।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – कारण-परिस्थिति, विषय-वस्तु और दृश्यमान सत्ता सभी में निरंतर परिवर्तन है। अजेय, अविनाशी, नित्य और शाश्वत आत्मा के सत्य को जानना ही हितकर है..! जगत परिवर्तनशील है, वस्तु-पदार्थ, जीव, जड़-चेतन सभी में हर पल परिवर्तन है। विवेक मनुष्य को सही दृष्टि प्रदान करने में समर्थ है। परिवर्तन अवश्यम्भावी है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। संसार में कोई भी पदार्थ नहीं जो स्थिर रहता है। क्षण न व्यतीत होते जैसे मेघ अनेक रंग बदलता है, अथवा जैसे बिजली [आकाशीय] पूरे क्षण भर भी नहीं ठहरती, अथवा व्याकुल मनुष्य का चित्त जैसे स्थिर नहीं रहता, ठीक वैसे ही यह संसार परिवर्तनशील है। इसका क्षण-क्षण में नाश होता जाता है, इसलिए इसे अश्वत्थ कहते हैं। धरती पर प्रत्येक वस्तु और प्राणी का अंत निश्चित है। धरती पर जो भी आया है उसे काल का ग्रास बनना पड़ता है। परिवर्तनशील वस्तुओं में नहीं मिलता – शाश्वत सुख। धरती पर कोई भी मनुष्य परमात्मा की भक्ति के बिना पूरा नहीं है। वास्तव में विचारधारा से ही मनुष्य के जीवन को गति मिलती है। संसार से बड़ा कोई रोग नहीं और सुविचार से बड़ी कोई औषधि नहीं। ईश्वर अनंत ऊर्जा का भंडार है जो चैतन्य युक्त सर्वज्ञ और सर्व शक्तिमान है, वही ऊर्जा करोड़ों रूपों में परिवर्तित होकर सृष्टि के असंख्य ब्रह्मांडों के रूप में रचना करके इसे परिवर्तनशील रखती है। अनन्तता ईश्वर का स्वभाव है। जो नित्य है निरंतर है जिसकी सत्ता प्रत्येक काल में विद्यावान है। ऐसे अजेय चिरकालीन अच्युत पुरुष का नाम ही ईश्वर है। जब आप ईश्वर का स्मरण करने बैठें तो अपनी सत्ता का विस्मरण कर दें और परमेश्वर की शाश्वत सत्ता का ध्यान करें….।
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