है।

  • रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार, बांग्लादेश में प्रेस की स्वतंत्रता लगातार गिर रही है और देश प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 162वें स्थान पर पहुंच गया है।

  • अमेरिकी विदेश विभाग ने भी बांग्लादेश में पत्रकारों की गिरफ्तारी को लेकर चिंता जताई है।

बांग्लादेश ने 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया था, जिन्होंने गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण काम किया। लेकिन आज वही देश पत्रकारों को जेल में डाल रहा है, जिससे लोकतंत्र पर सवाल उठ रहे हैं।

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि सरकार अपने असहमति रखने वालों को दबाने के लिए कठोर कदम उठा रही है, ताकि आने वाले चुनावों में कोई भी चुनौती खड़ी न हो सके।

बांग्लादेश में पत्रकारों की स्वतंत्रता का मुद्दा अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा का विषय बन गया है। सरकार को यह तय करना होगा कि क्या वह प्रेस स्वतंत्रता को बरकरार रखेगी या कठोर नीतियों से असहमति की आवाज़ को पूरी तरह से दबा देगी।

देश में लोकतंत्र और मीडिया की स्वतंत्रता के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

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