पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
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पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – निष्काम कर्मयोग-भक्तियोग-ज्ञानयोग एवं विभिन्न साधन विधियाँ और आध्यात्मिक अभ्यास; सत्संग-स्वाध्याय एवं सन्त सन्निधि से ही फलीभूत होते हैं..! संयम, सेवा, स्वाध्याय, सत्संग और साधना के द्वारा जीव स्वात्मोत्थान कर परम सत्य को प्राप्त कर सकता है। संत-सन्निधि और सत्संगति आत्म-कल्याण के सहज साधन हैं। सत्संग से हृदय, मन व आत्मा में सत्य का समावेश होता है। निष्काम कर्म योग मुक्ति का मार्ग है। कर्मो के अनुसार व्यक्ति के भविष्य का निर्धारण होता है। संचित कर्मो के अनुसार ही सुख, दु:ख तय होते हैं, लेकिन निष्काम कर्म मार्ग से सभी ताप-संताप मिट जाते हैं। हम पशु नही हैं, परिंदे भी नही हैं, हम महाभाग्यवान हैं। ईश्वर की जब अनन्य कृपा प्राप्त होती है तब मानव देह प्राप्त होती है। मनुष्य योनि को भोग योनि ना बनाएं। इसी योनि में जीव विवेक, भक्ति, ज्ञान मार्ग पर चलकर संसार में कर्म कर सकता है। वासना, कामना के साथ किए गए कर्म जीवन में कष्ट का कारण बन जाते हैं। निष्काम कर्म करने से व्यक्ति सुख, दु:ख की सीमा से दूर चला जाता है। वह संसार को कर्म क्षेत्र मानकर फल की कामनाओं के बिना कर्म करता हुआ संताप रहित जीवन व्यतीत कर सकता है। पूज्यश्री ने कहा कि भक्ति, धर्म मार्ग पर चलने के लिए संसार त्याग की जरूरत नहीं है। निष्ठापूर्वक कर्तव्य को निभा कर नित्य प्रतिपल प्रभु का चिंतन, मनन व्यक्ति को संसार रूपी भवसागर से पार कर सकता है…।
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